सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Thursday, October 6, 2011

आरक्षण क्यूँ ?


नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर आरक्षण के विषय में कुछ लेख पढ़ने को मिले और उन्ही लेखों ने मुझे ये लेख लिखने को प्रेरित किया , जब बात आरक्षण की होती है तो सब भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित-जाती, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग को मिले उस आरक्षण या विशेष अधिकारों की ही बात करतें हैं जिन्हें लागू हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए हैं ,कोई उस आरक्षण की बात नही करता जो पिछले 3000 वर्षों से भारतीय समाज में लागू थी

जिसके कारण ही इस आरक्षण को लागू करने की आवश्यकता पड़ी आज ''भारतीय गणराज्य का संविधान'' नामक संविधान, जिसका हम पालन कर रहें है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ उससे पहले जो संविधान इस देश में लागू था जिसका पालन सभी राजा-महाराजा बड़ी ईमानदारी से करते थे उस संविधान का नाम था ''मनुस्मृति''

आधुनिक संविधान के निर्माता अंबेडकर ने सबसे पहले 25 दिसंबर 1927 को हज़ारों लोगों के सामने इस ''मनुस्मृति'' नामक संविधान को जला दिया ,क्यूंकी अब इस संविधान की कोई आवश्यकता नही थी भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए दिया गया क्यूंकी इस देश की 85 प्रतिशत शूद्र जनसंख्या को कोई भी मौलिक अधिकार तक प्राप्त नही था

,सार्वजनिक जगहों पर ये नही जा सकते थे मंदिर में इनका प्रवेश निषिध था सरकारी नौकरियाँ इनके लिए नहीं थी , ये कोई व्यापार नही कर सकते थे , पढ़ नहीं सकते थे , किसी पर मुक़दमा नही कर सकते थे , धन जमा करना इनके लिए अपराध था , ये लोग टूटी फूटी झोपड़ियों में, बदबूदार जगहों पर, किसी तरह अपनी जिंदगिओं को घसीटते हुए काट रहे थे और यह सब ''मनुस्मृति'' और दूसरे हिंदू धर्मशास्त्रों के कारण ही हो रहा था कुछ उदाहरण देखिए-

1.संसार में जो कुछ भी है सब ब्राह्मानो के लिए ही है क्यूंकी वो जन्म से ही श्रेष्ठ है(मनुस्मृति 1/100)

2.स्वामी के द्वारा छोड़ा गया शूद्र भी दासत्व से मुक्त नही क्यूंकी यह उसका कर्म है जिससे उसे कोई नही छुड़ा सकता (8/413)

3.यदि कोई नीची जाती का व्यक्ति ऊँची जाती का कर्म अपना ले तो राजा उसे देश निकाला देदे (10/95)

4.बिल्ली, नेवला चिड़िया मेंढक, गढ़ा, उल्लू, और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र (अनुसूचितजाती, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग) की हत्या में है (मनुस्मृति 11/131)

5.शूद्र का धन ब्राह्मण निर्भीक होकर छीन सकता है क्यूंकी उसको धन रखने का अधिकार नही (8/416)

6. सब वर्णों की सेवा करना ही शूद्रो का स्वाभाविक कर्तव्य है (गीता,18/44)

7. जो अच्छे कर्म करतें हैं वे ब्राह्मण ,क्षत्रिय वश्य, इन टीन अच्छी जातियों को प्राप्त होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं वो कुत्ते, सूअर, या शूद्र जाती को प्राप्त होते हैं (छान्दोन्ग्य उपनिषद् ,5/10/7)

8. पूजिए विप्र ग्यान गुण हीना, शूद्र ना पूजिए ग्यान प्रवीना,(रामचरित मानस)

9.ब्राह्मण दुश्चरित्र भी पूज्‍यनीए है और शूद्र जितेन्द्रीए होने पर भी तरास्कार योग्य है (पराशर स्मृति 8/33)

10. धार्मिक मनुष्या इन नीच जाती वालों के साथ बातचीत ना करें उन्हें ना देखें (मनुस्मृति 10/52)

11. धोबी , नई बधाई कुम्हार, नट, चंडाल, दास चामर, भाट, भील, इन पर नज़र पद जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए इनसे बातचीत हो जाए तो स्नान करना चाहिए (व्यास स्मृति 1/11-13)

12. अगर कोई शूद्र वेद मंत्र सुन ले तो उसके कान में धातु पिघला कर डाल देना चाहिए- गौतम धर्म सूत्र 2/3/4....

ये उन असंख्य नियम क़ानूनों के उदाहरण मात्र थे, जो आज़ाद भारत से पहले देश में लागू थे ये अँग्रेज़ों के बनाए क़ानून नहीं थे ये हिंदू धर्म द्वारा बनाए क़ानून थे जिसका सभी हिंदू राजा पालन करते थे प्रारंभ में तो इन्हें सख्ती लागू करवाने के लिए सभी राजाओं के ब्राह्मणों की देख रेख में एक विशेष दल भी हुआ करता था

इन्ही नियमों के फलस्वरूप भारत में यहाँ की विशाल जनसमूह के लिए उन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गये या इनके कारण बंद हो गये, सभी अधिकार, या विशेष-अधिकार, संसाधन, एवं सुविधायें कुछ लोगों के हाथ में ही सिमट कर रह गईं, जिसके परिणाम स्वरूप भारत गुलाम हुआ

भारत की इस गुलामी ने उन करोड़ों लोगों को आज़ादी का अवसर प्रदान किया जो यहाँ शूद्र बना दिए गये थे , इस तरह धर्मांतरण का सिलसिला शुरू हुआ , बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम ईसाइयत को अंगीकार किया , अंग्रेज़ो के शासन काल में उन्नीस्वी सदी के प्रारंभ से यहाँ पुनर्जागरण काल का उदय हुआ जिसके नायक यहीं के उच्च वर्गिए लोग थे जो अँग्रेज़ी शिक्षा, संस्कृति से प्रभावित हो कर देश में बदलाव लाने को प्रयत्नशील हुए ,

सती प्रथा को समाप्त किया गया स्त्री शिक्षा के द्वार खोले गये , शूड्रों को नौकरियों में स्थान दिया जाने लगा और कितनी ही क्रूर प्रताओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया ,कई परिवर्थन्शील ,संगठनों का उदय हुआ ऐसे ही समय में अंबेडकर का जन्म हुआ , समाज में कई परिवर्तन हुए थे परंतु अभी भी शूड्रों के जीवन पर इसका कोई

अम्बेडकर का जीवन संघर्ष इस बात का उदहारण है , अम्बेडकर अपने समय के विश्व के पांच सबसे बड़े विद्वानों में से एक थे ,अपने जीवन के कड़े अनुभवों को ध्यान में रखकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सदियों से हिन्दू धर्म द्वारा दलित, उत्पीडित बहुसंख्य जनों के उत्थान को समर्पित करते हुए लम्बे संघर्ष में लगा दिया , जिस कारण दुनिया को पहली बार भारत के इस महान अभिशाप का ज्ञान हुआ और पशुओं का जीवन व्यतीत कर रहे उन करोड़ों लोगों को स्वाभिमान से जीवन जीने की ललक पैदा हुई , उन्होंने अपने जीवन के कीमती कई वर्ष हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म शाश्त्रों के अध्यन में लगाये ,


अम्बेडकर के प्रयासों का ही नतीजा था की भारत के राजनैतिक और सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सात सदस्सिए साइमन कमीशन को भारत भेजा जिसका अम्बेडकर ने स्वागत किया लेकिन कांग्रेस ने इसका बहिस्कार कर दिया, और कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा १९२८ में नए संविधान की रूप रेखा तैयार की गई जिसके लिए सभी धर्म एवं सम्प्रदायों को बुलाया बुलाया गया लेकिन अम्बेडकर को इससे दूर रखा गया

१२ से १९ जनवरी १९३१ को गोलमेज की प्रथम कांफ्रेंस में पहली बार देश से बाहर अम्बेडकर ने अपने विचार रखे , और शूद्रो की सही तस्वीर पेश की इसी कांफ्रेंस में उन्होंने कानून के शाशन और शारीरिक ताकत की जगह संवैधानिक अनुशाशन की प्रतिष्ठा का दावा किया , सम्मलेन में जो ९ सब कमिटी बनी उन सभी में उन्हें सदस्य बना लिया गया , उनकी योग्यता उनके सारपूर्ण वक्तव्यों की वजह से यह संभव हो पाया, फ्रेंचाइजी कमिटी में उन्होंने दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग की और उनकी सभी मांगों को अंग्रेजी सरकार को मानना पड़ा

अम्बेडकर की इस अभूतपूर्व सफलता ने कांग्रेस की नींद हराम कर दी क्यूंकि सवर्णों की इस पार्टी को डर हुआ की सदियों से जिन्हें लातों तले दबा के रखा , उनसे अपने सभी गंदे से गंदे काम करवाए, अगर उन्हें सत्ता मिल गई तब तो हमारी आने वाली पीडिया बर्बाद हो जाएँगी , हमारा धर्म जो इनसे छीन कर हमें सारी सुविधाएं सदियों से देता आया है वो संकट में पड जायेगा , यही सब सोच कर कांग्रेस के इशारों पर गाँधी ने अम्बेडकर को मिले अधिकारों के विरूद्ध आमरण अनशन की नौटंकी शुरू कर दी , जिसके कारण अंत में राष्ट्र के दबाव में आकर अम्बेडकर को "POONA - PACT " पर हस्ताक्षर करने पड़े जिसके अनुसार अग्रिम संविधान बनाने का मौका अम्बेडकर को दिया जाना तय हुआ बदले में अम्बेडकर को गोलमेज में मिले अपने सभी अधिकारों को छोड़ना पड़ा

इस तरह वर्तमान संविधान का जो की मजबूरी में बना आधारशिला तैयार हुई जिसमें उन्होंने आरक्षण का प्रावधान डाला और दलितों के लिए सभी कानून बनाये अब जरा थोड़ी देर के लिए यह कल्पना कीजिये की अगर अम्बेडकर दलितों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षण की मांग करते जो की उनका हक़ है तो क्या होता , परन्तु अम्बेडकर ने ऐसा नहीं किया ,

आज जब सरकारी नौकरियां वैश्वीकरण के नाम पर पूरे षड्यंत्र करी तरीके से समाप्त की जा रहीं हैं , ऐसे में शूद्र एक बार फिर हाशिये पर आगया है ,ऐसे में ये कहना की बचे खुचे आरक्षण को भी समाप्त कर दिया जाये एक बार फिर से शूद्र को गुलाम बनाने की सोची समझी साजिश ही तो है

आज जितने दलित अम्बेडकर के प्रावधानों के कारण सरकारी नौकरियों तक पहुचे हैं और सुख से दो जून की रोटी खा रहे हैं , उससे कहीं अधिक ब्रह्माण आज भी हिन्दू धर्म शाश्त्रों के सदियों पुराने प्रावधानों के कारण देश के लाखों मंदिरों में पुजारी बन अरबों-खरबों के वारे न्यारे कर रहे हैं और देश की खरबों की संपत्ति पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं क्या किसी ने इस आरक्षण को समाप्त करने की बात की....?

क्या किसी ने आज भी दलितों पर होने वालें अत्याचारों को रोकने के लिए आमरण अनशन किया ? क्या किसी ने मिर्च पुर, गोहाना, खैरलांजी,झज्जर,के आरोपियों के लिए फांसी की मांग की ? क्यूँ नहीं पहले ब्रह्माण क्षत्रिय और वैश्य अपने अपने जातीय पहचानों को समाप्त करते ? जाती स्वयं नष्ट हो जाएगी जाती नष्ट होते ही आरक्षण की समस्या सदा के लिए नष्ट हो जाएगी ,ऊपर की जाती वाले क्यूँ नहीं अपने बच्चों की शादियाँ दलितों के बच्चों संग करने की पहल करते ? लेकिन यहाँ तो बात ही दूसरी है इनके बच्चे अगर दलितों में प्रेम विवाह करना चाहें तो ये उनका क़त्ल कर देते हैं धन्य हैं

एक दलित मित्र अपने ब्लॉग में कहतें हैं की अब तो ऐसा नहीं होता तो श्रीमान जी जरा अख़बार पढ़ा करो पता चल जायेगा आज भी इस देश में संविधान के इतने प्रावधानों के बावजूद प्रत्येक दिन तीन दलितों को उनकी जाती के कारण मार दिया जाता है प्रत्येक दिन एक दलित महिला से उसकी जाती के कारण बलात्कार होता है

Saturday, September 17, 2011

क्या ईश्वर है ?


