सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Thursday, May 1, 2014

क्या मुसलमानों का असली दुश्मन मोदी है ?

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव का दौर चल रहा है , इंडोनेशिया के बाद भारत ही वो देश है जहा मुसलमानो की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है भारत , अमेरिका ,ब्रिटिन , ऑस्ट्रेलिया ,चीन ,जापान ,जर्मनी, ये वो देश हैं जहाँ की सत्ता मुसलमानों के हाथों में नहीं है, और यहाँ मुसलमान उन मुस्लिम देशों की तुलना में ज्यादा सुखी हैं जहाँ हुकूमत भी इनकी है और आबादी भी इनकी है पाकिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र, ईरान,सीरिया, फिलिस्तीन,इराक,अफगानिस्तान 60 के करीब मुस्लिम देशों की हालत कमोबेश एक जैसी है अरब दुबई जैसे तेल से धनि हुए अपवाद स्वरुप देशों को छोड़ कर 

 भारत की बात करें तो मुसलमान यहाँ पडोसी मुस्लिम देश की पूरी आबादी से भी ज्यादा हैं और उसकी तुलना में ज्यादा सुखी और सुरक्षित भी ,, 67 वर्षों में पाकिस्तान में आतंकवाद से मरने वाले मुसलमानों की तादात भारत में 67 वर्षों में विभिन्न दंगों में मरने वाले मुसलमानों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है दंगों का रोना रोने वाले मुसलमान कभी अपनी गिरेबां में झाँक कर नहीं देखते की ऐसा क्यों होता है क्यों सैकड़ों वर्षों से साथ रहने वाले लोग अचानक उनके सबसे बड़े दुश्मन हो जाते हैं साथ में रहने वाले अचानक उनके जान माल इज्जत को पल भर में ख़ाक में मिला देते हैं

 किसी विद्वान ने कहा है की "वक्त के साथ नहीं बदलने वालों को वक़्त खुद ब खुद बदल देता है और जो नहीं बदलते उन्हें मिटा भी देता है" पूरी दुनिया के मुसलमानों के साथ भी यही हो रहा है वक़्त उन्हें बदलने को मजबूर कर रहा है परन्तु वे बदलने की बजाए मिटने को तैयार हैं और मिट भी रहे हैं 

कुछ मुस्लिम देशों  के मुसलमान वहां के सियासती शिया सुन्नी झगड़ों में सताब्दियों से पिस रहे हैं तो कुछ "दीनी तालीम" के नाम पर पढ़ाये जा रहे मदरसाई आतंकवाद से खुद बर्बाद हो रहे हैं और दुनिआ को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं भारत में जहाँ इनके लिए आगे बढ़ने के सारे दरवाजे खुले हुए हैं वहां मुस्लमान अपने तथाकथित सेकुलर रहनुमाओं की गन्दी राजनीती और अपने सरपरस्त आकाओं की संकीर्ण सोच के कारण कुयें के मेंढक बने हुए हैं (या जानबूझ कर बना दिए गए हैं ) ये कभी नहीं चाहेंगे के मुसलमान आज़ाद होकर दुनिया को वर्तमान सन्दर्भ में समझने लगे और अपनी मर्जी से अपना रास्ता बनाये अगर भेंड़े ऐसा सोचने लगे तब तो भेड़िये भूखे मर जायेंगे 

मुसलमान पीछे रहे संकीर्ण रहे, बर्बाद रहे जाहिल रहे ,बेवकूफ रहे  इनके आकाओं का भला इसी में है ये  बेवकूफ ,जाहिल रहतें हैं तो सामाजिक ताने- बाने में  फिट नहीं हो पाते और जहाँ फिट नहीं हो पाते वहां इनको जबरदस्ती "फिट" कर दिया जाता है अपनी जाहिलियत भरी शिक्षा, संकीर्ण सोच,और दुनिया की रफ़्तार से पिछड़े अपने जाहिल सरपरस्तों के इशारों पर कभी कभी ये ऐसा काम कर  देते हैं जिसका लाभ साम्प्रदायिक कही जाने वाली ताक़तें उठातीें हैं और उनके इस कारनामें को "क्रिया" बताकर इसकी "प्रतिक्रिया" को व्यापक पैमाने पर अंजाम देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं, इसी को दंगा कहा जाता है इन दंगों का सारा दोष केवल एक व्यक्ति, पार्टी,या एक विरोधी कौम ,को बता कर रोते रहना और खुद में कोई कमी न ढूंढ़ना ,खुद की कमियों को नजरअंदाज करना ये सब अब इनकी गन्दी आदत बन चुकी है 

 भारत के लाखों मदरसो से लाखों नौजवान प्रत्येक वर्ष अपनी शिक्षा ? पूरी कर बाहर निकलते है इतने नौजवानों की यह भीड़ देश और दुनिया को बदल सकती है परन्तु हर साल निकलने वाली लाखों नौजवानों की यह भीड़ देश और समाज के विकास में क्या भूमिका निभा रही है ? कौम देश या समाज को ये नवमुल्ला क्या लाभ दे रहे हैं ? अगर कोई लाभ नहीं है तो फिर मुसलमानों की पीढ़ियों को उसके भविष्य को इस तरह बर्बाद क्यों किया जा रहा है ? इस बर्बादी का असली कसूरवार कौन है ?   मोदी या बीजेपी ? 

