सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Wednesday, August 31, 2011

धर्म और समाज


अतीत में हुई गलतिओं को समझे बिना हम उज्वल भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते, कुरान तो स्त्रिओं को खेती का दर्जा देता है, इस्लाम ही क्या परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हर धर्म में स्त्री का स्थान केवल उपभोग तक ही सीमित रहा है, कोई भी धर्म किसी भी स्त्री के लिए अभिशाप से कम नहीं है |

हिन्दू धर्म में जब स्त्री की बात होती है तब पौराणिक कथाओं से २-४ उदाहरण गिना दिए जाते है जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई भी सम्बन्ध नहीं | ये धर्म के ही देन है की आज तक भी नारीओ का उथान नहीं हो पाया है|

भारत में दहेज के लिए आज भी लगभल १० स्त्रिओं को जला दिया जाता है, प्रतियेक घंटे ३ बलात्कार होते है, प्रतियेक वर्ष चालीस लाख लड़किओं को वेश्यावृति के लिए विवश कर दिया जाता है | स्र्तिओं की शिक्षा के मामले मैं भारत का स्थान १६०वां है, जो हमारे पड़ोसे देशों से भी कम है| स्त्री मृत्यु दर भी भारत मैं सर्वाधिक है| पिछले २० वर्षों में लगभल एक करोड़ स्त्रिओं को गर्भ मैं भी मर डाला गया | देश के ६५ % स्त्रिओं की शादी १३ वर्ष से भी कम आयु मैं कर दी जाती है अब जरा इन आंकड़ों से पश्चिम की स्त्रिओं की स्तिथि की तुलना भी कर लीजये आपको थोड़ी बहुत वास्तविकता का ज्ञान हो जायेगा |

आप कहेंगे ये सब तो व्यवस्था की खामियां है, नहीं ये हमारे धर्म की देन है ,जी हाँ सामाजिक विद्रूपों का स्रोत परमपराओं और सनस्क्रतिओं में छुपा होता है , परमपराओं और संस्कृतियों को उर्जा धर्म से मिलती है ,इस तरह वर्तमान में ही नहीं हर युग में देश की सभी समस्याओं के मूल में धर्म एक प्रमुख कारण अवश्य रहा है | अब जरा संशेप में ही धर्म के कुछ अनमोल वचन सुन लीजये जो स्त्रिओं के विषये में है

बहुत ही संशेप में
अधम ते अधम अधम अति नारी....
१. जो नीचों से भी नीच है नारी उससे भी नीच है... - (रामचरित मानस अरण्य-कांड, 35 शलोक 2 और 3 )
२. नारी यदि पुरुष की कामेच्छा पूर्ति न करे तो उसे हाथों से या लाठी
से पीटे और कहे की मैं तुम्हे बदनाम कर दूंगा... (वृहद्रान्यक उपनिषद
स्कन्द ६ अद्याय ४ शलोक नो ७ )

३. स्त्री और भूमि दोनों बराबर हैं ... (पराशर स्मृति अद्याय १० शलोक २५ )

४. जो व्यक्ति १२ वर्ष से पहले अपनी कन्या का विवाह नहीं करता वह उस कन्या का मासिक धर्म पीता है... (पराशर स्मृति अद्याय 7 शलोक ७)
भारत में कभी स्त्रिओं को धार्मिक सती प्रथा के नाम पर जिन्दा जला दिया जाता था, सती प्रथा हिन्दू धर्म एव धर्म शास्त्रों का अभिन्न अंग था

|जातिवाद का जहर प्रतिएक भारतीओं के खून में बसा हुआ है आज भी जाती के नाम पर प्रतिदिन ३ व्यक्ति मारे जाते है प्रतिदिन २ दलित महिलाओं से बलात्कार होता है कुपोशन के शिकार एवं बालमजदूरी में लिप्त बच्चे 99 % दलित ही क्यूँ होते है ,ऐसा
क्यूँ है SC /ST/OBC पर होने वाले सभी प्रकार के भेद भाव एवं अत्याचारों का मूल स्त्रोत हमारा धर्म एवं धर्म शाश्त्र ही है कुछ उदहारण देखिये
१ .यदि कोई नीची जाती कव्यक्ति ऊंची जाती का कर्म करके धन कमाने लगे तो राजा को यह अधिकार है की उसका सब धन छीन कर उसे देश से निकल दे (मनुस्मृति
१०/२५ )
२.बिल्ली नेवला चिड़िया मेंडक उल्लू और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC की हत्या में है (मनुस्मृति ११/131 )