स्वामी विवेकानंद के अनुसार इश्वर को सर्वशक्तिमान,सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त, दयालु, न्यायकर्ता ,होना चाहिए अगर इश्वर में ये गुण नहीं तो वो इश्वर नहीं

अब आइये इन गुणों से इश्वर को जानने का प्रयास करते हैं की क्या इश्वर में ये गुण है , सबसे पहले हम इश्वर के सर्वशक्तिमान वाले गुण की विवेचना करते हैं , क्या इश्वर सर्वशक्तिमान है , इश्वर के सर्वशक्तिमान होने का अर्थ है की उसके पास इतनी शक्ति हो की कभी भी कुछ भी कर सकता है ,

लेकिन विश्व के इतिहास में इश्वर ने कभी भी कुछ भी नहीं किया , उसी के नाम पर कितने ही कबीले आपस में लड़-लड़ कर नष्ट हो गए , हजारों सालों से आज तक उसी के नाम पर इंसान ,इंसान से जुदा होकर लड़ रहा है , देश ,देश से जुदा होकर लड़ रहा है कहाँ है इश्वर और उसकी महाशक्ति ,

साम्राज्यवादियों ने शताब्दियो तक सैंकड़ो देशों के करोड़ों इंसानों को गुलाम बना कर रखा, शताब्दियो तक सैकड़ों पीड़ियो ने अपनी हड्डियों तक गला दीं इनकी गुलामी में,कहाँ था इश्वर और उसकी महाशक्ति

हिटलर ने ६ करोड़ इंसानों का क़त्ल किया क्या हिटलर से कमजोर था इश्वर , अमेरिका ने जापान पर अपने एटम बमों द्वारा हमला कर लाखों को क़त्ल किया हजारों को अपंग बनाया , तब क्या अमेरिका के अटमबमों को रोकने की शक्ति इश्वर में नहीं थी ,अगर शक्ति थी तो रोका क्यूँ नहीं

चंगेज खान, हलाकू, तैमूर लंग, हिटलर , जिन्होंने करोड़ों इंसानों का खून बहाया , करोड़ों औरतों ,बच्चों को अनाथ, बेसहारा,और बेघर करने वाले इतिहास के इन महान अत्याचारियो को ईश्वर क्यूँ नहीं रोक पाया , शताब्दियों तक इनके अत्याचारों से उत्पीडित ,व्यथित, इंसानों पर उसे दया क्यूँ नहीं आई

अरे कैसा निष्ठुर इश्वर है जो आंसुओं के अथाह समुन्दर को देखकर भी तठस्थ बना रहा , क्यूँ नहीं अपनी महाशक्ति का प्रयोग किया ,क्या उनसे कमजोर था ,या उनसे डर गया था ऐसा कमजोर और डरपोक इश्वर सर्वशक्तिमान तो क्या दयालु भी नहीं हो सकता ,बल्कि उसका नाम तो चंगेज खान ,हलाकू,तैमूर,और हिटलर के साथ ही जोड़ने लायक है, अगर वो है तो.....

क्यूंकि इन सबसे सर्वशक्तिमान होते हुए भी उसने इन्हीं का साथ दिया या सिर्फ मूकदर्शक बन के बस देखता रहा , क्या इसलिए की बाद में न्याय करेगा ? अरे बाद में मिला न्याय क्या किसी अन्याय से कम है ?जब तुम्हे न्याय करना था तब तुम सोते रहे और कहते हो की बाद में देखेंगे , नहीं चाहिए तुम्हारी झूठी तसल्ली, और ना ही तुम्हारे जैसे किसी इश्वर की हमें जरूरत है जो शक्तिहीन हो, निर्दई हो, और अन्याई हो

क्या ऐसा इश्वर जो शक्तिहीन, निर्दई, और अन्याई हो वो सर्वज्ञ , या सर्वव्याप्त हो सकता है , अगर वो सर्वज्ञ और सर्वव्याप्त हुआ तो ये दुनिया के लिए अभिशाप ही सिद्ध होगा , लेकिन शुक्र है की वो सर्वज्ञ और सर्वव्याप्त नहीं है

कैसे आइये देखते है - अगर वो सर्वज्ञ है तो जब कोई दुखों से व्यथित होकर आत्महत्या को मजबूर होता है तो क्यूँ नहीं वो सर्वज्ञ होने का परिचय देते हुए उसके मरने से पहले ही उसके दुखों को दूर कर देता , उसकी आर्थिक सहायता करता या उसके क्लेशों को पहले ही जान कर उसका समाधान कर देता , जिससे उसके पीछे उसके बच्चे अनाथ न होते ,इसकी बीवी को बिधवा होने का दर्द न सहना पड़ता

देश में ५०-५५ किसान प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं , अभी इसी साल जनवरी से अब तक केवल इन आठ महीनों में ही देश के केवल एक जिले में ५०६ किसानों ने आत्महत्या की , इश्वर सर्वज्ञ था तो क्यूँ नहीं इनकी समस्याओं का निदान किया , या इन्हें निदान का रास्ता बताया ,जिससे आज इनके पीछे दुखी लाखों लोग बर्बाद नहीं होते ,क्या उसे इसका पता नहीं था, था तो क्यूँ बेमौत मरने दिया इन्हें ?

क्या ऐसा इश्वर जो शक्तिहीन ,निर्दई,अन्याई,अज्ञानी हो वो सर्वव्याप्त हो सकता है ,नहीं कभी नहीं, प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में १० लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में बेमौत मारे जाते हैं , लाखों औरतों का प्रतिवर्ष बलात्कार होता है इनमें से हजारों औरतों को बलात्कार के बाद बेरहमी से मार दिया जाता है , दूधपीते बच्चों तक से बलात्कार होते हैं ,दहेज़ के लिए कितनी ही औरतों को जिन्दा जला दिया जाता है , पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष लाखों लोग आतंक का शिकार होते हैं , करोड़ों जिंदगियां नालों, फुटपाथों और झुग्गियों में सड़ रहीं हैं, प्रतिवर्ष करोड़ों बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे हैं,

कहाँ हैं वो सर्वव्याप्त ईश्वर क्या उसे ये दिखाई नहीं दे रहा है या दीखते हुए भी वो इतना असहाय है की कुछ कर नहीं सकता , ऐसे अंधे और असहाय ईश्वर की हमें कोई आवश्यकता नहीं जो सर्वव्याप्त होते हुए भी कुछ न कर सके

Monday, September 12, 2011

डर के आगे जीत है !


जीवन का आधार तीन बातों पर कायम है
१.भोजन- विकास के लिए
२.सुरक्षा- अधिक समय तक जीवन की सम्भावना के लिए
३.सेक्स- अपना वंस आगे बढ़ाने के लिए
यह तीन बातें जीवन का प्राथमिक सिधांत हैं ,चाहे वह अमीबा हो या मानव उसका पूरा जीवन इन्हीं तीन आवश्यकताओं पर ही केन्द्रित रहता है , सुरक्षा की भावना ही डर को जन्म देती है और यही डर आज संसार के सभी जीवों के आस्तित्व में होने का कारण भी है ,इसलिए डर इन्सान के जीवन का अभिन्न हिस्सा है

इन्सान प्रत्येक उस चीज से डरता है जो उसे नुकसान पहुंचा सकती है जैसे -आग ,पानी, खूंखार जानवर इत्यादि, इन सब के आलावा जो इन्सान को सबसे बड़ा डर है वो है मृत्यु का डर या यूं कहें की स्वयं के आस्तित्व के खोने का डर ,पुरापाषाण काल के मानव के इसी एक डर ने कालान्तर में कई सारी कल्पनाओं को जन्म दिया जैसे -भगवान, आत्मा, परलोक, स्वर्ग-नरक, देविदेवता, ताकि स्वयं को तसल्ली दे सके की उसका आस्तित्व मृत्यु के बाद भी रहेगा , यही कल्पनाएँ जिन्हें मानव की सहज बुद्धि ने मृत्यु के डर को निष्क्रिय करने के लिए किया था आगे चलकर तरह-तरह के कर्मकांडों और अंधविश्वासों में परिवर्तित हुईं जिसके फलस्वरूप इन्ही कर्मकांडों और अंधविश्वासों ने धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप ले लिया , आज सैंकड़ों धर्मों के रूप में अज्ञानता का वही व्यवसाय हमारे सामने है , इसीलिए आज भी धर्म दुनिया के तीन सबसे बड़े व्यवसायों में से एक है बाकि दो हैं दवा और हथियार

आज जब मानव उस अन्धकार युग को बहुत पीछे छोड़ कर उस युग में अपने कदम रख चुका है जहाँ से वह ब्रह्माण्ड के रहस्यों की परतें खोल रहा है , पृथ्वी अब उसके लिए रहस्य नहीं रही , जीवन और मृत्यु की पहेलियाँ अब पहले सी जटिल नहीं रहीं , ऐसे में उसे उस धर्म की आज कोई आवश्यकता ही नहीं जिसे उसने अपनी अज्ञानता वश अविष्कृत किया था या उसके अज्ञान काल में आस्तित्व में आई बल्कि मानवता की प्रगति में आज सबसे बड़ी रूकावट धर्म ही है

धर्म आज दुनिया के लिए अफीम के सामान है लेकिन धर्म के व्यवसाई किसी भी कीमत पर इसे समाप्त नहीं होने देना चाहते बल्कि इस अफीम का व्यापार करने वाले इसको समाप्त करने के बजाये इसका नशा और तेज करने में लगे हुए है

मृत्यु जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है उससे डर कैसा , मृत्यु के बाद क्या होगा वो बताने के लिए तो आज तक कोई लौट कर नहीं आया , जीवन जलती हुई मोमबत्ती के लौ के सामान है जब मोमबत्ती का ऊर्जा क्रम टूट जाता है तब वो लौ समाप्त हो जाती है , इसी तरह जब हमारी खरबों कोशिकायें कमजोर हो जाती हैं तो हम बूढ़े हो जाते हैं और जब सभी कोशिकाएं पूरी तरह काम करना बंद कर देती है तो हम मर जाते हैं, यही जीवन की सच्चाई है , इसे समझते ही धर्म का महल ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगा ,क्यूंकि आत्मा ही तो परमात्मा का आधार है और ये दोनों धर्म का आधार ,जहाँ आत्मा मरी वहीँ परमात्मा भी मर जायेगा और इन दोनों के मरते ही धर्म अपने आप ही समाप्त हो जायेगा जो हमें सदियों से आत्मा और परमात्मा के नाम पर डरा कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है

जरा सोचिये - हम कुत्ते से डरते है, शेर से डरते हैं , भेडिये से डरते हैं , सांप से डरते हैं, बिच्छु से डरते हैं, इन्हीं सब के कारण अँधेरे से डरते हैं लेकिन भगवान से हमको डराया जाता है क्यूँ ? क्यूंकि हमारे इसी डर में तो उनकी जीत छुपी है जो इंसानियत को डरा रहे हैं , तो बंधुओं हमें इस डर को भगाना है क्यूंकि इस डर के आगे इंसानियत की जीत है....