हर साल हजारों नई मस्जिदें और मदरसे खड़े हो रहे हैं इनका कौम या देश की तरक्की में क्या योगदान है ? जब इनकी जहालत का भरपूर लाभ इनके अपने ही आका और रहनुमा उठा रहे तो दूसरे का क्या दोष है 

मुसलमानो के असली दुश्मन अकबरुद्दीन ओबैसी ,आजम खान ,फारूक अब्दुल्ला, जाकिर नाइक ,सलमान खुर्शीद, इमाम बुखारी ,मौलाना मदनी ,और वे सभी उलेमा, मुल्ला मौलवी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े सेकुलर कहे जाने वाले लोग हैं जो इनको कुएं में ही रखना चाहते हैं यही वो जमात है जो मोदी का हौआ  खड़ा करके अपनी रोटियां सेंक रहीं हैं  धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये जमात अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से बाहर नहीं जाने देना चाहती बस इसका यही काम है 

धर्मनिरपेक्षता की खाल में छुपे बैठे वोट की खातिर किसी भी हद तक गिर सकने का मादा रखने वाले भेड़ियों की पोल तब खुलती है जब इनके अपने खेमें से ही इन पर लात पड़ती है, साबिर अली ,राम कृपाल यादव , रामविलास जैसे ताजा उदहारण हमारे सामने हैं  मोदी को मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन साबित करने वाले ये लोग आज मोदी समर्थक कैसे हो गए क्या अब मोदी बदल गया है नहीं मोदी तो आज भी वही है जो पहले था वो पहले भी स्पष्ट कहता था की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती नहीं करता वो आज भी यही बात कहता है  

Thursday, October 6, 2011

आरक्षण क्यूँ ?


नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर आरक्षण के विषय में कुछ लेख पढ़ने को मिले और उन्ही लेखों ने मुझे ये लेख लिखने को प्रेरित किया , जब बात आरक्षण की होती है तो सब भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित-जाती, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग को मिले उस आरक्षण या विशेष अधिकारों की ही बात करतें हैं जिन्हें लागू हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए हैं ,कोई उस आरक्षण की बात नही करता जो पिछले 3000 वर्षों से भारतीय समाज में लागू थी

जिसके कारण ही इस आरक्षण को लागू करने की आवश्यकता पड़ी आज ''भारतीय गणराज्य का संविधान'' नामक संविधान, जिसका हम पालन कर रहें है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ उससे पहले जो संविधान इस देश में लागू था जिसका पालन सभी राजा-महाराजा बड़ी ईमानदारी से करते थे उस संविधान का नाम था ''मनुस्मृति''

आधुनिक संविधान के निर्माता अंबेडकर ने सबसे पहले 25 दिसंबर 1927 को हज़ारों लोगों के सामने इस ''मनुस्मृति'' नामक संविधान को जला दिया ,क्यूंकी अब इस संविधान की कोई आवश्यकता नही थी भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए दिया गया क्यूंकी इस देश की 85 प्रतिशत शूद्र जनसंख्या को कोई भी मौलिक अधिकार तक प्राप्त नही था

,सार्वजनिक जगहों पर ये नही जा सकते थे मंदिर में इनका प्रवेश निषिध था सरकारी नौकरियाँ इनके लिए नहीं थी , ये कोई व्यापार नही कर सकते थे , पढ़ नहीं सकते थे , किसी पर मुक़दमा नही कर सकते थे , धन जमा करना इनके लिए अपराध था , ये लोग टूटी फूटी झोपड़ियों में, बदबूदार जगहों पर, किसी तरह अपनी जिंदगिओं को घसीटते हुए काट रहे थे और यह सब ''मनुस्मृति'' और दूसरे हिंदू धर्मशास्त्रों के कारण ही हो रहा था कुछ उदाहरण देखिए-

1.संसार में जो कुछ भी है सब ब्राह्मानो के लिए ही है क्यूंकी वो जन्म से ही श्रेष्ठ है(मनुस्मृति 1/100)

2.स्वामी के द्वारा छोड़ा गया शूद्र भी दासत्व से मुक्त नही क्यूंकी यह उसका कर्म है जिससे उसे कोई नही छुड़ा सकता (8/413)

3.यदि कोई नीची जाती का व्यक्ति ऊँची जाती का कर्म अपना ले तो राजा उसे देश निकाला देदे (10/95)

4.बिल्ली, नेवला चिड़िया मेंढक, गढ़ा, उल्लू, और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र (अनुसूचितजाती, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग) की हत्या में है (मनुस्मृति 11/131)

5.शूद्र का धन ब्राह्मण निर्भीक होकर छीन सकता है क्यूंकी उसको धन रखने का अधिकार नही (8/416)

6. सब वर्णों की सेवा करना ही शूद्रो का स्वाभाविक कर्तव्य है (गीता,18/44)

7. जो अच्छे कर्म करतें हैं वे ब्राह्मण ,क्षत्रिय वश्य, इन टीन अच्छी जातियों को प्राप्त होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं वो कुत्ते, सूअर, या शूद्र जाती को प्राप्त होते हैं (छान्दोन्ग्य उपनिषद् ,5/10/7)

8. पूजिए विप्र ग्यान गुण हीना, शूद्र ना पूजिए ग्यान प्रवीना,(रामचरित मानस)

9.ब्राह्मण दुश्चरित्र भी पूज्‍यनीए है और शूद्र जितेन्द्रीए होने पर भी तरास्कार योग्य है (पराशर स्मृति 8/33)

10. धार्मिक मनुष्या इन नीच जाती वालों के साथ बातचीत ना करें उन्हें ना देखें (मनुस्मृति 10/52)

11. धोबी , नई बधाई कुम्हार, नट, चंडाल, दास चामर, भाट, भील, इन पर नज़र पद जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए इनसे बातचीत हो जाए तो स्नान करना चाहिए (व्यास स्मृति 1/11-13)

12. अगर कोई शूद्र वेद मंत्र सुन ले तो उसके कान में धातु पिघला कर डाल देना चाहिए- गौतम धर्म सूत्र 2/3/4....