३.शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC द्वारा अर्जित किया हुआ धन ब्रह्मण उससे जबरदस्ती छीन सकता है क्यूंकि उसे धन जमा करने का कोई अधिकार ही नहीं है (मनुस्मृति ८/416 )


इस प्रकार के आदेशों से तो हिन्दू धर्म के सभी धर्म शाश्त्र भरे पड़े है श्री राम शम्बूक का वध सिर्फ इस लिए कर देते है क्यूंकि वो एक शुद्र होकर शिक्षा देने का कम कर रहा था .इन्ही वजहों से देश में दलितों पर अत्याचार होते है जरा सोचिये जब इन अत्याचारों को रोकने के लिए आज इतने क़ानून हैं फिर भी देश में "मिर्चपुर" जैसी घटनाएँ होती हैं जहा एक विकलांग लड़की के साथ उसके पुरे परिवार को सिर्फ इसलिए जिन्दा जला दिया जाता है क्यूंकि उस दलित परिवार के पास मोटर साईकिल खरीदने की हैसियत हो जाती है तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते की अतीत में इन अभागे 80 % शूद्र यानि शC /श्ट /ओBC का क्या हाल होता होगा ?

जहा तक देश की गुलामी से हमारे पतन की बात है तो आपको बता दू की सतीप्रथा पर रोक अन्रेजो ने ही लगाई.स्त्रियों को पढने का अधिकार भी उन्हों ने ही दिया .अन्याय अत्याचार और असमानता पर आधारित मनुस्मृति की जगह समानता पर आधारित इन्डियन पीनल कोड उन्ही की दें है ,

उन्ही की भासा इंग्लिश की वजह से ही हमारे नेता आधुनिक दुनिया के संपर्क में आये और डेमोक्रेसी,रिपब्लिक,सेपरेशन आफ पावर, क़ानून का शाशन,सेकुलरिज्म, इक्विलिटी,लिबर्टी, हुमनराइट, और जस्टिस आदि की जानकारी पाई

आजादी के बाद उन्ही अंग्रेजो की भासा के माध्यम से भारतीय प्रफेशनल्स साइंस,इकनामिक्स,साफ्टवेअर,मनाज्मेंट,मेडिकल साइंस आदि क्षेत्रों में दुनिया भर में नाम कम रहे है ,इस तरह भारत को सभ्य बनाने में अंग्रेजो का बहुत बड़ा योगदान भी रहा है जिसके लिए हमें उनका आभार मानना चाहिए -

हिन्दू संस्कृति ही विश्व में एकमात्र ऐसी संस्कृति रही है जहा मेहनत करने वाले को शिल्पियों को कारीगरों को हीन समझा जाता रहा है उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाये कदम कदम पर तिरस्कृत किया जाता रहा गलियां दी जाती रहीं जिसके परिणाम स्वरुप कुछ अपवादों को छोड़ कर यहाँ विज्ञान पनप ही नहीं पाया

महाभारत के अनुसार चिकित्सा,शिल्प,अस्त्रशस्त्र के निर्माण,चित्रकारी,कारीगरी,कृषी तथा पशुपालन यह सब नीच कर्म है

(अनुशासन पर्व अ० २३श्लोक १४और२४---) (अनुशासन पर्व अ०90श्लोक६/८/9) (अनुशासन पर्व अ०135श्लोक 11)

तुलसी दस जी का तो कहना है की पुजिये विप्र ज्ञान गुण हीना ,शुद्र न पुजिया ज्ञान प्रवीना ...और ढोल गावर शूद्र (यानि शC /श्ट /ओBC) पशु नारी यह सब ताडन के अधिकारी