Thursday, September 8, 2011

काश कोई धर्म न होता



.......काश कोई धर्म न होता
.......काश कोई मजहब न होता

ना गुजरात कभी सिसकता
ना कंधमाल होता
ना गोधरा, गोहाना
ना मिर्च पुर बिलखता

ना तेरा दर्द होता, ना मेरा घाव होता
तुझसे मुझे मुहब्बत, मुझे तुझसे लगाव होता
ना बम धमाके होते, ना गोलियां बरसती
ना असीमानंद होता, ना कसाब होता

.......काश कोई धर्म न होता
.......काश कोई मजहब न होता

ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते
ना हराम होती, रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता, सुबह के पांच बजते

ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता


ना अर्ध देते , ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता
जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता

ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता
ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना होता
कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता

ना ही गीता होती , और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता, ना भगवान होता
तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता
ना मैं हिन्दू होता, ना तू मुसलमान होता

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता
फिर ना बंगलादेश बंटता, ना पकिस्तान होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

ना आतंक वाद होता, ना अत्याचार होता
ना अन्याय होता, ना भ्रष्टाचार होता
ना आबरू सिसकती, ना बलात्कार होता
ना किसी को जख्म मिलता, ना व्यभिचार होता

ना जातियां ही होती , ना बंटाधार होता
जुल्मो-सितम किसी पे, ना बार-बार होता
ना नफरतें ही होती, ना सरहदें ही होती
ना फसाद होते, बस प्यार-प्यार होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

ना परमाणुओं का खतरा, ना ऐटम-बम होते
ना मिसाइलों की दहशत, ना ड्रोन-बम होते
ना पासपोर्ट लगता, ना किसी पे शक होता
पृथ्वी की हर जमीन पे, सभी का हक़ होता

ना बेबसी ही होती, ना कोई गरीब होता
दुखों से दूर मानव, सुख के करीब होता
ना रोटी की जंग होती, ना झोपड़ का दर्द होता
संसाधनों का अवसर, सबको नसीब होता

ना तीर्थ कोई , ना हज्ज फर्ज होता
कोई ख़ुदकुशी न करता, ना किसी पे कर्ज होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

Friday, September 2, 2011

मिराज - मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की हकीकत


मुस्लिम शरीफ और बुखारी शरीफ की हदीसो के अनुसार मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की जो तस्वीर सामने आती है वह कुछ इस तरह है -

एक दिन सुबह उठकर मुहम्मद ने अपने लोगों को इकठ्ठा किया और उन्हें बताया की ''कल रात इश्वर ने मुझे बहुत ही सम्मान प्रदान किया मैं सो रहा था की जिब्रील आये और मुझे उठाकर काबा ले गए ,

यहाँ लाकर उन्होंने मेरा सीना खोलकर जम-जम के पानी से उसे धोया और फिर उसे इमान और हिकमत से भरकर बंद कर दिया , इसके बाद जिब्रील मेरे लिए सफ़ेद रंग का बुरक नाम का घोडा जो खच्चर से छोटा था लाये मैं उस पर सवार हुआ ही था की अचानक हम बेतलहम पहुँच गए यहाँ बुरक को मस्जिद के दरवाजे पर बांध दिया गया ,

इसके बाद मैं जिब्रील द्वारा मस्जिद-ए-अक्शा ले जाया गया जहाँ में दो रकात नमाज पढ़ी | इसके बाद जिब्रील मेरे सामने दो प्याले लेकर आये एक दूध से भरा था और दूसरा शराब से लबरेज......मैंने दूध वाला प्याला लिया जिब्रील ने कहा की आपने दूध वाला प्याला स्वीकार कर धर्माचार का परिचय दिया है |

इसके बाद आसमान का सफ़र आरम्भ हुआ , जब हम पहले आसमान पर पहुंचे तो जिब्रील ने वहां तैनात फ़रिश्ता (चौकीदार) से दरवाजा खोलने को कहा , उसने पूछा "तुम्हारे साथ कौन है ? और क्या ये बुलाये गए हैं ?'' जिब्रील ने कहा "हाँ बुलाये गए हैं "यह सुनकर फ़रिश्ते ने दरवाजा खोलते हुए कहा "ऐसी हस्ती का आना मुबारक हो" जब अन्दर दाखिल हुए तो उनकी मुलाकात आदम से हुई , जिब्रील ने मुहम्मद को बताया की ये आपके पीता और पूरी मानव जाती के पूर्वज हैं इनको सलाम करो ,

इसके बाद दुसरे आसमान पर पहुंचे और पहले की तरह यहाँ भी फ़रिश्ते को परिचय देने के बाद अन्दर दाखिल हुए जहाँ याह्या और ईसा से परिचय हुआ

इनको सलाम करने के बाद मुहम्मद इसी तरह तीसरे आसमान पर गए यहाँ उसुफ़ थे चौथे पर इदरीस पांचवे पर हारून, छठे पर मूसा, और अंत में सातवे आसमान पर इब्राहीम से मुलाकात हुई ,

इसके बाद जिब्रील मुहम्मद को लेकर "सिदार-तुल-मुन्तहा" पहुचे जहाँ एक पेड़ है जिस पर असंख्य सितारे जुगनुओं की तरह चमक रहे थे , यहीं अल्लाह से मुलाकात हुई जहाँ अल्लाह ने मुहम्मद को अपने अनुयाइओ के लिए ५० नमाजें भेंट कीं , जब वापस आने लगे तो मूसा ने पूछा की क्या तोहफा मिला उन्होंने पचास नमाजों के विषय में बताया , मूसा ने कहा तुम्हारे अनुयाई इस बोझ को नहीं उठा पाएंगे जाओ कुछ कम करवा आओ इस तारा पचास नमाजें घाट कर पांच समय की हुई

इस यात्रा में मुहम्मद को जन्नत और दोजख लाइव दिखाया गया , वापसी में मुहम्मद फिर धरती पर बैतूल मक्दिस गए वहां सूफी और महात्माओ को नमाज पढाई , इसके बाद मुहम्मद अपने घर वापस लौटे इस तरह मुहम्मद के इस मनगढ़ंत मिराज यात्रा का सफ़र समाप्त हुआ

सुबह जब मुहम्मद ने अपनी इस काल्पनिक स्वर्ग यात्रा का विवरण लोगो को बताया तो मुहम्मद के कुछ चमचों(अनुयाइओ) ने इस झूठ का एक एक शब्द सच मान लिया , परन्तु जो सत्य के पुजारी थे उन्होंने इस झूठ को ये कह कर ख़ारिज कर दिया "तू तो बस हमारे ही जैसा एक आदमी है हम तो तुझे झूठे लोगों में से ही पाते हैं" कुरान -अश-शुअरा, आयत १८६ और जो चमचे थे जिन्हें इस इस्लाम नाम की चीज से आयाशिया करने का अवसर प्रदान होता था उन्होंने इसे मुहम्मद का एक और चमत्कार घोषित कर दिया

जब हम इस यात्रा विवरण की कहानी को तर्क की कसौटी पर कसते हैं तो कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जैसा की हदीसों में कहा गया है की सुबह मुहम्मद ने लोगों को ये बात बताई इसके अलावा इस बात का और कोई प्रमाण नहीं है न किसी ने जिब्रील को देखा न किसी ने बुरक नाम की गधही को देखा बस मान गए क्यूंकि उनका सरदार कह रहा था

इस विवरण से तो यही पता चलता है की इस घटना से पहले मुहम्मद के अन्दर इमान था ही नहीं तभी तो जिब्रील मुहम्मद को काबा ले जाकर उनका सीना फाड़ के इमान घुसेदते है , अगर उनके अन्दर ईमान था तो फिर जिब्रील को ऐसा करने की क्या आवश्यकता पड़ी , और क्या इस से पहले मुहम्मद के सीने में गन्दगी भरी हुई थी जिसे जिब्रील ने जम-जम के पानी से धोया ,

और क्या इस बात का कोई आधार है की इमान सीने में होता है , धर्म या इमान अच्छाई या बुराई तो इन्सान के मस्तिष्क की देन है ये इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति को बचपन में कैसे संस्कार या उसका विकास किस प्रकार हुआ है , इस तरह ईमान दिमाग के अन्दर होता है न की सीने में परन्तु क्या सर्वज्ञान संपन्न अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं था जिसे वह अपने फ़रिश्ते को सिखाते की बेटा इमान सीने में नहीं दिमाग में होता है जाओ और मुहम्मद का दिमाग खोल के उसको साफ़ करना सीने को नहीं वहां दिल होता है जो दिमाग को खून पहुँचाने का काम करता है

इसके बाद हम चलते हैं दूध पीने वाली घटना पर जब जिब्रील मुहम्मद को दूध और शराब से भरा गिलास देते हैं तो मुहम्मद दूध को स्वीकार करते हैं और शराब से इंकार करते हैं इस पर जिब्रील कहतें हैं की शराब को अस्वीकृत कर निश्चय ही आपने धर्माचार का परिचय दिया है

अब इस घटना पर भी कई प्रश्न खड़े हो जाते है जैसे की क्या जब जिब्रील मुहम्मद का सीना खोल कर कैसेट बदल देते हैं यानि धोकर ईमान घुसेड देते हैं तब तो आदमी धर्माचार ही करेगा न , गाने की कैसेट डालोगे तो गाना ही बजेगा न फिल्म थोड़े ही चलेगी ,और क्या जिब्रील दूध और शराब देकर परिक्षण कर रहे थे की जो ईमान घुसेड़ा गया है वो सही काम कर रहा है की नहीं यानी जिब्रील को अपने इस कैसेट बदलने की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं था , मतलब की मुहम्मद ने अगर दूध पिया तो वह सीने में ईमान घुसेड़ने की वजह से अन्यथा वह शराब ही पीते.......

Thursday, September 1, 2011

धर्म का दोगलापन


धर्म की बुनियाद ही अंधविश्वास पर है जिसे आस्था भी कहा जाता है सत्य से धर्म का सदियों से बैर रहा है, अनैतिकता,अत्याचार,सामाजिक असमानता और अकर्मण्यता धर्म की दुनिया को ये महान सौगात है

जब भी किसी ने धर्म के उपर उंगली उठाई उसको हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया....धार्मिक लोग गिरगिट की तरह होते है राम के नाम पर भव्य मंदिर बनेंगे ,हर साल अरबों रुपये रावण दहन के नाम पर जलाएँगे अरबों रुपये राम के नाम पर (दीवाली)बारूद में झोंक देंगे सब राम 'भगवान' के नाम पर....

लेकिन जब कहोगे की राम ने एक स्त्री के नाक-कान क्यूँ काट दिए थे तब वही राम एक साधारण मानव बना दिए जाएँगे और कहा जाएगा की अपनी बीवी को बचाने के लिए राम ने ऐसा किया....यही भगवान राम मामूली इंसान बना दिया जाएगा जब पूचोगे की सीता को क्यूँ निष्कासित किया, यही राम भगवान राम बाली-वध, शम्बूक-वध, लक्षमण निष्कासन, लंका-दहन जैसे कुकृतों पर भी मामूली इन्सान बन जाता है, गिरगिट की तरह रंग बदलने की इसी प्रवित्ती ने धर्म को जिंदा भी रखा हुआ है,

महात्मा बुध को इनके ही धर्म ग्रंथ गलियाँ देते नहीं आघाते वाल्मीकि रामायण बुध को चोर घोसित करती है (देंखे-अयोध्या-कांड,सर्ग-109,श्लोक-34)लेकिन जब अपनी महानता बखाननी हो तब यही बुध विष्णु के अवतार घोषित कर दिए जाते हैं,

इसी तरह दयानंद सरस्वती का भी इस्तेमाल किया जाता है अपने दोगलेपन को साबित करने के लिए....जिनका कहना था इन धर्मग्रंथों के लेखकों के बारे में की "ये लोग पैदा लेते ही मर क्यूँ नही गये या केवल अपनी माँ को प्रसूति में प्रीडा देने के लिए ही इनका जन्म हुआ"(एकादश समुल्लास)

Wednesday, August 31, 2011

धर्म और समाज


अतीत में हुई गलतिओं को समझे बिना हम उज्वल भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते, कुरान तो स्त्रिओं को खेती का दर्जा देता है, इस्लाम ही क्या परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हर धर्म में स्त्री का स्थान केवल उपभोग तक ही सीमित रहा है, कोई भी धर्म किसी भी स्त्री के लिए अभिशाप से कम नहीं है |

हिन्दू धर्म में जब स्त्री की बात होती है तब पौराणिक कथाओं से २-४ उदाहरण गिना दिए जाते है जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई भी सम्बन्ध नहीं | ये धर्म के ही देन है की आज तक भी नारीओ का उथान नहीं हो पाया है|