ये उन असंख्य नियम क़ानूनों के उदाहरण मात्र थे, जो आज़ाद भारत से पहले देश में लागू थे ये अँग्रेज़ों के बनाए क़ानून नहीं थे ये हिंदू धर्म द्वारा बनाए क़ानून थे जिसका सभी हिंदू राजा पालन करते थे प्रारंभ में तो इन्हें सख्ती लागू करवाने के लिए सभी राजाओं के ब्राह्मणों की देख रेख में एक विशेष दल भी हुआ करता था

इन्ही नियमों के फलस्वरूप भारत में यहाँ की विशाल जनसमूह के लिए उन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गये या इनके कारण बंद हो गये, सभी अधिकार, या विशेष-अधिकार, संसाधन, एवं सुविधायें कुछ लोगों के हाथ में ही सिमट कर रह गईं, जिसके परिणाम स्वरूप भारत गुलाम हुआ

भारत की इस गुलामी ने उन करोड़ों लोगों को आज़ादी का अवसर प्रदान किया जो यहाँ शूद्र बना दिए गये थे , इस तरह धर्मांतरण का सिलसिला शुरू हुआ , बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम ईसाइयत को अंगीकार किया , अंग्रेज़ो के शासन काल में उन्नीस्वी सदी के प्रारंभ से यहाँ पुनर्जागरण काल का उदय हुआ जिसके नायक यहीं के उच्च वर्गिए लोग थे जो अँग्रेज़ी शिक्षा, संस्कृति से प्रभावित हो कर देश में बदलाव लाने को प्रयत्नशील हुए ,

सती प्रथा को समाप्त किया गया स्त्री शिक्षा के द्वार खोले गये , शूड्रों को नौकरियों में स्थान दिया जाने लगा और कितनी ही क्रूर प्रताओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया ,कई परिवर्थन्शील ,संगठनों का उदय हुआ ऐसे ही समय में अंबेडकर का जन्म हुआ , समाज में कई परिवर्तन हुए थे परंतु अभी भी शूड्रों के जीवन पर इसका कोई

अम्बेडकर का जीवन संघर्ष इस बात का उदहारण है , अम्बेडकर अपने समय के विश्व के पांच सबसे बड़े विद्वानों में से एक थे ,अपने जीवन के कड़े अनुभवों को ध्यान में रखकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सदियों से हिन्दू धर्म द्वारा दलित, उत्पीडित बहुसंख्य जनों के उत्थान को समर्पित करते हुए लम्बे संघर्ष में लगा दिया , जिस कारण दुनिया को पहली बार भारत के इस महान अभिशाप का ज्ञान हुआ और पशुओं का जीवन व्यतीत कर रहे उन करोड़ों लोगों को स्वाभिमान से जीवन जीने की ललक पैदा हुई , उन्होंने अपने जीवन के कीमती कई वर्ष हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म शाश्त्रों के अध्यन में लगाये ,


अम्बेडकर के प्रयासों का ही नतीजा था की भारत के राजनैतिक और सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सात सदस्सिए साइमन कमीशन को भारत भेजा जिसका अम्बेडकर ने स्वागत किया लेकिन कांग्रेस ने इसका बहिस्कार कर दिया, और कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा १९२८ में नए संविधान की रूप रेखा तैयार की गई जिसके लिए सभी धर्म एवं सम्प्रदायों को बुलाया बुलाया गया लेकिन अम्बेडकर को इससे दूर रखा गया

१२ से १९ जनवरी १९३१ को गोलमेज की प्रथम कांफ्रेंस में पहली बार देश से बाहर अम्बेडकर ने अपने विचार रखे , और शूद्रो की सही तस्वीर पेश की इसी कांफ्रेंस में उन्होंने कानून के शाशन और शारीरिक ताकत की जगह संवैधानिक अनुशाशन की प्रतिष्ठा का दावा किया , सम्मलेन में जो ९ सब कमिटी बनी उन सभी में उन्हें सदस्य बना लिया गया , उनकी योग्यता उनके सारपूर्ण वक्तव्यों की वजह से यह संभव हो पाया, फ्रेंचाइजी कमिटी में उन्होंने दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग की और उनकी सभी मांगों को अंग्रेजी सरकार को मानना पड़ा