इन सबके उलट विदेशो में आधुनिक विज्ञान के जन्म दाताओं में अधिकतर व्यक्ति ऐसे ही परिवारों में पैदा हुए जहा हिन्दू धर्मशास्त्रो के अनुसार नीच कर होते थे -

उदाहरनार्थ जेम्स्वाट बढई का बेटा था , एडिसन का पिता लकड़ी के तख्ते बनता था ,लुइ पाश्चर कगरिब पिता चमड़ा कम कर अपना परिवार पलता था ,बेंजामिन फ्रिन्क्लिन का बाप साबुन और मोमबत्ती बनता था , सेफ्टी लंप के अविष्कारक ड्युई का बाप नक्काशी करता था ,फैराडे लुहार का बेटा था ,ज़ाआऱ्ज़्श्टेएFआण्शाण का बाप गरीब फायरमैन था ,न्यूटन और मार्कोनी किसान के बेटे थे ,डार्विन का पिता चिकित्सक था ,आर्कराईट एक साधारण नाई का बेटा था

संघ और तालिबान


संघ और तालिबान में कोई विशेस अंतर नहीं, इस्लाम के नाम पर आतंक के सहारे दिलों में जो ख़ौफ़ तालिबान ने डाली हुई है वहाँ के लोगों पर, वही डर संघ द्वारा भारत में भी हिंदुत्व के नाम पर पैदा किया जा रहा है, जिस प्रकार तालिबानी क़ुरान आदेश पर नौजवानों को 'ब्रेन्वाश' कर के उनसे आतंकी घटनाओं को आसानी से करवा लेते हैं 

, उसी प्रकार 'ब्रेन्वाश' करके यहाँ दारा, बाबूबाजरंगी, असीमानंद,प्रगया, आदि से इसी राष्ट्रवाद के नाम पर बड़े बड़े कुकृत्यों की भी आसानी से करवाया जाता है, बस फ़र्क इतना है की तालिबानी कुकृत्यों को अंजाम देकर मुकरते नहीं....यहा बड़े बड़े कुकृत्यों को करवाकर उनसे संबंध तोड़ लिया जाता है, या संबंध ना होने का बहाना बना दिया जाता है बस...और कोई अंतर नहीं.......उनकी सोच की परिणति कसाब द्वारा बड़े हमले पर होती है.....इनकी परिणति असीमनंद द्वारा धमाकों पर हो जाती है.....उनके द्वारा भी निर्दोष ही मरतें हैं यहा भी निर्दोष ही मरतें हैं.....यहाँ दारा तो वहाँ तुफैल.....कोई अंतर नहीं जनाब...वहाँ ओसामा यहाँ असीमा(नंद) क्या अंतर है भाई.....

.इनके लिए तो पूरे देश की मीडिया और जो भी इनकी सच्चाई जनता है सब इनके दुश्मन हो जाते हैं, इनकी नीति बुरी है क्यूंकी इनकी नियत बुरी है, ये लोग अपने असंखों कुकर्मो को छुपाने के लिए असंख्यों कुतरकों का सहारा लेते हैं तब भी अपने घिनौने चेहरे को नहीं छुपा पाते.....इन्हे लगता है की देश बेवकूफ़ है अरे भाई अच्छे कर्म करोगे तो लोग पागल थोड़े ही हैं जो तुमहरे उपर व्यर्थ आरोप लगाएँगे, मदर टेरेसा ने थोड़े वक़्त में मानवता के लिए कितना महान काम किया क्या देश ने उन्हें सम्मान नहीं दिया, आप बदनाम हैं तो क्यूँ कभी सोचा हैं......

पूरी ईमानदारी से थोड़ा अपने आज़ादी से अब तक के कुकर्मो के लंबे इतिहास का अवलोकन अगर संघ करले लो उसे स्वयं ही खुद से घृणा होने लगेगी संघ द्वारा बार-बार कश्मीरी ब्राह्मणों के राग अलाप से उसकी मानसिकता का पता चल जाता है

क्या संघ ने कभी गोहाना,मिर्चपुर,खैरलांजी,झज्जर के पीड़ितों की सुध ली है क्या उनके लिए एक भी घड़ियाली आँसू बहाए है,नहीं क्यूंकी वे दलित जो ठहरे....