भारत में दहेज के लिए आज भी लगभल १० स्त्रिओं को जला दिया जाता है, प्रतियेक घंटे ३ बलात्कार होते है, प्रतियेक वर्ष चालीस लाख लड़किओं को वेश्यावृति के लिए विवश कर दिया जाता है | स्र्तिओं की शिक्षा के मामले मैं भारत का स्थान १६०वां है, जो हमारे पड़ोसे देशों से भी कम है| स्त्री मृत्यु दर भी भारत मैं सर्वाधिक है| पिछले २० वर्षों में लगभल एक करोड़ स्त्रिओं को गर्भ मैं भी मर डाला गया | देश के ६५ % स्त्रिओं की शादी १३ वर्ष से भी कम आयु मैं कर दी जाती है अब जरा इन आंकड़ों से पश्चिम की स्त्रिओं की स्तिथि की तुलना भी कर लीजये आपको थोड़ी बहुत वास्तविकता का ज्ञान हो जायेगा |

आप कहेंगे ये सब तो व्यवस्था की खामियां है, नहीं ये हमारे धर्म की देन है ,जी हाँ सामाजिक विद्रूपों का स्रोत परमपराओं और सनस्क्रतिओं में छुपा होता है , परमपराओं और संस्कृतियों को उर्जा धर्म से मिलती है ,इस तरह वर्तमान में ही नहीं हर युग में देश की सभी समस्याओं के मूल में धर्म एक प्रमुख कारण अवश्य रहा है | अब जरा संशेप में ही धर्म के कुछ अनमोल वचन सुन लीजये जो स्त्रिओं के विषये में है

बहुत ही संशेप में
अधम ते अधम अधम अति नारी....
१. जो नीचों से भी नीच है नारी उससे भी नीच है... - (रामचरित मानस अरण्य-कांड, 35 शलोक 2 और 3 )
२. नारी यदि पुरुष की कामेच्छा पूर्ति न करे तो उसे हाथों से या लाठी
से पीटे और कहे की मैं तुम्हे बदनाम कर दूंगा... (वृहद्रान्यक उपनिषद
स्कन्द ६ अद्याय ४ शलोक नो ७ )

३. स्त्री और भूमि दोनों बराबर हैं ... (पराशर स्मृति अद्याय १० शलोक २५ )

४. जो व्यक्ति १२ वर्ष से पहले अपनी कन्या का विवाह नहीं करता वह उस कन्या का मासिक धर्म पीता है... (पराशर स्मृति अद्याय 7 शलोक ७)
भारत में कभी स्त्रिओं को धार्मिक सती प्रथा के नाम पर जिन्दा जला दिया जाता था, सती प्रथा हिन्दू धर्म एव धर्म शास्त्रों का अभिन्न अंग था

|जातिवाद का जहर प्रतिएक भारतीओं के खून में बसा हुआ है आज भी जाती के नाम पर प्रतिदिन ३ व्यक्ति मारे जाते है प्रतिदिन २ दलित महिलाओं से बलात्कार होता है कुपोशन के शिकार एवं बालमजदूरी में लिप्त बच्चे 99 % दलित ही क्यूँ होते है ,ऐसा
क्यूँ है SC /ST/OBC पर होने वाले सभी प्रकार के भेद भाव एवं अत्याचारों का मूल स्त्रोत हमारा धर्म एवं धर्म शाश्त्र ही है कुछ उदहारण देखिये
१ .यदि कोई नीची जाती कव्यक्ति ऊंची जाती का कर्म करके धन कमाने लगे तो राजा को यह अधिकार है की उसका सब धन छीन कर उसे देश से निकल दे (मनुस्मृति
१०/२५ )
२.बिल्ली नेवला चिड़िया मेंडक उल्लू और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC की हत्या में है (मनुस्मृति ११/131 )

३.शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC द्वारा अर्जित किया हुआ धन ब्रह्मण उससे जबरदस्ती छीन सकता है क्यूंकि उसे धन जमा करने का कोई अधिकार ही नहीं है (मनुस्मृति ८/416 )


इस प्रकार के आदेशों से तो हिन्दू धर्म के सभी धर्म शाश्त्र भरे पड़े है श्री राम शम्बूक का वध सिर्फ इस लिए कर देते है क्यूंकि वो एक शुद्र होकर शिक्षा देने का कम कर रहा था .इन्ही वजहों से देश में दलितों पर अत्याचार होते है जरा सोचिये जब इन अत्याचारों को रोकने के लिए आज इतने क़ानून हैं फिर भी देश में "मिर्चपुर" जैसी घटनाएँ होती हैं जहा एक विकलांग लड़की के साथ उसके पुरे परिवार को सिर्फ इसलिए जिन्दा जला दिया जाता है क्यूंकि उस दलित परिवार के पास मोटर साईकिल खरीदने की हैसियत हो जाती है तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते की अतीत में इन अभागे 80 % शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC का क्या हाल होता होगा ?

जहा तक देश की गुलामी से हमारे पतन की बात है तो आपको बता दू की सतीप्रथा पर रोक अन्रेजो ने ही लगाई.स्त्रियों को पढने का अधिकार भी उन्हों ने ही दिया .अन्याय अत्याचार और असमानता पर आधारित मनुस्मृति की जगह समानता पर आधारित इन्डियन पीनल कोड उन्ही की दें है ,

उन्ही की भासा इंग्लिश की वजह से ही हमारे नेता आधुनिक दुनिया के संपर्क में आये और डेमोक्रेसी,रिपब्लिक,सेपरेशन आफ पावर, क़ानून का शाशन,सेकुलरिज्म, इक्विलिटी,लिबर्टी, हुमनराइट, और जस्टिस आदि की जानकारी पाई

आजादी के बाद उन्ही अंग्रेजो की भासा के माध्यम से भारतीय प्रफेशनल्स साइंस,इकनामिक्स,साफ्टवेअर,मनाज्मेंट,मेडिकल साइंस आदि क्षेत्रों में दुनिया भर में नाम कम रहे है ,इस तरह भारत को सभ्य बनाने में अंग्रेजो का बहुत बड़ा योगदान भी रहा है जिसके लिए हमें उनका आभार मानना चाहिए -

हिन्दू संस्कृति ही विश्व में एकमात्र ऐसी संस्कृति रही है जहा मेहनत करने वाले को शिल्पियों को कारीगरों को हीन समझा जाता रहा है उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाये कदम कदम पर तिरस्कृत किया जाता रहा गलियां दी जाती रहीं जिसके परिणाम स्वरुप कुछ अपवादों को छोड़ कर यहाँ विज्ञान पनप ही नहीं पाया

महाभारत के अनुसार चिकित्सा,शिल्प,अस्त्रशस्त्र के निर्माण,चित्रकारी,कारीगरी,कृषी तथा पशुपालन यह सब नीच कर्म है

(अनुशासन पर्व अ० २३श्लोक १४और२४---) (अनुशासन पर्व अ०90श्लोक६/८/9) (अनुशासन पर्व अ०135श्लोक 11)

तुलसी दस जी का तो कहना है की पुजिये विप्र ज्ञान गुण हीना ,शुद्र न पुजिया ज्ञान प्रवीना ...और ढोल गावर शूद्र (यानि शC /श्ट /ओBC) पशु नारी यह सब ताडन के अधिकारी

इन सबके उलट विदेशो में आधुनिक विज्ञान के जन्म दाताओं में अधिकतर व्यक्ति ऐसे ही परिवारों में पैदा हुए जहा हिन्दू धर्मशास्त्रो के अनुसार नीच कर होते थे -

उदाहरनार्थ जेम्स्वाट बढई का बेटा था , एडिसन का पिता लकड़ी के तख्ते बनता था ,लुइ पाश्चर कगरिब पिता चमड़ा कम कर अपना परिवार पलता था ,बेंजामिन फ्रिन्क्लिन का बाप साबुन और मोमबत्ती बनता था , सेफ्टी लंप के अविष्कारक ड्युई का बाप नक्काशी करता था ,फैराडे लुहार का बेटा था ,ज़ाआऱ्ज़्श्टेएFआण्शाण का बाप गरीब फायरमैन था ,न्यूटन और मार्कोनी किसान के बेटे थे ,डार्विन का पिता चिकित्सक था ,आर्कराईट एक साधारण नाई का बेटा था

संघ और तालिबान


संघ और तालिबान में कोई विशेस अंतर नहीं, इस्लाम के नाम पर आतंक के सहारे दिलों में जो ख़ौफ़ तालिबान ने डाली हुई है वहाँ के लोगों पर, वही डर संघ द्वारा भारत में भी हिंदुत्व के नाम पर पैदा किया जा रहा है, जिस प्रकार तालिबानी क़ुरान आदेश पर नौजवानों को 'ब्रेन्वाश' कर के उनसे आतंकी घटनाओं को आसानी से करवा लेते हैं 

, उसी प्रकार 'ब्रेन्वाश' करके यहाँ दारा, बाबूबाजरंगी, असीमानंद,प्रगया, आदि से इसी राष्ट्रवाद के नाम पर बड़े बड़े कुकृत्यों की भी आसानी से करवाया जाता है, बस फ़र्क इतना है की तालिबानी कुकृत्यों को अंजाम देकर मुकरते नहीं....यहा बड़े बड़े कुकृत्यों को करवाकर उनसे संबंध तोड़ लिया जाता है, या संबंध ना होने का बहाना बना दिया जाता है बस...और कोई अंतर नहीं.......उनकी सोच की परिणति कसाब द्वारा बड़े हमले पर होती है.....इनकी परिणति असीमनंद द्वारा धमाकों पर हो जाती है.....उनके द्वारा भी निर्दोष ही मरतें हैं यहा भी निर्दोष ही मरतें हैं.....यहाँ दारा तो वहाँ तुफैल.....कोई अंतर नहीं जनाब...वहाँ ओसामा यहाँ असीमा(नंद) क्या अंतर है भाई.....

.इनके लिए तो पूरे देश की मीडिया और जो भी इनकी सच्चाई जनता है सब इनके दुश्मन हो जाते हैं, इनकी नीति बुरी है क्यूंकी इनकी नियत बुरी है, ये लोग अपने असंखों कुकर्मो को छुपाने के लिए असंख्यों कुतरकों का सहारा लेते हैं तब भी अपने घिनौने चेहरे को नहीं छुपा पाते.....इन्हे लगता है की देश बेवकूफ़ है अरे भाई अच्छे कर्म करोगे तो लोग पागल थोड़े ही हैं जो तुमहरे उपर व्यर्थ आरोप लगाएँगे, मदर टेरेसा ने थोड़े वक़्त में मानवता के लिए कितना महान काम किया क्या देश ने उन्हें सम्मान नहीं दिया, आप बदनाम हैं तो क्यूँ कभी सोचा हैं......

पूरी ईमानदारी से थोड़ा अपने आज़ादी से अब तक के कुकर्मो के लंबे इतिहास का अवलोकन अगर संघ करले लो उसे स्वयं ही खुद से घृणा होने लगेगी संघ द्वारा बार-बार कश्मीरी ब्राह्मणों के राग अलाप से उसकी मानसिकता का पता चल जाता है

क्या संघ ने कभी गोहाना,मिर्चपुर,खैरलांजी,झज्जर के पीड़ितों की सुध ली है क्या उनके लिए एक भी घड़ियाली आँसू बहाए है,नहीं क्यूंकी वे दलित जो ठहरे....


क्या संघ ने कभी खाप पंछयातों के विरुढ़ कोई व्यापक आंदोलन छेड़ा, नहीं क्यूंकी ये हमारी महान संस्कृति का हिस्सा जो ठहरी....

क्या संघ ने कभी विधवा विवाह को प्रोत्साहित कर नारकिय जीवन जी रही लाखों विधवाओं का दुख दूर करने का प्रयास किया, नहीं क्यूंकी शास्त्रों के विरुढ़ नहीं जा सकते.....

क्या संघ ने कभी सरकारी ज़मीन पर कुकुरमुत्तों तरह की उग आए लाखों करोड़ों मंदिरों को ध्वस्त करने के लिए कुछ किया, नहीं क्यूंकी ये तो धार्मिक स्थल है....

