सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Wednesday, August 31, 2011

धर्म और समाज


अतीत में हुई गलतिओं को समझे बिना हम उज्वल भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते, कुरान तो स्त्रिओं को खेती का दर्जा देता है, इस्लाम ही क्या परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हर धर्म में स्त्री का स्थान केवल उपभोग तक ही सीमित रहा है, कोई भी धर्म किसी भी स्त्री के लिए अभिशाप से कम नहीं है |

हिन्दू धर्म में जब स्त्री की बात होती है तब पौराणिक कथाओं से २-४ उदाहरण गिना दिए जाते है जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई भी सम्बन्ध नहीं | ये धर्म के ही देन है की आज तक भी नारीओ का उथान नहीं हो पाया है|

भारत में दहेज के लिए आज भी लगभल १० स्त्रिओं को जला दिया जाता है, प्रतियेक घंटे ३ बलात्कार होते है, प्रतियेक वर्ष चालीस लाख लड़किओं को वेश्यावृति के लिए विवश कर दिया जाता है | स्र्तिओं की शिक्षा के मामले मैं भारत का स्थान १६०वां है, जो हमारे पड़ोसे देशों से भी कम है| स्त्री मृत्यु दर भी भारत मैं सर्वाधिक है| पिछले २० वर्षों में लगभल एक करोड़ स्त्रिओं को गर्भ मैं भी मर डाला गया | देश के ६५ % स्त्रिओं की शादी १३ वर्ष से भी कम आयु मैं कर दी जाती है अब जरा इन आंकड़ों से पश्चिम की स्त्रिओं की स्तिथि की तुलना भी कर लीजये आपको थोड़ी बहुत वास्तविकता का ज्ञान हो जायेगा |

आप कहेंगे ये सब तो व्यवस्था की खामियां है, नहीं ये हमारे धर्म की देन है ,जी हाँ सामाजिक विद्रूपों का स्रोत परमपराओं और सनस्क्रतिओं में छुपा होता है , परमपराओं और संस्कृतियों को उर्जा धर्म से मिलती है ,इस तरह वर्तमान में ही नहीं हर युग में देश की सभी समस्याओं के मूल में धर्म एक प्रमुख कारण अवश्य रहा है | अब जरा संशेप में ही धर्म के कुछ अनमोल वचन सुन लीजये जो स्त्रिओं के विषये में है

बहुत ही संशेप में
अधम ते अधम अधम अति नारी....
१. जो नीचों से भी नीच है नारी उससे भी नीच है... - (रामचरित मानस अरण्य-कांड, 35 शलोक 2 और 3 )
२. नारी यदि पुरुष की कामेच्छा पूर्ति न करे तो उसे हाथों से या लाठी
से पीटे और कहे की मैं तुम्हे बदनाम कर दूंगा... (वृहद्रान्यक उपनिषद
स्कन्द ६ अद्याय ४ शलोक नो ७ )

३. स्त्री और भूमि दोनों बराबर हैं ... (पराशर स्मृति अद्याय १० शलोक २५ )

४. जो व्यक्ति १२ वर्ष से पहले अपनी कन्या का विवाह नहीं करता वह उस कन्या का मासिक धर्म पीता है... (पराशर स्मृति अद्याय 7 शलोक ७)
भारत में कभी स्त्रिओं को धार्मिक सती प्रथा के नाम पर जिन्दा जला दिया जाता था, सती प्रथा हिन्दू धर्म एव धर्म शास्त्रों का अभिन्न अंग था

|जातिवाद का जहर प्रतिएक भारतीओं के खून में बसा हुआ है आज भी जाती के नाम पर प्रतिदिन ३ व्यक्ति मारे जाते है प्रतिदिन २ दलित महिलाओं से बलात्कार होता है कुपोशन के शिकार एवं बालमजदूरी में लिप्त बच्चे 99 % दलित ही क्यूँ होते है ,ऐसा
क्यूँ है SC /ST/OBC पर होने वाले सभी प्रकार के भेद भाव एवं अत्याचारों का मूल स्त्रोत हमारा धर्म एवं धर्म शाश्त्र ही है कुछ उदहारण देखिये
१ .यदि कोई नीची जाती कव्यक्ति ऊंची जाती का कर्म करके धन कमाने लगे तो राजा को यह अधिकार है की उसका सब धन छीन कर उसे देश से निकल दे (मनुस्मृति
१०/२५ )
२.बिल्ली नेवला चिड़िया मेंडक उल्लू और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC की हत्या में है (मनुस्मृति ११/131 )