क्या संघ ने कभी खाप पंछयातों के विरुढ़ कोई व्यापक आंदोलन छेड़ा, नहीं क्यूंकी ये हमारी महान संस्कृति का हिस्सा जो ठहरी....

क्या संघ ने कभी विधवा विवाह को प्रोत्साहित कर नारकिय जीवन जी रही लाखों विधवाओं का दुख दूर करने का प्रयास किया, नहीं क्यूंकी शास्त्रों के विरुढ़ नहीं जा सकते.....

क्या संघ ने कभी सरकारी ज़मीन पर कुकुरमुत्तों तरह की उग आए लाखों करोड़ों मंदिरों को ध्वस्त करने के लिए कुछ किया, नहीं क्यूंकी ये तो धार्मिक स्थल है....

क्या संघ ने कभी उन करोड़ो बेघरों को बसाने के लिए कुछ किया जिनकी पीडिया नालों और फुटपातों पर गुजर गई या गुजर रहीं हैं, नहीं क्यूंकी ये तो अपने पिछले जन्म के पाप काट रहें है....

.क्या संघ ने कभी उन खरबों रुपयों की देश की संपत्ति को निर्धानों को देने की माँग की जो लाखों मंदिरों में चढ़ावे के रूप में 'भगवान' को भोग लगने के बाद सड़ रहे हैं, नहीं क्यूंकी वो आस्था का मामला है.....

क्या संघ ने कभी अपनी 6 करोड़ राष्ट्रवादियों की फौज होते हुए भी राष्ट्र की मूलभूत समस्याओं के निदान के लिए कुछ किया, नहीं क्यूंकी ये राष्ट्रवाद तो ब्राह्माणवाद को स्थापित करने का ढोंग है......

.इनका वास्तविक ध्येय देश या राष्ट्र की उन्नति से तो कतई नहीं है, इनका अंतिम लक्ष्य है राष्ट्रवाद की आड़ में ब्राह्माणवाद की स्थापना, देश में समानता पर आधारित संविधान को स्थगित कर असमानता पर आधारित मनुस्मृति को एक बार फिर से देश का खून चूसने के लिए लागू करना संघ के महान राष्ट्रवाद का नमूना देश सत्तर सालों से देख रहा है,

संघ की राष्ट्रवाद के नाम पर राष्ट्र को खंडित करने की मानसिकता के अनुरूप ही संघ अपने पापों को ढकने के लिए समय समय पर 'अभिनव भारत' 'राम सेना' आदि नामों से अपने लोगों के द्वारा देश की एकता और अखंडता को छिन्न-भिन्न करने का षड्यंत्र प्रायोजित करवाता है और फिर जब इन लोगों के कुकर्म सामने आ जाते हैं तो बड़ी ही बेशर्मी से इन लोगों का संघ से दिखावे के लिए संबंध ना होने का ढोंग किया जाता है और अप्रत्यक्ष रूप से बड़े-बड़े वकील नियुक्त किए जाते हैं इन को निर्दोष साबित करने के लिए,

कौन नहीं जानता की गोडसे,बाबूबाजरंगी,दारा सिंह,असीमनंद, श्रीकांत पुरोहित,प्रगया ठाकुर, जैसों का जन्म दाता कौन है, आर एस एस ही इन जैसे हज़ारों को पैदा करके उनके दिमाग़ को राष्ट्रवाद के नाम पर ब्राह्माणवाद की अफ़ीम द्वारा पागल कर उन्हें राष्ट्र को लाहुलुहन करने की ट्रेनिंग देकर विहिप,बजरंगदल,जैसे ना जाने कितने ही छद्म हिंदुत्वादी घेराबंदियों द्वारा महान से महान कुकृत्यों को आसानी से अंजाम दिया जाता है,