क्या संघ ने कभी उन करोड़ो बेघरों को बसाने के लिए कुछ किया जिनकी पीडिया नालों और फुटपातों पर गुजर गई या गुजर रहीं हैं, नहीं क्यूंकी ये तो अपने पिछले जन्म के पाप काट रहें है....

.क्या संघ ने कभी उन खरबों रुपयों की देश की संपत्ति को निर्धानों को देने की माँग की जो लाखों मंदिरों में चढ़ावे के रूप में 'भगवान' को भोग लगने के बाद सड़ रहे हैं, नहीं क्यूंकी वो आस्था का मामला है.....

क्या संघ ने कभी अपनी 6 करोड़ राष्ट्रवादियों की फौज होते हुए भी राष्ट्र की मूलभूत समस्याओं के निदान के लिए कुछ किया, नहीं क्यूंकी ये राष्ट्रवाद तो ब्राह्माणवाद को स्थापित करने का ढोंग है......

.इनका वास्तविक ध्येय देश या राष्ट्र की उन्नति से तो कतई नहीं है, इनका अंतिम लक्ष्य है राष्ट्रवाद की आड़ में ब्राह्माणवाद की स्थापना, देश में समानता पर आधारित संविधान को स्थगित कर असमानता पर आधारित मनुस्मृति को एक बार फिर से देश का खून चूसने के लिए लागू करना संघ के महान राष्ट्रवाद का नमूना देश सत्तर सालों से देख रहा है,

संघ की राष्ट्रवाद के नाम पर राष्ट्र को खंडित करने की मानसिकता के अनुरूप ही संघ अपने पापों को ढकने के लिए समय समय पर 'अभिनव भारत' 'राम सेना' आदि नामों से अपने लोगों के द्वारा देश की एकता और अखंडता को छिन्न-भिन्न करने का षड्यंत्र प्रायोजित करवाता है और फिर जब इन लोगों के कुकर्म सामने आ जाते हैं तो बड़ी ही बेशर्मी से इन लोगों का संघ से दिखावे के लिए संबंध ना होने का ढोंग किया जाता है और अप्रत्यक्ष रूप से बड़े-बड़े वकील नियुक्त किए जाते हैं इन को निर्दोष साबित करने के लिए,

कौन नहीं जानता की गोडसे,बाबूबाजरंगी,दारा सिंह,असीमनंद, श्रीकांत पुरोहित,प्रगया ठाकुर, जैसों का जन्म दाता कौन है, आर एस एस ही इन जैसे हज़ारों को पैदा करके उनके दिमाग़ को राष्ट्रवाद के नाम पर ब्राह्माणवाद की अफ़ीम द्वारा पागल कर उन्हें राष्ट्र को लाहुलुहन करने की ट्रेनिंग देकर विहिप,बजरंगदल,जैसे ना जाने कितने ही छद्म हिंदुत्वादी घेराबंदियों द्वारा महान से महान कुकृत्यों को आसानी से अंजाम दिया जाता है,

इतिहास इनके द्वारा राष्ट्र को दिए गये घाओं से लाहुलुहन है, गुजरात, कंधमाल के घाव अभी भी हरे हैं संघ अगर वास्तव में राष्ट्रवाद का समर्थक होता तब वो अवश्य सार्वजनिक तौर पर जातिवाद का विरोध करता परंतु यहा तो हाँथी के दाँत खाने के और दिखाने के और हो जाते हैं, संघ को राष्ट्र की चिंता होती तब ना वो जाती को जड़ से समाप्त करने के लिए धर्मशास्त्रों की मान्यता को निरस्त करने का प्रयास करता, उसे तो राष्ट्रवाद की आड़ में ब्राह्माणवाद की स्थापना करनी है,

भारत में जाती प्रथा का क्या कारण है या था, दलित उत्पीड़न की घटनायें क्यूँ होती हैं महिलाओं की दुर्दशा क्यूँ हैं, इन सब के लिए क्या संघ ने 85 वर्षो में कुछ किया,

गाँधी की हत्या से लेकर गुजरात,कंधमाल में हमने संघ के झूठे राष्ट्रवादी चेहरे के पीछे छुपे असली डरावने चेहरे के कुकर्मो को देखा और सहा है, अरे एकता और अखंडता के नाम पर देश को खंड-खंड करने पर तुले हो और बात करते हो राष्ट्रवाद की.....याद रखो की कुकर्म अधिक दिन च्छुपते नही, सत्तर साल बहुत होते हैं देश संघ की असलियत को जान चुका है.....अभी भी समय है अपने पापों का प्रायश्चित करने का शायद देश माफ़ भी कर दे.....

महाभारत और राष्ट्रवाद


राष्ट्रवाद की बात करने वालों को पहले अपने उन शास्त्रों को गटर में फैंक देना चाहिए जो देश को जाती और क्षेत्रवाद के नाम पर पृथक करती है, महाभारत राष्ट्रवाद की कितनी बड़ी समर्थक है उसका एक उदाहरण -

मलम पृथ्वियाँ वाहीकाः,
स्त्रीणा मद्रस्त्रियो मलम!!

मनुष्णन मलम म्लेच्छः
वृिषला दक्षीणतयाह स्तेना वाहीकाः
,
संकरा वैइ सुरष्ट्राः
आरात्तजान पंचदान धिगस्तु!
(महाभारत-कर्णपर्व,अध्याय45,श्लोक23से38)

अर्थात---वाहिक(पंजाबी) लोग सारी धरती का गंद हैं,सारी दुनिया की स्त्रियों का गंद मद्र देश की स्त्रियाँ हैं,म्लेच्छ सब मानवों का गंद हैं, दक्षिण वासी लोग मूर्ख-शूद्र हैं,पंजाबी चोर हैं,सुराष्ट्र के लोग दोगले हैं,पंजाबियों पर लानत है/

अनुवाद का संदेह हो तो किसी भी संस्थान से छापे महाभारत के हिन्दी अनुवाद को पढ़ लीजियेगा

क्या वाल्मीकि शूद्र थे ?


वाल्मीकि को शूद्र कहना ये भी एक बहुत बड़ा प्रोपगैंदा है..जिसके सहारे लाखों दलितों को वाल्मीकि का वंशज बताकर उन्हें हिंदू धर्म को त्यागने से रोक दिया गया,और बड़ी ही हरामखोरी के साथ उनका नाम एक ब्राह्मण कवि को शूद्र बताकर उसके साथ जोड़ दिया गया, वाल्मीकि मनु के दसवें पुत्र प्रचेता के पुत्र थे (देखें-वाल्मीकि रामायण,उत्तर कांड 96/19) वाल्मीकि स्वयं कहतें हैं की उनका जन्म द्वीज ब्राह्मण कुल में हुआ परंतु नीच शूड्रों के संपर्क के कारण डाकू बन गया (अयोध्या कांड सर्ग 92 श्लोक 65से 86) इसके अलावा भी आनंद रामायण, कृतिवास रामायण, स्कंदपुराण, भविश्यपुराण, रामचरितमानस आदि में उनके ब्राह्मण होने की बात ही लिखी है......

धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा


लोकपाल बिल के क़ानून बन जाने से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा यह मानना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, भ्रष्टाचार का दीमक तो पूरे प्रजातंत्र को लग चुका है जिसे कोई लोकपाल ठीक नहीं कर सकता,तंत्र को चलाने वाले विदेश से आयात हो कर नहीं आते हैं बल्कि प्रजा ही तंत्र की पोषक-चालक होती है,

देश में हुए इन प्रदाशनों में शामिल हुए लोगों में कितने प्रतिशत लोग गर्व से आईने के आगे खड़े होकर यह कह सकतें हैं की उन्होने कभी भी अपना काम निकलवाने के लिए किसी को रिश्वत नहीं दी,पूरी ईमानदारी से अपना कर भरते है,कभी भी अपने लाभ के लिए सरकारी आवेदन पत्रों में झूठ नहीं बोला,और कभी भी बिजली,पानी की चोरी नहीं की,

मैं स्वयं भी इस भीड़ का हिस्सा बना था,परंतु में स्वीकार करता हूँ की अपने लाभ के लिए मैने उपरोक्त सभी काम कभी ना कभी किए हैं अगर में स्वयं भ्रष्ट हूँ तो तंत्र से भ्रष्टाचार मिटाने का ढोंग करने से क्या लाभ? तंत्र भ्रष्ट है क्यूंकी प्रजा भ्रष्ट है,प्रजा भरषट है क्यूंकी प्रजा की संस्कृति भ्रष्ट है,संस्कृति भ्रष्ट है क्यूंकी संस्कृति का पोषक हमारा धर्म और धर्मग्रन्थ भ्रष्ट हैं,

तो वास्तव में अगर हम अपने पूरे तंत्र को ठीक करना चाहतें हैं भ्रष्‍ट-आचार को जड़ से समाप्त करने के इच्छुक हैं तो हमारी लड़ाई धर्म और धर्मग्रंथों के विरुध होनी चाहिए,बाबा साहेब द.भीम राव अंबेडकर के शब्दों में ''अगर हम वास्तव में क्रांति चाहतें हैं तो सबसे पहले हमें अपने धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा,इसके बिना परिवर्तन का नाम लेना भी व्यर्थ है'' और ''सामाजिक परिवर्तन के बिना राजनैतिक परिवर्तन संभव नहीं''

तो दोस्तों क़ानून पर कानून बनाने से परिवर्तन नहीं होने वाला,देश में चोरी के लिए क़ानून है क्या उससे चोरी रुकी कत्ल के लिए 302 है फिर भी प्रत्येक वर्ष 65000 लोगों की हत्याएं होती हैं इसी तरह सिर पे मैला ढोने को रकने का क़ानून है फिर भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है,दलितों की सुरक्षा के लिए क़ानून हैं फिर भी मिर्चपुर,झज्जर,गोहाना जैसी घटनायें होती हैं,

मेरे दोस्तों कमी हमारे अंदर है जबतक हम ठीक नहीं होंगे तंत्र ठीक नही होगा,तब-तक इस प्रकार के प्रदर्शन सिर्फ़ और सिर्फ़ हुडदंग बनकर ही रह जाएँगे कुछ बदलेगा नहीं ,

Tuesday, August 30, 2011

आजादी का त्यौहार


पंद्रह अगस्त को मिला हमें आजादी का उपहार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

जी करता है इस ख़ुशी में झूमें हम सौ बार
आजादी का मतलब भी सोचे तो एक बार

कहने को आजाद हुए हम
और यूँही बढ़ गए आबादी के रूप में
या बदल लिया है चोला
एक और गुलामी ने आजादी के रूप में

कभी तुर्कों ने , मुगलों ने, अंग्रेजों ने लूटा
देश आजाद हुआ तो अपनों ने लूटा

'भारत माता' तो लुटी गयी हर बार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

कड़ी धूप में खेतों में वो हल चलता है
और पेट पे पत्थर बांधकर रातों को सो जाता है
दो वक्त की रोटी को दर-दर ठोकर खता है
और अंत में जहर खाकर बच्चों संग मर जाता है

कौन जिम्मेदार है इस बर्बादी का
क्या यही मतलब है आजादी का

सुनता नहीं अब कोई किसी की चीख पुकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

आजादी का मतलब भी आज हम भूल गए
जिस आजादी की खातिर 'वो' फांसी पे झूल गए
मिलती नहीं आजादी बिना खड्ग बिना ढाल
'उन' शहीदों के खून ने किया था ये कमाल

आजादी का मतलब हमने अभी पहचाना ही नहीं
खुले गगन में उड़ना हमने अभी जाना ही नहीं

धर्म के आडम्बरों को छोड़ कर
परम्पराओं के बंधनों को तोड़ कर
बदल रही है पूरी दुनिया
अभी हम नहीं हैं तैयार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

ये कैसी आजादी है भूखी आधी आबादी है
शहरों की खुशहाली क्या जब गावों में बर्बादी है
भूख गरीबी और कुपोषण ने जानता को आ घेरा है
देश की आधी आबादी का झोपड़ में बसेरा है