३.शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC द्वारा अर्जित किया हुआ धन ब्रह्मण उससे जबरदस्ती छीन सकता है क्यूंकि उसे धन जमा करने का कोई अधिकार ही नहीं है (मनुस्मृति ८/416 )


इस प्रकार के आदेशों से तो हिन्दू धर्म के सभी धर्म शाश्त्र भरे पड़े है श्री राम शम्बूक का वध सिर्फ इस लिए कर देते है क्यूंकि वो एक शुद्र होकर शिक्षा देने का कम कर रहा था .इन्ही वजहों से देश में दलितों पर अत्याचार होते है जरा सोचिये जब इन अत्याचारों को रोकने के लिए आज इतने क़ानून हैं फिर भी देश में "मिर्चपुर" जैसी घटनाएँ होती हैं जहा एक विकलांग लड़की के साथ उसके पुरे परिवार को सिर्फ इसलिए जिन्दा जला दिया जाता है क्यूंकि उस दलित परिवार के पास मोटर साईकिल खरीदने की हैसियत हो जाती है तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते की अतीत में इन अभागे 80 % शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC का क्या हाल होता होगा ?

जहा तक देश की गुलामी से हमारे पतन की बात है तो आपको बता दू की सतीप्रथा पर रोक अन्रेजो ने ही लगाई.स्त्रियों को पढने का अधिकार भी उन्हों ने ही दिया .अन्याय अत्याचार और असमानता पर आधारित मनुस्मृति की जगह समानता पर आधारित इन्डियन पीनल कोड उन्ही की दें है ,

उन्ही की भासा इंग्लिश की वजह से ही हमारे नेता आधुनिक दुनिया के संपर्क में आये और डेमोक्रेसी,रिपब्लिक,सेपरेशन आफ पावर, क़ानून का शाशन,सेकुलरिज्म, इक्विलिटी,लिबर्टी, हुमनराइट, और जस्टिस आदि की जानकारी पाई

आजादी के बाद उन्ही अंग्रेजो की भासा के माध्यम से भारतीय प्रफेशनल्स साइंस,इकनामिक्स,साफ्टवेअर,मनाज्मेंट,मेडिकल साइंस आदि क्षेत्रों में दुनिया भर में नाम कम रहे है ,इस तरह भारत को सभ्य बनाने में अंग्रेजो का बहुत बड़ा योगदान भी रहा है जिसके लिए हमें उनका आभार मानना चाहिए -

हिन्दू संस्कृति ही विश्व में एकमात्र ऐसी संस्कृति रही है जहा मेहनत करने वाले को शिल्पियों को कारीगरों को हीन समझा जाता रहा है उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाये कदम कदम पर तिरस्कृत किया जाता रहा गलियां दी जाती रहीं जिसके परिणाम स्वरुप कुछ अपवादों को छोड़ कर यहाँ विज्ञान पनप ही नहीं पाया

महाभारत के अनुसार चिकित्सा,शिल्प,अस्त्रशस्त्र के निर्माण,चित्रकारी,कारीगरी,कृषी तथा पशुपालन यह सब नीच कर्म है

(अनुशासन पर्व अ० २३श्लोक १४और२४---) (अनुशासन पर्व अ०90श्लोक६/८/9) (अनुशासन पर्व अ०135श्लोक 11)

तुलसी दस जी का तो कहना है की पुजिये विप्र ज्ञान गुण हीना ,शुद्र न पुजिया ज्ञान प्रवीना ...और ढोल गावर शूद्र (यानि शC /श्ट /ओBC) पशु नारी यह सब ताडन के अधिकारी

इन सबके उलट विदेशो में आधुनिक विज्ञान के जन्म दाताओं में अधिकतर व्यक्ति ऐसे ही परिवारों में पैदा हुए जहा हिन्दू धर्मशास्त्रो के अनुसार नीच कर होते थे -

उदाहरनार्थ जेम्स्वाट बढई का बेटा था , एडिसन का पिता लकड़ी के तख्ते बनता था ,लुइ पाश्चर कगरिब पिता चमड़ा कम कर अपना परिवार पलता था ,बेंजामिन फ्रिन्क्लिन का बाप साबुन और मोमबत्ती बनता था , सेफ्टी लंप के अविष्कारक ड्युई का बाप नक्काशी करता था ,फैराडे लुहार का बेटा था ,ज़ाआऱ्ज़्श्टेएFआण्शाण का बाप गरीब फायरमैन था ,न्यूटन और मार्कोनी किसान के बेटे थे ,डार्विन का पिता चिकित्सक था ,आर्कराईट एक साधारण नाई का बेटा था