इतिहास इनके द्वारा राष्ट्र को दिए गये घाओं से लाहुलुहन है, गुजरात, कंधमाल के घाव अभी भी हरे हैं संघ अगर वास्तव में राष्ट्रवाद का समर्थक होता तब वो अवश्य सार्वजनिक तौर पर जातिवाद का विरोध करता परंतु यहा तो हाँथी के दाँत खाने के और दिखाने के और हो जाते हैं, संघ को राष्ट्र की चिंता होती तब ना वो जाती को जड़ से समाप्त करने के लिए धर्मशास्त्रों की मान्यता को निरस्त करने का प्रयास करता, उसे तो राष्ट्रवाद की आड़ में ब्राह्माणवाद की स्थापना करनी है,

भारत में जाती प्रथा का क्या कारण है या था, दलित उत्पीड़न की घटनायें क्यूँ होती हैं महिलाओं की दुर्दशा क्यूँ हैं, इन सब के लिए क्या संघ ने 85 वर्षो में कुछ किया,

गाँधी की हत्या से लेकर गुजरात,कंधमाल में हमने संघ के झूठे राष्ट्रवादी चेहरे के पीछे छुपे असली डरावने चेहरे के कुकर्मो को देखा और सहा है, अरे एकता और अखंडता के नाम पर देश को खंड-खंड करने पर तुले हो और बात करते हो राष्ट्रवाद की.....याद रखो की कुकर्म अधिक दिन च्छुपते नही, सत्तर साल बहुत होते हैं देश संघ की असलियत को जान चुका है.....अभी भी समय है अपने पापों का प्रायश्चित करने का शायद देश माफ़ भी कर दे.....

महाभारत और राष्ट्रवाद


राष्ट्रवाद की बात करने वालों को पहले अपने उन शास्त्रों को गटर में फैंक देना चाहिए जो देश को जाती और क्षेत्रवाद के नाम पर पृथक करती है, महाभारत राष्ट्रवाद की कितनी बड़ी समर्थक है उसका एक उदाहरण -

मलम पृथ्वियाँ वाहीकाः,
स्त्रीणा मद्रस्त्रियो मलम!!

मनुष्णन मलम म्लेच्छः
वृिषला दक्षीणतयाह स्तेना वाहीकाः
,
संकरा वैइ सुरष्ट्राः
आरात्तजान पंचदान धिगस्तु!
(महाभारत-कर्णपर्व,अध्याय45,श्लोक23से38)

अर्थात---वाहिक(पंजाबी) लोग सारी धरती का गंद हैं,सारी दुनिया की स्त्रियों का गंद मद्र देश की स्त्रियाँ हैं,म्लेच्छ सब मानवों का गंद हैं, दक्षिण वासी लोग मूर्ख-शूद्र हैं,पंजाबी चोर हैं,सुराष्ट्र के लोग दोगले हैं,पंजाबियों पर लानत है/

अनुवाद का संदेह हो तो किसी भी संस्थान से छापे महाभारत के हिन्दी अनुवाद को पढ़ लीजियेगा

क्या वाल्मीकि शूद्र थे ?


वाल्मीकि को शूद्र कहना ये भी एक बहुत बड़ा प्रोपगैंदा है..जिसके सहारे लाखों दलितों को वाल्मीकि का वंशज बताकर उन्हें हिंदू धर्म को त्यागने से रोक दिया गया,और बड़ी ही हरामखोरी के साथ उनका नाम एक ब्राह्मण कवि को शूद्र बताकर उसके साथ जोड़ दिया गया, वाल्मीकि मनु के दसवें पुत्र प्रचेता के पुत्र थे (देखें-वाल्मीकि रामायण,उत्तर कांड 96/19) वाल्मीकि स्वयं कहतें हैं की उनका जन्म द्वीज ब्राह्मण कुल में हुआ परंतु नीच शूड्रों के संपर्क के कारण डाकू बन गया (अयोध्या कांड सर्ग 92 श्लोक 65से 86) इसके अलावा भी आनंद रामायण, कृतिवास रामायण, स्कंदपुराण, भविश्यपुराण, रामचरितमानस आदि में उनके ब्राह्मण होने की बात ही लिखी है......

धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा


लोकपाल बिल के क़ानून बन जाने से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा यह मानना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, भ्रष्टाचार का दीमक तो पूरे प्रजातंत्र को लग चुका है जिसे कोई लोकपाल ठीक नहीं कर सकता,तंत्र को चलाने वाले विदेश से आयात हो कर नहीं आते हैं बल्कि प्रजा ही तंत्र की पोषक-चालक होती है,

देश में हुए इन प्रदाशनों में शामिल हुए लोगों में कितने प्रतिशत लोग गर्व से आईने के आगे खड़े होकर यह कह सकतें हैं की उन्होने कभी भी अपना काम निकलवाने के लिए किसी को रिश्वत नहीं दी,पूरी ईमानदारी से अपना कर भरते है,कभी भी अपने लाभ के लिए सरकारी आवेदन पत्रों में झूठ नहीं बोला,और कभी भी बिजली,पानी की चोरी नहीं की,

मैं स्वयं भी इस भीड़ का हिस्सा बना था,परंतु में स्वीकार करता हूँ की अपने लाभ के लिए मैने उपरोक्त सभी काम कभी ना कभी किए हैं अगर में स्वयं भ्रष्ट हूँ तो तंत्र से भ्रष्टाचार मिटाने का ढोंग करने से क्या लाभ? तंत्र भ्रष्ट है क्यूंकी प्रजा भ्रष्ट है,प्रजा भरषट है क्यूंकी प्रजा की संस्कृति भ्रष्ट है,संस्कृति भ्रष्ट है क्यूंकी संस्कृति का पोषक हमारा धर्म और धर्मग्रन्थ भ्रष्ट हैं,

तो वास्तव में अगर हम अपने पूरे तंत्र को ठीक करना चाहतें हैं भ्रष्‍ट-आचार को जड़ से समाप्त करने के इच्छुक हैं तो हमारी लड़ाई धर्म और धर्मग्रंथों के विरुध होनी चाहिए,बाबा साहेब द.भीम राव अंबेडकर के शब्दों में ''अगर हम वास्तव में क्रांति चाहतें हैं तो सबसे पहले हमें अपने धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा,इसके बिना परिवर्तन का नाम लेना भी व्यर्थ है'' और ''सामाजिक परिवर्तन के बिना राजनैतिक परिवर्तन संभव नहीं''

तो दोस्तों क़ानून पर कानून बनाने से परिवर्तन नहीं होने वाला,देश में चोरी के लिए क़ानून है क्या उससे चोरी रुकी कत्ल के लिए 302 है फिर भी प्रत्येक वर्ष 65000 लोगों की हत्याएं होती हैं इसी तरह सिर पे मैला ढोने को रकने का क़ानून है फिर भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है,दलितों की सुरक्षा के लिए क़ानून हैं फिर भी मिर्चपुर,झज्जर,गोहाना जैसी घटनायें होती हैं,

मेरे दोस्तों कमी हमारे अंदर है जबतक हम ठीक नहीं होंगे तंत्र ठीक नही होगा,तब-तक इस प्रकार के प्रदर्शन सिर्फ़ और सिर्फ़ हुडदंग बनकर ही रह जाएँगे कुछ बदलेगा नहीं ,

Tuesday, August 30, 2011

आजादी का त्यौहार


पंद्रह अगस्त को मिला हमें आजादी का उपहार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

जी करता है इस ख़ुशी में झूमें हम सौ बार
आजादी का मतलब भी सोचे तो एक बार

कहने को आजाद हुए हम
और यूँही बढ़ गए आबादी के रूप में
या बदल लिया है चोला
एक और गुलामी ने आजादी के रूप में

कभी तुर्कों ने , मुगलों ने, अंग्रेजों ने लूटा
देश आजाद हुआ तो अपनों ने लूटा

'भारत माता' तो लुटी गयी हर बार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

कड़ी धूप में खेतों में वो हल चलता है
और पेट पे पत्थर बांधकर रातों को सो जाता है
दो वक्त की रोटी को दर-दर ठोकर खता है
और अंत में जहर खाकर बच्चों संग मर जाता है