अम्बेडकर की इस अभूतपूर्व सफलता ने कांग्रेस की नींद हराम कर दी क्यूंकि सवर्णों की इस पार्टी को डर हुआ की सदियों से जिन्हें लातों तले दबा के रखा , उनसे अपने सभी गंदे से गंदे काम करवाए, अगर उन्हें सत्ता मिल गई तब तो हमारी आने वाली पीडिया बर्बाद हो जाएँगी , हमारा धर्म जो इनसे छीन कर हमें सारी सुविधाएं सदियों से देता आया है वो संकट में पड जायेगा , यही सब सोच कर कांग्रेस के इशारों पर गाँधी ने अम्बेडकर को मिले अधिकारों के विरूद्ध आमरण अनशन की नौटंकी शुरू कर दी , जिसके कारण अंत में राष्ट्र के दबाव में आकर अम्बेडकर को "POONA - PACT " पर हस्ताक्षर करने पड़े जिसके अनुसार अग्रिम संविधान बनाने का मौका अम्बेडकर को दिया जाना तय हुआ बदले में अम्बेडकर को गोलमेज में मिले अपने सभी अधिकारों को छोड़ना पड़ा

इस तरह वर्तमान संविधान का जो की मजबूरी में बना आधारशिला तैयार हुई जिसमें उन्होंने आरक्षण का प्रावधान डाला और दलितों के लिए सभी कानून बनाये अब जरा थोड़ी देर के लिए यह कल्पना कीजिये की अगर अम्बेडकर दलितों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षण की मांग करते जो की उनका हक़ है तो क्या होता , परन्तु अम्बेडकर ने ऐसा नहीं किया ,

आज जब सरकारी नौकरियां वैश्वीकरण के नाम पर पूरे षड्यंत्र करी तरीके से समाप्त की जा रहीं हैं , ऐसे में शूद्र एक बार फिर हाशिये पर आगया है ,ऐसे में ये कहना की बचे खुचे आरक्षण को भी समाप्त कर दिया जाये एक बार फिर से शूद्र को गुलाम बनाने की सोची समझी साजिश ही तो है

आज जितने दलित अम्बेडकर के प्रावधानों के कारण सरकारी नौकरियों तक पहुचे हैं और सुख से दो जून की रोटी खा रहे हैं , उससे कहीं अधिक ब्रह्माण आज भी हिन्दू धर्म शाश्त्रों के सदियों पुराने प्रावधानों के कारण देश के लाखों मंदिरों में पुजारी बन अरबों-खरबों के वारे न्यारे कर रहे हैं और देश की खरबों की संपत्ति पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं क्या किसी ने इस आरक्षण को समाप्त करने की बात की....?

क्या किसी ने आज भी दलितों पर होने वालें अत्याचारों को रोकने के लिए आमरण अनशन किया ? क्या किसी ने मिर्च पुर, गोहाना, खैरलांजी,झज्जर,के आरोपियों के लिए फांसी की मांग की ? क्यूँ नहीं पहले ब्रह्माण क्षत्रिय और वैश्य अपने अपने जातीय पहचानों को समाप्त करते ? जाती स्वयं नष्ट हो जाएगी जाती नष्ट होते ही आरक्षण की समस्या सदा के लिए नष्ट हो जाएगी ,ऊपर की जाती वाले क्यूँ नहीं अपने बच्चों की शादियाँ दलितों के बच्चों संग करने की पहल करते ? लेकिन यहाँ तो बात ही दूसरी है इनके बच्चे अगर दलितों में प्रेम विवाह करना चाहें तो ये उनका क़त्ल कर देते हैं धन्य हैं

एक दलित मित्र अपने ब्लॉग में कहतें हैं की अब तो ऐसा नहीं होता तो श्रीमान जी जरा अख़बार पढ़ा करो पता चल जायेगा आज भी इस देश में संविधान के इतने प्रावधानों के बावजूद प्रत्येक दिन तीन दलितों को उनकी जाती के कारण मार दिया जाता है प्रत्येक दिन एक दलित महिला से उसकी जाती के कारण बलात्कार होता है

Saturday, September 17, 2011

क्या ईश्वर है ?


स्वामी विवेकानंद के अनुसार इश्वर को सर्वशक्तिमान,सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त, दयालु, न्यायकर्ता ,होना चाहिए अगर इश्वर में ये गुण नहीं तो वो इश्वर नहीं

अब आइये इन गुणों से इश्वर को जानने का प्रयास करते हैं की क्या इश्वर में ये गुण है , सबसे पहले हम इश्वर के सर्वशक्तिमान वाले गुण की विवेचना करते हैं , क्या इश्वर सर्वशक्तिमान है , इश्वर के सर्वशक्तिमान होने का अर्थ है की उसके पास इतनी शक्ति हो की कभी भी कुछ भी कर सकता है ,

लेकिन विश्व के इतिहास में इश्वर ने कभी भी कुछ भी नहीं किया , उसी के नाम पर कितने ही कबीले आपस में लड़-लड़ कर नष्ट हो गए , हजारों सालों से आज तक उसी के नाम पर इंसान ,इंसान से जुदा होकर लड़ रहा है , देश ,देश से जुदा होकर लड़ रहा है कहाँ है इश्वर और उसकी महाशक्ति ,

साम्राज्यवादियों ने शताब्दियो तक सैंकड़ो देशों के करोड़ों इंसानों को गुलाम बना कर रखा, शताब्दियो तक सैकड़ों पीड़ियो ने अपनी हड्डियों तक गला दीं इनकी गुलामी में,कहाँ था इश्वर और उसकी महाशक्ति

हिटलर ने ६ करोड़ इंसानों का क़त्ल किया क्या हिटलर से कमजोर था इश्वर , अमेरिका ने जापान पर अपने एटम बमों द्वारा हमला कर लाखों को क़त्ल किया हजारों को अपंग बनाया , तब क्या अमेरिका के अटमबमों को रोकने की शक्ति इश्वर में नहीं थी ,अगर शक्ति थी तो रोका क्यूँ नहीं