9 comments:

  1. आपका सम्मान करते हुए कहना है कि कुछ गड़बड़ है।

    ReplyDelete
  2. शकील प्रेम जी रामचरित मानस के अरण्य कांड में कोई अद्यय नही है. दोहे भी केवल ४६ हैं. मैने पूरा अरण्य कांड छान मारा लेकिन जो आपने बताया वो उसमे नही मिला. हाँ सुंदर कांड में नारी के उपर लिखा है लेकिन उसके बाद उसी सुंदर कांड में नारी की महानता का भी बखान किया है. धन्यवाद.

    ReplyDelete
  3. शकील प्रेम जी "शूद्र" भी "सवर्ण" कहलाते हैं दलित नही. आपको ये पता होना चाहिए. "दलित" शब्द सबसे पहले १९वीं शताब्दी में ज्योतिराव फूले द्वारा इस्तेमाल किया गया.

    ReplyDelete
  4. वो त्रुतिपूर्वक छप गया था जिसे मैंने ठीक कर दिया है अब आप चैक कर लीजियेगा ३५ की जगह ६५ छाप गया था एक यही श्लोक नहीं है रामचरित मानस या हिन्दू धर्मशास्त्रों में नारी को अपमानित करने वाले aise hajaron aadesho se ye bhare pade है और udaharan dekhne ho to kripya soochit kijiyega .... आपका ब्लॉग पर आने के लिए और कमेन्ट करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. शकील जी, तुलसीदास जी का आज जो भी नाम (यश) है उसके पीछे उनकी पत्नी का ही योगदान था. रही बात नारी के लिए बोलने वाले वाक्यों की तो शायद आप ये भी जानते होंगे की बुद्धिस्ट ग्रंथ विनय पीतका के अनुसार गौतम बुद्ध ने कहा था की "नारी अशुध, भ्रष्ट और कामुक होती हैं." ये बात भी साफ - साफ लिखी गई है की वो "शिक्षा ग्रहण" नही कर सकती. मैने सिर्फ़ हिंदू ही नही बल्कि बुद्दिस्ट, इस्लामिक और ईसाइयत के सभी ग्रंथ पढ़ रखें हैं. ग़लतियाँ सब में हैं. लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नही की कोई एक ही धर्म बुरा है.

    ReplyDelete
  6. शकील जी, माफ़ कीजिए में अपनी बात का प्रमाण देना भूल गया था. जो बात मैं भगवान गौतम बुद्ध के बारे में कही है वो बात आप भी विनय पीतका के कुल्लावग्गा खंड में देख सकतें हैं.

    ReplyDelete
  7. शकील जी, मैं भी जाति वाद के पूरी तरह खिलाफ हूँ. और चाहता हूँ की ये बीमारी जल्दी से जल्दी ख़त्म हो. जाति-वाद सिर्फ़ भारत में ही नही बल्कि चीन,कोरिया,जापान,श्री लंका,पाकिस्तान,यमन और युरोप के देशों मैं भी फैला हुआ है. वहाँ पर भी इसी तरह लोगो के साथ जाति के आधार पर भेदभाव होता है. लेकिन वहाँ पर तो हिंदू धर्म या इसकी किताबों को पढ़ा नही जाता. और ना ही वहाँ के लोग अपने आप को "आर्य" कहते हैं. @शकील जी जो बात अंबेडकर जी ने सोची और समझी वो सही है लेकिन आपका और हमारा भी यही फर्ज़ बनता है की हम और आगे की सोचें . देश के दुश्मन इन्ही चीज़ों का फायदा उठातें हैं.

    ReplyDelete
  8. शकील जी, मुझे ऐसा लग रहा है की आपसे दुबारा ग़लती हो गई है. अरण्य कांड वाली चौपाई 35 नही 34 वें दोहे के बाद बोली जाती है. यहाँ पर ये बात भी पता होनी चाहिए की नारी के लिए इस प्रकार के वचन खुद "शबरी" राम को फल देते समय बोल रही है.

    ReplyDelete
  9. एस. शकील जी, महर्षि सुश्रुत महान चिकित्सक थे, वात्स्यायन ऋषि ने "कामसूत्र" पुस्तक की रचना करी थी साथ ही साथ वो चित्रकला में भी पारंगत थे. महर्षि मातंग कृषि और पशुपालन भी करते थे. इससे ये बात साबित नही होती की वो सब नीच कार्य करते थे.

    ReplyDelete