जन मन गण आज भी परतंत्र है
इससे किसी को क्या मतलब देश तो स्वतंत्र है
आजादी के नाम पर स्विस बैंकों को भरते है
आजादी का ढोंग रचाना इन्ही का एक षड्यंत्र है

बहुजन को नहीं मिला अबतक उसका अधिकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

भय, भूख, और भ्रष्टाचार है
हर तरफ जुल्म और अत्याचार है
ये आजादी का कैसा त्यौहार है
हर तरफ आतंक का व्यापर है

लोकतंत्र के नाम पर लूट तंत्र का राज है
जाती धर्म के नाम पर बंटा हुआ समाज है

न नियत है न नीति है कैसी है सरकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

मैं अपने मित्रों से ये निवेदन करता हूँ


मैं अपने मित्रों से ये निवेदन करता हूँ की वे मेरे नाम के कारण मेरे लिए ''आपका समाज'' या ''सुधारवादी मुस्लिम''जैसे शब्दों का प्रयोग न करें क्यूंकि अपने लिए मुस्लिम संबोधन को मैं गाली सामान समझता हूँ ,मैं आपको बता दो की मैं मुस्लिम नहीं हूँ मैं इस्लाम को कबका छोड़ चुका हूँ,सभी पारिवारिक अंतर्विरोधों को सहन करते हुए मैंने यह कदम उठाया,आज मैं या मेरे बिविबच्चे सभी धार्मिक आडम्बरों से आजाद होकर खुश हैं,

मैं इसी भारतीय समाज का हिस्सा हूँ मेरे पूर्वज इसी भारतीय समाज के छुआछूत,अश्प्रिश्यता,जातीय घृणा,एवं अछूतों पर किये गए अमानविये कुकृत्यों के कारण इस्लाम को अंगीकार करने को विवश हुए थे,इस तरह मैं स्वयं हिन्दू धर्म के जातिवाद का भुक्त भोगी रह चुका हूँ,इसी वजह से मैं किसी भी तरह इस भारतीय समाज के कायाकल्प का इच्छुक एवं इसके लिए अपने स्तर पर प्रयत्नशील भी हूँ,

भारत बंगलादेश एवं पाकिस्तान के नब्बे प्रतिशत मुस्लिम या ईसाई हिन्दू धर्म के जातिवाद की बीमारी के कारण ही अतीत में इससे अलग हुए जिन कारणों से यह सब हुआ वो जातिवाद नाम की बीमारी आज भी कायम है आज भी हिंदुस्तान में झज्जर,गोहाना,या मिर्चपुर की घटनाएं होती है इन्हीं वजहों से आज भी धर्मपरिवर्तन की घटनाएं जोरों से हो रहीं हैं प्रबुध्ध वर्ग के लोग अप्रत्यक्ष रूप से प्रज्ञा या असीमानंद का समर्थन करने की बजाये जातिवाद का विरोध क्यों नहीं करते

क्यूँ नहीं ये लोग समाज में अपने घर से आरम्भ करते हुए अतार्जतिये विवाहों का समर्थन करते,अमेरिका के अनुसार भारत को महाशक्ति घोषित किये जाने पर तो बहुत से लोग खुश होते है परन्तु सरकारी कुछ गैर सरकारी सूत्रों के अध्यन के बाद जो भारत की सच्ची तस्वीर निकल कर सामने आती है वो इन लोगों को हजम नहीं होती,

मेरा सम्बन्ध बिहार से है और मैं लगभग भारत के आधे से भी अधिक राज्यों में घूम चुका हूँ मुझे असली भारत का अनुभव है मैं जहाँ भी जाता हूँ रेल की निम्न श्रेणी में ही यात्रा करता हूँ बिहार झारखण्ड बंगाल जाने वाली ट्रेनों में कभी आपने देखा है इंसानों की हालत को किस तरह जानवरों की भांति ठूसा कर जाते है,बिहार की गालिओं में ही मेरा बचपन बीता है जहाँ आज तक लोगों को गणतंत्र होने का अनुभव ही नहीं हो पाया,क्या इसी तरह देश महाशक्ति बनते हैं

अपने देश के बारे में हमारी गलतफहमियाँ


अपने देश के बारे में हमारी गलतफहमियों का मूल हमारी शिक्षा व्यवस्था में छुपा हुआ है ,जो हमें यह तो बताती है की हम दो हजार वर्षो से गुलाम थे परन्तु इस बात पर मौन हो जाती है की गुलाम क्यूँ थे ,

हमारी गुलामी का कारन विदेशी आक्रमण नहीं थे बल्कि इसका कारण था हमारा धर्म और हमारी धर्मभीरुता ,जब जब हमारे ऊपर संकट आये तब तब हमने उनका सामूहिक हल ढूंढने के बजाये किसी अवतार के आने की प्रतीक्षा में भजन गाते रहे , हमारा धर्म हमारी परम्पराएं और हमारी सोच हमें जाती और सम्प्रदाए के नाम पर टुकडो टुकडो में विभाजित करती रही जिसके परिणामस्वरूप देश का आधे से भी बड़ा जनसमूह शुद्र और अछूत बनकर अपने ही देश में जानवरों की जिंदगी जीने को मजबूर हुआ . हमें इसी भेदभाव से ही कभी फुर्सत नहीं मिली की हम आगे की सोच पाते ,

जब भी किसी ने इस जहालत को दूर करने का प्रयास किया उसे गालिया दी गयी प्रताड़ित किया गया यहाँ तक की उसे मार डाला गया , आर्य भट्ट ने जब कहा की प्राणनेति कला:भुर्वः अर्थात -पृथ्वी घुमती है तो उनका मजाक उड़ाया गया . बुध ने जब कहा की ब्रह्मा विष्णु महेश आत्मा और परमात्मा यह सब काल्पनिक है तब उन्हें गालिया दी गयी . उन्हें रामायण जैसे तथकथित ज्ञान के ग्रंथो में चोर तक कहा गया है इसी तरह दयानंद सरस्वती को पुरानो की निंदा करने के अपराध में जहर देकर मार डाला गया .


तमाम बड़े दावो के बावजूद भी वर्तमान में देश की दयनीय स्थिति के मूल कारणों की खोज में जब हम जाने की कोशिश करते है तब हमें आभास होता है की कमी हमारी स्वयं की मानसिकता में है जो हमारे धर्म द्वारा ही संचालित होती है .हमारे धार्मिक ग्रंथो में अन्धविश्वाश अज्ञान और भेदभाव पैदा करने के आलावा ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमे से हम विज्ञान की एक बूँद भी निकल सकें .


इसीलिए हम मंगल गृह से हाथ जोड़कर अपने अमंगल न होने की प्रार्थना करते रह जाते है और विदेशी मंगल की मिटटी में अपने हाथो से बने यन्त्र दौड़ा रहे होते है हम त्रेतायुग की काल्पनिक बकवासो में पुष्पक विमान को ढून्ढ रहे होते है तभी विदेशी राइट बंधू अपने मेहनत का विमान आकाश में उड़ा देते है .जब हम बैलगाड़ी में तीर्थयात्राओ में व्यस्त थे तब विदेशी भाप द्वारा रेलगाड़ी बनाने की जुगत में लगे हुए थे .हम चक्रवर्ती होने और देवताओ से दिव्यास्त्र पाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करवा रहे होते है तभी विदेशी अपने हाथो से बने अग्नेआस्त्र यानि तोपों द्वारा हमला कर के हम पर ही चक्रवर्ती हो जाते है उनके बन्दूको का मुकाबला हम तीर तलवार लाठी और डंडो से करके हर जाते है .

सही मायने में आज जो कुछ भी थोडा बहुत अगर इस देश में अच्छा है तो वह हमारे संस्कारो के वजह से नहीं बल्कि विदेशी सभ्यता की वजह से है .हमारे संस्कार और धर्म तो हमें औरतो को जिन्दा जलाने की प्रेरणा देते थे जिसे सती प्रथा कहकर हम गौरवान्वित होते थे जिस पर अंग्रेजो ने ही 1828 में रोक लगाई .नारी अस्मिता का ज्ञान हमें पश्चिम से ही सिखने को मिला हम तो उन्हें पढाना पाप समझते रहे और उन्हें कम उम्र में ही विवाहित कर ससुराल भेजने में अपनी परंपरा की दुहाई देते रहे .हम तो अपने ही भाइयो को अछूत कहकर दुत्कारते रहे जिन्हें विदेशियों ने ही सर्वप्रथम अपनाकर उन्हें अपनी नौकरियों में स्थान दिया .
शकील प्रेम

Saturday, July 2, 2011

बाबा बनने के आसान तरीके.........


हमारा देश धर्म प्रधान देश है . धर्म यहाँ के लोगो की रगों में खून की तरह दौड़ता है . अब वह जमाना तो रहा नहीं जब ऋषि-मुनि,साधू संत घर-घर घूम कर लोगो को धर्म का ज्ञान बांटते फिरते थे . अब जमाना बदल गया है , देश माडर्न हो गया है , ऐसे में इस घोर कलयुग में लोगो को मोक्ष के रहस्य समझाने का बीड़ा उठाया है आधुनिक बाबाओ ने .

सदियों पहले देश के लोग सीधे सादे थे तब के साधू संत भे सीधे सादे और साधारण हुआ करते थे आज के दौर में जब देश तरक्की कर रहा है , देश में करोडपतियो की संख्या बढ़ रही है , देश में माध्यम वर्ग का तेजी से फैलाव हो रहा है ऐसे में माल संस्कृति के साथ साथ बाबा संस्कृति का भी तेजी से विकास हो रहा है .

इन बाबाओ की वजह से ही तो देश पुनः विश्व-गुरु बनने जा रहा है , हमारी सरकार को भी इन बाबाओ की उन्नति में ही देश की उन्नति का प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा है , इसीलिए देश में अन्य किसी भी उद्योग से अधिक तीव्रता से बाबा उद्योग बढ़ रहा है , चोर डकैत अपहरणकर्ता भी बाबा उद्योग में अपना भविष्य देखने लगे है , इसीलिए तो बाबाओ की जमात दिन दोगुनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रही है . बाज़ार में बाबाओ की कई काटेगिरिज उपलब्ध है.

कोई इच्छाधारी बाबा है तो कोई निरंकारी बाबा
कोई तिलकधारी बाबा है तो कोई त्रिशोलधरी बाबा
कोई योग वाला बाबा है तो कोई भोग वाला बाबा
कोई दयालु बाबा है तो कोई कृपालु बाबा
कोई शिष्टाचारी बाबा है तो कोई कपटाचारी बाबा

आजादी के समय देश की आबादी के हिसाब से लगभग हर व्यक्ति पर एक देवता विराजमान थे , आज जनसँख्या चारगुनी हो गई परन्तु देवता तो उतने ही [३३ करोड़ ] रहे, इस अनियमितता को दूर करने का बीड़ा आधुनिक बाबाओ ने ही उठाया ,जिससे कोई आदमी देवता विहीन न रह जाये , इसलिए आज हर आदमी का अपना अलग एक बाबा हो गया है .
इस तरह बाबाओ की संख्या बढ़ी तो उनमे भी comptition पैदा हो जाना स्वाभाविक बात है ऐसे में एक बाबा को दुसरे बाबा से आगे जाने की होड़ पैदा हो गई . यह अलग बात है की अपने भक्तो को मोहमाया , लालच , इर्ष्या से दूर रहने की सलाह देते हुए खुद इन तुच्छ मानवीय कमजोरियों के सहारे जगत मिथ्या के यथार्त महासागर को पार करने की विवशता हो . क्यूंकि बाबावाद भी कुछ कुछ पूंजीवाद के अनुरूप ही खड़ा हुआ है जिसमे पूंजी ही सबकुछ होती है , परन्तु कुछ बातो में बाबावाद के नियम पूंजीवाद से थोड़े से अलग है . पूंजीवाद में जहाँ माया यानी पूंजी को सर्वोपरि मानकर पूंजी को अर्जित किया जाता है , वहीँ बाबावाद में पूंजी यानी माया को तुच्छ बताकर उसे झटका जाता है फिर इसी माया से आलिशान आश्रमों का निर्माण होता है जहाँ से माया के इस खेल का और व्यापक विस्तार किया जाता है . इस तरह कुछ बाबा जो इस होड़ में सफल हो जाते है उनकी पांचो उंगलियाँ घी में और सर कडाही में हो जाती है , फिर तो सरकार भी उनकी लोग भी उनके और मिडिया भी उनकी . जो असफल हो जाते है वो बलात्कार या अवैध कब्जे जैसे मामूली लफ़ड़ो में कुछ समय फाइवस्टार जेलों में प्रवचन कर आते है .