चंगेज खान, हलाकू, तैमूर लंग, हिटलर , जिन्होंने करोड़ों इंसानों का खून बहाया , करोड़ों औरतों ,बच्चों को अनाथ, बेसहारा,और बेघर करने वाले इतिहास के इन महान अत्याचारियो को ईश्वर क्यूँ नहीं रोक पाया , शताब्दियों तक इनके अत्याचारों से उत्पीडित ,व्यथित, इंसानों पर उसे दया क्यूँ नहीं आई

अरे कैसा निष्ठुर इश्वर है जो आंसुओं के अथाह समुन्दर को देखकर भी तठस्थ बना रहा , क्यूँ नहीं अपनी महाशक्ति का प्रयोग किया ,क्या उनसे कमजोर था ,या उनसे डर गया था ऐसा कमजोर और डरपोक इश्वर सर्वशक्तिमान तो क्या दयालु भी नहीं हो सकता ,बल्कि उसका नाम तो चंगेज खान ,हलाकू,तैमूर,और हिटलर के साथ ही जोड़ने लायक है, अगर वो है तो.....

क्यूंकि इन सबसे सर्वशक्तिमान होते हुए भी उसने इन्हीं का साथ दिया या सिर्फ मूकदर्शक बन के बस देखता रहा , क्या इसलिए की बाद में न्याय करेगा ? अरे बाद में मिला न्याय क्या किसी अन्याय से कम है ?जब तुम्हे न्याय करना था तब तुम सोते रहे और कहते हो की बाद में देखेंगे , नहीं चाहिए तुम्हारी झूठी तसल्ली, और ना ही तुम्हारे जैसे किसी इश्वर की हमें जरूरत है जो शक्तिहीन हो, निर्दई हो, और अन्याई हो

क्या ऐसा इश्वर जो शक्तिहीन, निर्दई, और अन्याई हो वो सर्वज्ञ , या सर्वव्याप्त हो सकता है , अगर वो सर्वज्ञ और सर्वव्याप्त हुआ तो ये दुनिया के लिए अभिशाप ही सिद्ध होगा , लेकिन शुक्र है की वो सर्वज्ञ और सर्वव्याप्त नहीं है

कैसे आइये देखते है - अगर वो सर्वज्ञ है तो जब कोई दुखों से व्यथित होकर आत्महत्या को मजबूर होता है तो क्यूँ नहीं वो सर्वज्ञ होने का परिचय देते हुए उसके मरने से पहले ही उसके दुखों को दूर कर देता , उसकी आर्थिक सहायता करता या उसके क्लेशों को पहले ही जान कर उसका समाधान कर देता , जिससे उसके पीछे उसके बच्चे अनाथ न होते ,इसकी बीवी को बिधवा होने का दर्द न सहना पड़ता

देश में ५०-५५ किसान प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं , अभी इसी साल जनवरी से अब तक केवल इन आठ महीनों में ही देश के केवल एक जिले में ५०६ किसानों ने आत्महत्या की , इश्वर सर्वज्ञ था तो क्यूँ नहीं इनकी समस्याओं का निदान किया , या इन्हें निदान का रास्ता बताया ,जिससे आज इनके पीछे दुखी लाखों लोग बर्बाद नहीं होते ,क्या उसे इसका पता नहीं था, था तो क्यूँ बेमौत मरने दिया इन्हें ?

क्या ऐसा इश्वर जो शक्तिहीन ,निर्दई,अन्याई,अज्ञानी हो वो सर्वव्याप्त हो सकता है ,नहीं कभी नहीं, प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में १० लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में बेमौत मारे जाते हैं , लाखों औरतों का प्रतिवर्ष बलात्कार होता है इनमें से हजारों औरतों को बलात्कार के बाद बेरहमी से मार दिया जाता है , दूधपीते बच्चों तक से बलात्कार होते हैं ,दहेज़ के लिए कितनी ही औरतों को जिन्दा जला दिया जाता है , पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष लाखों लोग आतंक का शिकार होते हैं , करोड़ों जिंदगियां नालों, फुटपाथों और झुग्गियों में सड़ रहीं हैं, प्रतिवर्ष करोड़ों बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे हैं,

कहाँ हैं वो सर्वव्याप्त ईश्वर क्या उसे ये दिखाई नहीं दे रहा है या दीखते हुए भी वो इतना असहाय है की कुछ कर नहीं सकता , ऐसे अंधे और असहाय ईश्वर की हमें कोई आवश्यकता नहीं जो सर्वव्याप्त होते हुए भी कुछ न कर सके

Monday, September 12, 2011

डर के आगे जीत है !


जीवन का आधार तीन बातों पर कायम है
१.भोजन- विकास के लिए
२.सुरक्षा- अधिक समय तक जीवन की सम्भावना के लिए
३.सेक्स- अपना वंस आगे बढ़ाने के लिए
यह तीन बातें जीवन का प्राथमिक सिधांत हैं ,चाहे वह अमीबा हो या मानव उसका पूरा जीवन इन्हीं तीन आवश्यकताओं पर ही केन्द्रित रहता है , सुरक्षा की भावना ही डर को जन्म देती है और यही डर आज संसार के सभी जीवों के आस्तित्व में होने का कारण भी है ,इसलिए डर इन्सान के जीवन का अभिन्न हिस्सा है

इन्सान प्रत्येक उस चीज से डरता है जो उसे नुकसान पहुंचा सकती है जैसे -आग ,पानी, खूंखार जानवर इत्यादि, इन सब के आलावा जो इन्सान को सबसे बड़ा डर है वो है मृत्यु का डर या यूं कहें की स्वयं के आस्तित्व के खोने का डर ,पुरापाषाण काल के मानव के इसी एक डर ने कालान्तर में कई सारी कल्पनाओं को जन्म दिया जैसे -भगवान, आत्मा, परलोक, स्वर्ग-नरक, देविदेवता, ताकि स्वयं को तसल्ली दे सके की उसका आस्तित्व मृत्यु के बाद भी रहेगा , यही कल्पनाएँ जिन्हें मानव की सहज बुद्धि ने मृत्यु के डर को निष्क्रिय करने के लिए किया था आगे चलकर तरह-तरह के कर्मकांडों और अंधविश्वासों में परिवर्तित हुईं जिसके फलस्वरूप इन्ही कर्मकांडों और अंधविश्वासों ने धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप ले लिया , आज सैंकड़ों धर्मों के रूप में अज्ञानता का वही व्यवसाय हमारे सामने है , इसीलिए आज भी धर्म दुनिया के तीन सबसे बड़े व्यवसायों में से एक है बाकि दो हैं दवा और हथियार

आज जब मानव उस अन्धकार युग को बहुत पीछे छोड़ कर उस युग में अपने कदम रख चुका है जहाँ से वह ब्रह्माण्ड के रहस्यों की परतें खोल रहा है , पृथ्वी अब उसके लिए रहस्य नहीं रही , जीवन और मृत्यु की पहेलियाँ अब पहले सी जटिल नहीं रहीं , ऐसे में उसे उस धर्म की आज कोई आवश्यकता ही नहीं जिसे उसने अपनी अज्ञानता वश अविष्कृत किया था या उसके अज्ञान काल में आस्तित्व में आई बल्कि मानवता की प्रगति में आज सबसे बड़ी रूकावट धर्म ही है

धर्म आज दुनिया के लिए अफीम के सामान है लेकिन धर्म के व्यवसाई किसी भी कीमत पर इसे समाप्त नहीं होने देना चाहते बल्कि इस अफीम का व्यापार करने वाले इसको समाप्त करने के बजाये इसका नशा और तेज करने में लगे हुए है

मृत्यु जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है उससे डर कैसा , मृत्यु के बाद क्या होगा वो बताने के लिए तो आज तक कोई लौट कर नहीं आया , जीवन जलती हुई मोमबत्ती के लौ के सामान है जब मोमबत्ती का ऊर्जा क्रम टूट जाता है तब वो लौ समाप्त हो जाती है , इसी तरह जब हमारी खरबों कोशिकायें कमजोर हो जाती हैं तो हम बूढ़े हो जाते हैं और जब सभी कोशिकाएं पूरी तरह काम करना बंद कर देती है तो हम मर जाते हैं, यही जीवन की सच्चाई है , इसे समझते ही धर्म का महल ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगा ,क्यूंकि आत्मा ही तो परमात्मा का आधार है और ये दोनों धर्म का आधार ,जहाँ आत्मा मरी वहीँ परमात्मा भी मर जायेगा और इन दोनों के मरते ही धर्म अपने आप ही समाप्त हो जायेगा जो हमें सदियों से आत्मा और परमात्मा के नाम पर डरा कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है

जरा सोचिये - हम कुत्ते से डरते है, शेर से डरते हैं , भेडिये से डरते हैं , सांप से डरते हैं, बिच्छु से डरते हैं, इन्हीं सब के कारण अँधेरे से डरते हैं लेकिन भगवान से हमको डराया जाता है क्यूँ ? क्यूंकि हमारे इसी डर में तो उनकी जीत छुपी है जो इंसानियत को डरा रहे हैं , तो बंधुओं हमें इस डर को भगाना है क्यूंकि इस डर के आगे इंसानियत की जीत है....

Thursday, September 8, 2011

काश कोई धर्म न होता



.......काश कोई धर्म न होता
.......काश कोई मजहब न होता

ना गुजरात कभी सिसकता
ना कंधमाल होता
ना गोधरा, गोहाना
ना मिर्च पुर बिलखता

ना तेरा दर्द होता, ना मेरा घाव होता
तुझसे मुझे मुहब्बत, मुझे तुझसे लगाव होता
ना बम धमाके होते, ना गोलियां बरसती
ना असीमानंद होता, ना कसाब होता

.......काश कोई धर्म न होता
.......काश कोई मजहब न होता

ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते
ना हराम होती, रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता, सुबह के पांच बजते

ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता


ना अर्ध देते , ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता
जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता

ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता
ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना होता
कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता

ना ही गीता होती , और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता, ना भगवान होता
तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता
ना मैं हिन्दू होता, ना तू मुसलमान होता

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता
फिर ना बंगलादेश बंटता, ना पकिस्तान होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

ना आतंक वाद होता, ना अत्याचार होता
ना अन्याय होता, ना भ्रष्टाचार होता
ना आबरू सिसकती, ना बलात्कार होता
ना किसी को जख्म मिलता, ना व्यभिचार होता

ना जातियां ही होती , ना बंटाधार होता
जुल्मो-सितम किसी पे, ना बार-बार होता
ना नफरतें ही होती, ना सरहदें ही होती
ना फसाद होते, बस प्यार-प्यार होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