बाबावाद में सफल होने का सब से आसान तरीका है आत्मविश्वास अगर आपमें यह गुड है तो आप भी आजमा सकते है . बाबा बनने का गुरुमंत्र है "झूठ बोलो कांफिडेंट के साथ" . आपकी शिक्षा , योग्यता या ज्ञान से यहाँ कोई मतलब नहीं यह सब तुच्छ चीजे है अगर आप बाबा बनने जा रहे है तो इन चीजो को अतिशीघ्र अपने से दूर करें .

बाबा बनने से पहले कुछ आवश्यक बातो को ध्यान में रखे , सबसे पहले आपको अपनी वेशभूषा बदलनी होगी , पैंट कमीज की जगह भगवा वस्त्र धारण करें , तिलक लगाये , दो चार मालाएं हमेशा पहन कर रखे , दाड़ी और मूछों और साथ ही सर के बालों का विशेष ध्यान रखे . प्रतिदिन स्नानादि की आदत छोड़ दें क्युकी आगे चलकर जब आप प्रतिष्ठित बाबा बन जायेंगे तब आप इतने व्यस्त हो जायेंगे की आपको महीने में एकाध बार संयोगवश ही नहाने का सुअवसर मिलेगा .

इसके बाद आप यह तय करे की आपको किस कैटेगिरी का बाबा बनना है , अगर आप थोड़े से रंगीनमिजाज है भोग विलास अय्याशी में आपकी अधिक रूचि है तब आप इच्छाधारी टाइप बाबा बन सकते है इसके लिए आपको शाश्त्रो की कुछ कहानियाँ और कुछ भजनों को तोते की तरह रटना होगा . ध्यान रहे की आपकी वाणी में माधुर्यरस हो , कोमलता हो और वाणी में चातुर्य का होना तो सबसे आवश्यक है .

अगर आप कुछ और बड़ा करना चाहते है तो आप अगली कैटेगिरी पर ध्यान दे अगर आप बेवकूफ बनाने की कला में महारत हासिल कर चुके है तो आप ज्योतिषाचार्य बन जायें , इसके लिए आपको कुछ गृह नक्षत्रो के नाम याद करने होंगे बस . शुरुआत में आप "त्रिकालज्ञ विश्व के महान ज्योतिषाचार्य" इस तरह के पर्चे बंटवा दीजिये . जैसे ही कोई पहला मुर्गा फंसे , तो उससे कहिये "आने वाला सप्ताह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है , तुम कहीं जाओगे तुम्हे छींक आएगी और तुम किसी गटर में या किसी ब्लूलाइन बस के निचे आकर मर सकते हो , तुम्हारे ऊपर शनि की कुदृष्टि है , राहु और केतु तुम्हारे कंधे पर सवार है , इसके समाधान के लिए तुम्हें किसी मगरमच्छ का १०० ग्राम आंसू और चील का मूत लाना होगा जिसे तुम्हे अपनी बीबी के सिंदूर और चूल्हे की कालिख में मिलाकर अपने चेहरे पर पोतना होगा और ये कालिख लगाकर तुम्हे शनिवार के दिन मोहल्ले में घुमने के बाद सूर्य को जल देकर गौमूत्र से नहाना होगा , नहीं तो तुम्हारी बीवी विधवा और तुम्हारे बच्चे अनाथ हो जायेंगे" . यह सब सुनकर जब सामने वाले के तोते उड़ जाये तब उसे इस समस्या का दूसरा और सरल उपाय समझाएं , उससे कहे की "तुम्हारी कुशलता के लिए यह सब काम हम किसी अपने चेले के द्वारा करवा सकते है जिसमे कम से कम ५०००रु का खर्च आ सकता है .

इस तरह जब आप एकाध वर्ष में ही एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य बन जायेंगे तब आपको टी.वी. चैनलों का निमंत्रण मिलने लगेगा . चैनल पर आने के बाद आपकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लग जायेंगे . तब अधिक पैसा देकर दुसरे चैनल वाले आपको अपनी टी.आर.पी बढ़ाने के लिए बुलाने लगेंगे , आप इस तरह के सुअवसर को कभी हाथ से न जाने दें और झट पहले वाले को धोका देकर दुसरे चैनल में चले जायें , वहां जाकर अपने पहले प्रवचन में ही यह बात अवश्य कहें की "संसार एक धोका है तो हे मानव किसी को धोका न दों और मोह-माया एवं लोभ से दूर रहो ", इस तरज की बाते दोहरातें रहे , इसके साथ ही हर बात पर पश्चिमी सभ्यता को कोसना न भूलें , सभी प्रश्नों के उत्तर में एक बार यह बात अवश्य दोहराएं "ये तो हमारे शाश्त्रो में पहले ही कही जा चुकी है" और "यह सब तो पश्चिमी सभ्यता का असर है" , इस समय तक आप एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य हो चुके होंगे , आपसे लोग देश की समस्याओं के विषय में भी प्रश्न करेंगे , महंगाई के प्रश्न पर आप कहें की "देश पर अभी साढ़े-साती चल रही है , साढ़े-सात महीने बाद महंगाई अपने आप काम हो जाएगी अन्यथा महंगाई नाशक यज्ञ करना होगा ", बेरोजगारी के विषय में कहें की "भारत महाशक्ति बनने जा रहा है तो बेरोजगारी जैसी छोटी-मोटि बातें अपने-आप समाप्त हो जाएँगी" ,

नक्सलवाद और आतंकवाद के विषय में कहें की "जब जब आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है तब-तब भगवान अवतार लेते हैं" , इसके साथ ही गीता का 'यदा-यदा ही धर्मस्य .......' वाला श्लोक ऊँची आवाज में पढ़ें.

महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के विषय में कहे की "यह सब तो पशिमी सभ्यता का असर है". भुखमरी और कुपोसण के विषय में कहें की "यह सब उनके पिछले जन्म के पापों की वजह से है अवश्य उन्होंने पिछले जन्म में किसी की रोटी छीनी होगी ", पश्चिमी सभ्यता की निंदा करते समय यह बात भी अवश्य कहें की "पश्चिम का सारा विज्ञानं हवाई जहाज से लेकर कम्प्यूटर तक हमारे शाश्त्रो की देन है , अंग्रेज हमारे शाश्त्र विदेश ले गए और उसमें से सारा विज्ञानं निचोड़ लिया" . इसके बाद चैनल के माध्यम से यह भी कहना न भूलें की "पृथ्वी अचला है और सूर्य भगवान रथ पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाते है" , अगर लोगों को यकीन न हो तो आप तुलसी रामायण की चौपाईओं से इसका प्रमाण भी दे सकते हैं की पृथ्वी शेषनाग के फन और कछुए की पीठ पर स्थित है 'कमठ शेष सम धर वसुधा के' (रामचरितमानस २०/७) ऐसा हमारे शाश्त्र कहते है, अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए यह भी दोहरादें की यही बात तो बाद में यूरोप के वैज्ञानिकों ने सिद्ध भी कर दिया है .

अगर आप ज्योतिषाचार्य से भी बड़ा नाम कमाना चाहते है तब आपको श्री-श्री कविशंकर अथवा बाबा कामदेव जैसा योग-भोग या रोग गुरु बनना पड़ेगा . अब योग-भोग-रोग का तो पहले ही पेटेंट कराया जा चुका है अतः आपको अब कुछ नया करना पड़ेगा . आप शाश्त्रो के नाम पर किसी नई कला का ईजाद कर सकते है , जैसे आप मुर्गा बनने की नई तकनीक शाश्त्रों के नाम पर प्रचारित का सकते है , आप कह सकते है की ये कला पूरी तरह भारतीय है और हमारे शाश्त्रों में वर्णित है . इस तरह मुर्गा बनने से मानव के सारे कष्ट दूर हो सकते है . बवासीर, भगंदर, पोलिओ, टी.वी, कैंसर ब्रेनहैमरेज या हार्टप्रोब्लम्स जैसे रोग चुटकियों में दूर हो सकते है तथा इस विधि से विश्वशांति आ सकती है , दुनिया की आतंकवाद समेत सभी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है . आप अपनी इस ईजाद को 'चिकन योग' का नाम दे सकते है , धीरे-धीरे जब आप एक प्रतिष्ठित 'चिकंयोग' गुरु बनकर लोगों को 'आर्ट आफ लिविंग' सिखाने लग जायेंगे या भारत के स्वाभिमान की रक्षा के नाम पर देश की सत्ता हथियाने का ख्वाब देखने लग जायें ,इससे पहले ही आप 'मुर्गांजलि' नाम से अपनी दवाइयों की फैक्ट्री खोल लें , ध्यान रखे की अपने 'चिकन योग के प्रचार के दौरान आप विदेशी कंपनियों ,विदेशी अविष्कारकों ,एवं पश्चिमी सभ्यता को गालियाँ देतें रहे ,चाहे आप के कारखाने में जो भी मशीनें हो सभी विदेशी कंपनियों ,विदेशी अविष्कारकों और पश्चिमी सभ्यता द्वारा निर्मित की गयीं हों .

इस तरह आप एक दिन बहुत बड़े व्यक्ति बन जायेंगे देश विदेश में आपकी हजारों शाखाएं खुल जाएँगी , आपको पश्चिमी संस्कृति के लोग आपकी उच्च भारतीय सभ्यता से प्रभावित होकर आपको अपने यहाँ आमंत्रित करेंगे .वहां जाकर आपको अपने वक्तव्यों में थोडा सा परिवर्तन करना पड़ेगा . वहां आपको कहना होगा की प्रथ्वी गोल है और सूर्य का चक्कर लगाती है ऐसा हमारे शाश्त्रो ने ५००० वर्ष पहले ही बता दिया था . आपने अगर कुछ और कहा तो हो सकता है आपको जूते पड़ने लगें क्यूंकि पश्चिमी सभ्यता तो असभ्य है ना ;-

अगर आपको लगता है की 'चिकनयोग' के बहाने ही सही खुद मेहनत कर दूसरों को मेहनत करने की प्रेरणा देना आपके बस की बात नहीं तो घबराने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं , अभी और भी कई कैटेगिरीज अभी बाकि हैं .

आप चाहें तो बापू कैटेगिरी के बाबा बन सकते है , जरा ठहरिये ! यहाँ गाँधी वाले बापू की बात नहीं हो रही , बल्कि हम बात कर रहे हैं ;-बम-पिस्तोल ,मोर्टरार जी बापू या निराशाराम जी बापू वाली कैटेगिरी की . इस कैटेगिरी का बाबा बनने के लिए भी आपको तुलसी रामायण के " ढोल , गंवार ,शुद्र ,पशु ,नारी ये सब ताडन के अधिकारी "सरीखे कुछ चौपाइयों की रटटमपेल करने की आवश्यकता होगी , इसके साथ-साथ दूसरी कैटेगिरीज के लिए बताई गई कुछ बातों का भी विशेष ध्यान रखें .

इस कैटेगिरी में आने के लिए सबसे पहले आपको अपने किसी सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर वहां जागरण ,भजन कीर्तन ,प्रवचन से ही शुरुआत करनी होगी .अगर आप शुरुआत में ही कुछ प्रतिष्ठित हो जाते है तब आप किसी की भी जमीन पर कब्ज़ा कर सकते है , बस आपको लोगों को समझाना होगा की "मरने के बाद तुम्हारी जमीन तुम्हारे किसी काम की नहीं , इस तरह आप हजारो बीघा जमीन के मालिक बन सकते है . जो ख़ुशी से अपनी जमीन आपके नाम नहीं करता उसकी जमीन पर धोके से आश्रम बनाये जा सकते है , बाद में अगर केस मुक़दमे की नौबत आती है तो घबराने की आवश्यकता नहीं , क्यूंकि तब तक आपके भक्त बड़े बड़े वकील होंगे , राज्य के बड़े-बड़े सरकारी अफसर तो आपके नौकर-चाकरों में से होंगे जो आपके तलवे चाटने में अपने आप को धन्य समझेंगे . फिरभी अगर आपका कोई पूर्व भक्त मोह-माया में फंसकर चंडोक या चांडाल वाली हरकत कर बैठे यानी आपके विरुद्ध गवाही देने को तैयार हो तो उस पर जानलेवा हमला करवा सकते है , उसे यमलोक भेजने का प्रबंध कर निश्चित हो सकते है क्यूंकि आपका तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं .

अगर आपको बापू बनने में झंझट का काम लगता है तो चिंता करने की कोई जरुरत नहीं , आप अगली कैटेगिरी चुन सकते है ,यह है महाराज वाली कैटेगिरी . इस कैटेगिरी का सबसे बड़ा लाभ तो यह है की आप लोकतंत्र में भी महाराज की पदवी से नवाजे जायेंगे. इस कैटेगिरी में आप दयालु जी महाराज, झगडालू जी महाराज, कुधान्शु जी महाराज,या मतपाल जी महाराज जैसी कोई भी पदवी धारण कर सकते है , रटना तो यहाँ भी पड़ेगा . कुछ ही वर्षो में जब आपका बोल-बाला खूब हो जाये ,भक्तो की कृपा से आलिशान महल सरीखे आश्रम निर्मित हो जायें , तब आप दिखावे के लिए अपनी माँ, दादी,चची, नानी,या सास के श्राध का आयोजन करें और पूर्व जन्मों के कष्टों को झेल रहे गरीब नाम के लोगो को २०रु के भोजन का प्रलोभन देकर अपने आश्रम में आमंत्रित करें. अब पुरे देश में ढिंढोरा पिटवाने की जोहमत न उठाएं क्यूंकि ८४ करोड़ लोग इस देश में २०रु रोज पर गुजरा करते है , ऐसे में अगर सब के सब आ गए तो आपके शारीर पर कपडे और सर पर बाल भी नहीं बचेंगे , इसलिए केवल अपने क्षेत्र में ही ढिंढोरा पिटवायें , फिर देखें की एक वक्त की रोटी के लिए ६०-७० हजार तुच्छ प्राणी कुत्तों की तरह दौड़े-दौड़े पहुँच जायेंगे , आपको इन भूके-नंगे लोगो के लिए उचित व्यवस्था करने की कोई आवश्यकता है ही नहीं , अगर भगदड़ में ६०-७०मर भी जाते है , तो इसमें आपका तो कोई दोष नहीं , आप तो निश्चिन्त होकर अगले दिन के बुआ के श्राध की तयारी करें , जो मर गए उन्हें तो भगवान ने मारा , वैसे भी देश में रोज तीन हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरे जाते है .सात हजार बच्चे रोज भुखमरी और कुपोषण से मर जाते है , ६०-७०किसान रोज आत्महत्या कर लेते है ,इतने ही लोग गन्दा पानी पीने के कारण मर जाते है , तब तो कोई हंगामा नहीं मचता फिर आप ६०-७० तुच्छ प्राणियों के मारे जाने का अफ़सोस क्यों करते है आप काहे टेंसन लेते है.

आपके आश्रम में मरे हुओं के लिए हमारे महान अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री जी आपकी संपत्ति को कुर्क करने की बजाये संसद में मुआवजे की घोषणा कर देंगे . उसके अगले दिन देश के युवराज मरे हुओं के घरों में दौरों के बहाने दावत उड़ा आयेंगे . तीन-चार दिन बाद प्रदेश की मुख्यमंत्री जी दों-दों लाख के मुआवजे की घोषणा कर देंगी .बस हो गई मरने वालों के परिवारों की बल्ले-बल्ले. जिनका कोई नहीं मरा वो खुद को कोसेंगे . अब जरा सोचिये की कितने लोगो का भला होगा आपके कारण....

बाबा बनने के लिए आपको कुछ ख्याति प्राप्त बाबाओं के जीवन चरित्र का अनुसरण भी करना पड़ेगा इसके लिए आप आजकल के कुछ अति विख्यात (या कुख्यात)बाबाओं के चरित्र का अनुसरण कर सकते हैं जैसे भिमानंद जी महाराज जिनके चरित्र से आपको कुछ ही समय में 'चोर से महाराज' बनने की सीख मिल सकती है , इसी तरह आप नित्यानंदस्वामी जी के जीवन चरित्र से अध्यात्म के नाम पर (अभिनेत्रियों संग) अय्याशी के गुण सीख सकते हैं, या फिर आशाराम बाबु सरीखे बाबाओं से आश्रमों के नाम पर सरकारी जमीन हड़पने की कला सीख सकते हैं.

इन बाबाओं की सीडियां मंगवाकर जो 'उचित मूल्यों' पर उपलब्ध हैं और इनके प्रवचनों के महान ज्ञान से खुद भी लाभान्वित होकर बेवकूफ जनता को भी लाभान्वित होने का सौभाग्य प्रदान कर सकते हैं....

तो फिर देर किस बात की बाबाओं की भीड़ में एक बाबा और सही..........!

शकील 'प्रेम'

भागो मत , दुनिया बदलो !


प्रिये बंधुओं,
भारत के केवल आठ राज्यों में इतनी गरीबी है जितनी की दुनिया के पचीस सबसे गरीब देशों में भी नहीं है ये वो गरीब देश हैं जो भारत के लगभग साथ ही आजाद हुए है अर्जुन सेन गुप्ता की तजा रिपोर्ट के अनुसार भारत के तिरासी प्रतिशत लोग बीस रूपए रोज पर गुजरा करने को मजबूर है, भ्रस्ताचार में भारत का स्थान प्रथम है देश में पचास किसान रोज आत्महत्या कर लेते है, पांच वार्स से काम आयु के सात हजार बच्चे प्रतिदिन भूख और कुपोसन से लड़ते हुए मर जाते है, देश के 18 करोड़ लोग फुटपाथों पर और इतने ही लोग सड़ांध में जानवरों की जिंदगी जीने को विवश है, शिशु एवं स्त्री मृतुदर में भारत अपने पडोसी देसों की तुलना में कही आगे है....भारत के महान शहीद भगत सिंह का कहना था ''जब तक एक आदमी भी भूका है तब तक हम सब अपराधी है क्यूँ की हम सब खा रहे है'' आईये हम सब मिलकर इस देश की तस्वीर बदलने के लिए एक क्रांति की शुरुआत करें /

देश की नियति बदलने के लिए आज आवश्यकता है एक क्रांति की,जो इस पूरी व्यवस्था को ही उखाड़ फैंके और एक नई व्यवथा का सृजन करे जहाँ आम आदमी अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए सरकारी मदद की भीख मांगने के बजाये स्वावलंबी बनें और तिरस्कारित-अपनानित जीवन जीने के बजाये स्वाभिमान से जिए:-

एक ऐसी व्यवस्था,

जिसमे कोई भूखा न सोये
कोई बेघर न रहे
कोई नंगा न रहे
पृथ्वी के संसाधनों पर सभी का बराबर हक हो
कोई नीच न रहे
कोई ऊंचा न बने
कोई दानी न रहे
कोई भिखारी न बने
कोई सती न हो
कोई वेश्या न बने
दहेज़ के लिए कोई स्त्री जलाई न जाये
कोई स्त्री,स्त्री होने के कारण सताई न जाये
गर्भ में ही वो गिराई न जाये
जहाँ गोत्र न हो
जाती का बंधन न हो
धर्म की कोई दीवार न हो
जहाँ भगवन के आलिशान घर न हो
आम आदमी बेघर न हो,बेबस न हो
जहाँ किसी परमेश्वर का सवाल न हो
जहाँ इश्वर के दलाल न हो

एक ऐसी व्यवस्था,

जिसमें भय,भूख और भ्रस्टाचार न हो
आतंक,अन्याय और अत्याचार न हो
किसी औरत से बलात्कार न हो
और जहाँ मानवता बौनी और लाचार न हो....

.........शकील 'प्रेम'

इन्सां हूँ मै !


सबसे ये कहता हूँ की इन्सां हूँ मै!
न सिख, न यहूदी, न क्रिसताँ हूँ मैं !!
दौरे नादाँ ने मुझको काफ़िर जाना!
और काफ़िर ये समझता है की मुसलमाँ हूँ मै...

........................शकील 'प्रेम'

बोलते आंकड़े चीखती सच्‍चाइयां !


यह आंकड़े भी सुरेश तेंदुलकर की तजा रिपोर्र्ट के हवाले से...
भारत के केवल आठ राज्यों में ही इतनी गरीबी है जितनी की पूरी दुनिया के पच्चीस सबसे गरीब देशों में भी नहीं है भारत के लगभग आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं!दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में एक तिहाई संख्या भारतीय बच्चों की है।देश में हर तीन सेकंड में एक बच्चे की मौत हो जाती है।देश में प्रतिदिन लगभग 10,000 बच्चों की मौत होती है, इसमें लगभग 3000 मौतें कुपोषण के कारण होती हैं। सिर्फ अतिसार के कारण ही प्रतिदिन 1000 बच्चें की मौत हो जाती है। भारत के पाँच वर्ष से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम है।
15फीसदी बच्चे अपनी लम्बाई के लिहाज से बहुत दुबले हैं। 43 फीसदी (लगभग आधे) बच्चों का वजन सामान्य से बहुत कम है।हर 1000 में से 57 बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं। भारत में प्रति वर्ष 74 लाख कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं - जो कि दुनिया में सबसे अधिक है। विश्व भर में 97 लाख बच्चे पाँच साल की उम्र पूरी करने से पहले ही मर जाते हैं, इनमें 21 लाख (यानी लगभग 21 प्रतिशत) बच्चे भारत के हैं। हर 4 में से 1 लड़की और हर 10 में से 1 लड़का प्राथमिक शिक्षा से वंचित है. गर्भ या प्रसव के दौरान आधी महिलाओं को उचित देख-भाल नहीं मिलती।
देश की 50 प्रतिशत महिलाओं और 80 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है। देश का हर चौथा आदमी भूखे पेट रहता है। दुनिया भर में भूखे रहने वालों का एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है। पिछले 4-5 सालों में अधिकतर खाद्य पदार्थों की कीमतों में 50 से 100 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है। 77 प्रतिशत भारतीय 20 रुपये रोज से कम पर गुजारा करते हैं। देश की केन्द्र सरकार अपने खर्च का महज 2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 2 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है। इसकी तुलना में सुरक्षा पर 15 प्रतिशत खर्च किया जाता है।

...........................................................शकील 'प्रेम'

Monday, May 30, 2011

सोचता हूँ किधर जाऊं


इस बेदर्द दुनिया में
सोचता हूँ कहाँ जाऊं
मन कहता है पीछे चल
अक्ल कहती है आगे चल
दिल कहता है यही ठहर जा!

इस कसमकस में
सोचता हूँ किधर जाऊं,

हर तरफ छाई है मायूसी
हर चेहरे पे है बेबसी
कल किधर से आजाये दरिंदगी
कब खामोश हो जाये जिंदगी

इस कसमकस में
सोचता हूँ किधर जाऊं!

आतंक है तो क्यूँ है
दहशत है तो क्यूँ है
जख्म हर चेहरे पर
ये जुल्मो सितम क्यूँ है

क्यूँ लाचार हैं आँखें
क्यूँ बेजार है दिल
क्यूँ सिले हुए हैं होठ
हर चेहरा शर्मशार क्यूँ है

इस कशमकश में
सोचता हूँ किधर जाऊं !

भूख भय और भ्रष्टाचार
सहते है हर अत्याचार
आज की बात नहीं
ये सदियों का है संस्कार

बेड़ियाँ टूटी हुई हैं
उड़ने पर पहरा है
पंख थोड़े हैं बचे
पर जख्म अभी गहरा है

धुआ धुआं है आसमान
सुर्ख लाल जमीन क्यूँ है

इस कशमकश में
सोचता हूँ किधर जाऊं.......



.......शकील 'प्रेम'