ना परमाणुओं का खतरा, ना ऐटम-बम होते
ना मिसाइलों की दहशत, ना ड्रोन-बम होते
ना पासपोर्ट लगता, ना किसी पे शक होता
पृथ्वी की हर जमीन पे, सभी का हक़ होता

ना बेबसी ही होती, ना कोई गरीब होता
दुखों से दूर मानव, सुख के करीब होता
ना रोटी की जंग होती, ना झोपड़ का दर्द होता
संसाधनों का अवसर, सबको नसीब होता

ना तीर्थ कोई , ना हज्ज फर्ज होता
कोई ख़ुदकुशी न करता, ना किसी पे कर्ज होता

.......काश कोई धर्म ना होता
.......काश कोई मजहब ना होता

Friday, September 2, 2011

मिराज - मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की हकीकत


मुस्लिम शरीफ और बुखारी शरीफ की हदीसो के अनुसार मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की जो तस्वीर सामने आती है वह कुछ इस तरह है -

एक दिन सुबह उठकर मुहम्मद ने अपने लोगों को इकठ्ठा किया और उन्हें बताया की ''कल रात इश्वर ने मुझे बहुत ही सम्मान प्रदान किया मैं सो रहा था की जिब्रील आये और मुझे उठाकर काबा ले गए ,

यहाँ लाकर उन्होंने मेरा सीना खोलकर जम-जम के पानी से उसे धोया और फिर उसे इमान और हिकमत से भरकर बंद कर दिया , इसके बाद जिब्रील मेरे लिए सफ़ेद रंग का बुरक नाम का घोडा जो खच्चर से छोटा था लाये मैं उस पर सवार हुआ ही था की अचानक हम बेतलहम पहुँच गए यहाँ बुरक को मस्जिद के दरवाजे पर बांध दिया गया ,

इसके बाद मैं जिब्रील द्वारा मस्जिद-ए-अक्शा ले जाया गया जहाँ में दो रकात नमाज पढ़ी | इसके बाद जिब्रील मेरे सामने दो प्याले लेकर आये एक दूध से भरा था और दूसरा शराब से लबरेज......मैंने दूध वाला प्याला लिया जिब्रील ने कहा की आपने दूध वाला प्याला स्वीकार कर धर्माचार का परिचय दिया है |

इसके बाद आसमान का सफ़र आरम्भ हुआ , जब हम पहले आसमान पर पहुंचे तो जिब्रील ने वहां तैनात फ़रिश्ता (चौकीदार) से दरवाजा खोलने को कहा , उसने पूछा "तुम्हारे साथ कौन है ? और क्या ये बुलाये गए हैं ?'' जिब्रील ने कहा "हाँ बुलाये गए हैं "यह सुनकर फ़रिश्ते ने दरवाजा खोलते हुए कहा "ऐसी हस्ती का आना मुबारक हो" जब अन्दर दाखिल हुए तो उनकी मुलाकात आदम से हुई , जिब्रील ने मुहम्मद को बताया की ये आपके पीता और पूरी मानव जाती के पूर्वज हैं इनको सलाम करो ,

इसके बाद दुसरे आसमान पर पहुंचे और पहले की तरह यहाँ भी फ़रिश्ते को परिचय देने के बाद अन्दर दाखिल हुए जहाँ याह्या और ईसा से परिचय हुआ

इनको सलाम करने के बाद मुहम्मद इसी तरह तीसरे आसमान पर गए यहाँ उसुफ़ थे चौथे पर इदरीस पांचवे पर हारून, छठे पर मूसा, और अंत में सातवे आसमान पर इब्राहीम से मुलाकात हुई ,

इसके बाद जिब्रील मुहम्मद को लेकर "सिदार-तुल-मुन्तहा" पहुचे जहाँ एक पेड़ है जिस पर असंख्य सितारे जुगनुओं की तरह चमक रहे थे , यहीं अल्लाह से मुलाकात हुई जहाँ अल्लाह ने मुहम्मद को अपने अनुयाइओ के लिए ५० नमाजें भेंट कीं , जब वापस आने लगे तो मूसा ने पूछा की क्या तोहफा मिला उन्होंने पचास नमाजों के विषय में बताया , मूसा ने कहा तुम्हारे अनुयाई इस बोझ को नहीं उठा पाएंगे जाओ कुछ कम करवा आओ इस तारा पचास नमाजें घाट कर पांच समय की हुई

इस यात्रा में मुहम्मद को जन्नत और दोजख लाइव दिखाया गया , वापसी में मुहम्मद फिर धरती पर बैतूल मक्दिस गए वहां सूफी और महात्माओ को नमाज पढाई , इसके बाद मुहम्मद अपने घर वापस लौटे इस तरह मुहम्मद के इस मनगढ़ंत मिराज यात्रा का सफ़र समाप्त हुआ

सुबह जब मुहम्मद ने अपनी इस काल्पनिक स्वर्ग यात्रा का विवरण लोगो को बताया तो मुहम्मद के कुछ चमचों(अनुयाइओ) ने इस झूठ का एक एक शब्द सच मान लिया , परन्तु जो सत्य के पुजारी थे उन्होंने इस झूठ को ये कह कर ख़ारिज कर दिया "तू तो बस हमारे ही जैसा एक आदमी है हम तो तुझे झूठे लोगों में से ही पाते हैं" कुरान -अश-शुअरा, आयत १८६ और जो चमचे थे जिन्हें इस इस्लाम नाम की चीज से आयाशिया करने का अवसर प्रदान होता था उन्होंने इसे मुहम्मद का एक और चमत्कार घोषित कर दिया

जब हम इस यात्रा विवरण की कहानी को तर्क की कसौटी पर कसते हैं तो कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जैसा की हदीसों में कहा गया है की सुबह मुहम्मद ने लोगों को ये बात बताई इसके अलावा इस बात का और कोई प्रमाण नहीं है न किसी ने जिब्रील को देखा न किसी ने बुरक नाम की गधही को देखा बस मान गए क्यूंकि उनका सरदार कह रहा था

इस विवरण से तो यही पता चलता है की इस घटना से पहले मुहम्मद के अन्दर इमान था ही नहीं तभी तो जिब्रील मुहम्मद को काबा ले जाकर उनका सीना फाड़ के इमान घुसेदते है , अगर उनके अन्दर ईमान था तो फिर जिब्रील को ऐसा करने की क्या आवश्यकता पड़ी , और क्या इस से पहले मुहम्मद के सीने में गन्दगी भरी हुई थी जिसे जिब्रील ने जम-जम के पानी से धोया ,

और क्या इस बात का कोई आधार है की इमान सीने में होता है , धर्म या इमान अच्छाई या बुराई तो इन्सान के मस्तिष्क की देन है ये इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति को बचपन में कैसे संस्कार या उसका विकास किस प्रकार हुआ है , इस तरह ईमान दिमाग के अन्दर होता है न की सीने में परन्तु क्या सर्वज्ञान संपन्न अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं था जिसे वह अपने फ़रिश्ते को सिखाते की बेटा इमान सीने में नहीं दिमाग में होता है जाओ और मुहम्मद का दिमाग खोल के उसको साफ़ करना सीने को नहीं वहां दिल होता है जो दिमाग को खून पहुँचाने का काम करता है

इसके बाद हम चलते हैं दूध पीने वाली घटना पर जब जिब्रील मुहम्मद को दूध और शराब से भरा गिलास देते हैं तो मुहम्मद दूध को स्वीकार करते हैं और शराब से इंकार करते हैं इस पर जिब्रील कहतें हैं की शराब को अस्वीकृत कर निश्चय ही आपने धर्माचार का परिचय दिया है

अब इस घटना पर भी कई प्रश्न खड़े हो जाते है जैसे की क्या जब जिब्रील मुहम्मद का सीना खोल कर कैसेट बदल देते हैं यानि धोकर ईमान घुसेड देते हैं तब तो आदमी धर्माचार ही करेगा न , गाने की कैसेट डालोगे तो गाना ही बजेगा न फिल्म थोड़े ही चलेगी ,और क्या जिब्रील दूध और शराब देकर परिक्षण कर रहे थे की जो ईमान घुसेड़ा गया है वो सही काम कर रहा है की नहीं यानी जिब्रील को अपने इस कैसेट बदलने की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं था , मतलब की मुहम्मद ने अगर दूध पिया तो वह सीने में ईमान घुसेड़ने की वजह से अन्यथा वह शराब ही पीते.......

Thursday, September 1, 2011

धर्म का दोगलापन


धर्म की बुनियाद ही अंधविश्वास पर है जिसे आस्था भी कहा जाता है सत्य से धर्म का सदियों से बैर रहा है, अनैतिकता,अत्याचार,सामाजिक असमानता और अकर्मण्यता धर्म की दुनिया को ये महान सौगात है

जब भी किसी ने धर्म के उपर उंगली उठाई उसको हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया....धार्मिक लोग गिरगिट की तरह होते है राम के नाम पर भव्य मंदिर बनेंगे ,हर साल अरबों रुपये रावण दहन के नाम पर जलाएँगे अरबों रुपये राम के नाम पर (दीवाली)बारूद में झोंक देंगे सब राम 'भगवान' के नाम पर....

लेकिन जब कहोगे की राम ने एक स्त्री के नाक-कान क्यूँ काट दिए थे तब वही राम एक साधारण मानव बना दिए जाएँगे और कहा जाएगा की अपनी बीवी को बचाने के लिए राम ने ऐसा किया....यही भगवान राम मामूली इंसान बना दिया जाएगा जब पूचोगे की सीता को क्यूँ निष्कासित किया, यही राम भगवान राम बाली-वध, शम्बूक-वध, लक्षमण निष्कासन, लंका-दहन जैसे कुकृतों पर भी मामूली इन्सान बन जाता है, गिरगिट की तरह रंग बदलने की इसी प्रवित्ती ने धर्म को जिंदा भी रखा हुआ है,

महात्मा बुध को इनके ही धर्म ग्रंथ गलियाँ देते नहीं आघाते वाल्मीकि रामायण बुध को चोर घोसित करती है (देंखे-अयोध्या-कांड,सर्ग-109,श्लोक-34)लेकिन जब अपनी महानता बखाननी हो तब यही बुध विष्णु के अवतार घोषित कर दिए जाते हैं,

इसी तरह दयानंद सरस्वती का भी इस्तेमाल किया जाता है अपने दोगलेपन को साबित करने के लिए....जिनका कहना था इन धर्मग्रंथों के लेखकों के बारे में की "ये लोग पैदा लेते ही मर क्यूँ नही गये या केवल अपनी माँ को प्रसूति में प्रीडा देने के लिए ही इनका जन्म हुआ"(एकादश समुल्लास)