कौन जिम्मेदार है इस बर्बादी का
क्या यही मतलब है आजादी का

सुनता नहीं अब कोई किसी की चीख पुकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

आजादी का मतलब भी आज हम भूल गए
जिस आजादी की खातिर 'वो' फांसी पे झूल गए
मिलती नहीं आजादी बिना खड्ग बिना ढाल
'उन' शहीदों के खून ने किया था ये कमाल

आजादी का मतलब हमने अभी पहचाना ही नहीं
खुले गगन में उड़ना हमने अभी जाना ही नहीं

धर्म के आडम्बरों को छोड़ कर
परम्पराओं के बंधनों को तोड़ कर
बदल रही है पूरी दुनिया
अभी हम नहीं हैं तैयार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

ये कैसी आजादी है भूखी आधी आबादी है
शहरों की खुशहाली क्या जब गावों में बर्बादी है
भूख गरीबी और कुपोषण ने जानता को आ घेरा है
देश की आधी आबादी का झोपड़ में बसेरा है

जन मन गण आज भी परतंत्र है
इससे किसी को क्या मतलब देश तो स्वतंत्र है
आजादी के नाम पर स्विस बैंकों को भरते है
आजादी का ढोंग रचाना इन्ही का एक षड्यंत्र है

बहुजन को नहीं मिला अबतक उसका अधिकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

भय, भूख, और भ्रष्टाचार है
हर तरफ जुल्म और अत्याचार है
ये आजादी का कैसा त्यौहार है
हर तरफ आतंक का व्यापर है

लोकतंत्र के नाम पर लूट तंत्र का राज है
जाती धर्म के नाम पर बंटा हुआ समाज है

न नियत है न नीति है कैसी है सरकार
हर साल मानते हैं हम आजादी का त्यौहार

मैं अपने मित्रों से ये निवेदन करता हूँ


मैं अपने मित्रों से ये निवेदन करता हूँ की वे मेरे नाम के कारण मेरे लिए ''आपका समाज'' या ''सुधारवादी मुस्लिम''जैसे शब्दों का प्रयोग न करें क्यूंकि अपने लिए मुस्लिम संबोधन को मैं गाली सामान समझता हूँ ,मैं आपको बता दो की मैं मुस्लिम नहीं हूँ मैं इस्लाम को कबका छोड़ चुका हूँ,सभी पारिवारिक अंतर्विरोधों को सहन करते हुए मैंने यह कदम उठाया,आज मैं या मेरे बिविबच्चे सभी धार्मिक आडम्बरों से आजाद होकर खुश हैं,

मैं इसी भारतीय समाज का हिस्सा हूँ मेरे पूर्वज इसी भारतीय समाज के छुआछूत,अश्प्रिश्यता,जातीय घृणा,एवं अछूतों पर किये गए अमानविये कुकृत्यों के कारण इस्लाम को अंगीकार करने को विवश हुए थे,इस तरह मैं स्वयं हिन्दू धर्म के जातिवाद का भुक्त भोगी रह चुका हूँ,इसी वजह से मैं किसी भी तरह इस भारतीय समाज के कायाकल्प का इच्छुक एवं इसके लिए अपने स्तर पर प्रयत्नशील भी हूँ,

भारत बंगलादेश एवं पाकिस्तान के नब्बे प्रतिशत मुस्लिम या ईसाई हिन्दू धर्म के जातिवाद की बीमारी के कारण ही अतीत में इससे अलग हुए जिन कारणों से यह सब हुआ वो जातिवाद नाम की बीमारी आज भी कायम है आज भी हिंदुस्तान में झज्जर,गोहाना,या मिर्चपुर की घटनाएं होती है इन्हीं वजहों से आज भी धर्मपरिवर्तन की घटनाएं जोरों से हो रहीं हैं प्रबुध्ध वर्ग के लोग अप्रत्यक्ष रूप से प्रज्ञा या असीमानंद का समर्थन करने की बजाये जातिवाद का विरोध क्यों नहीं करते

क्यूँ नहीं ये लोग समाज में अपने घर से आरम्भ करते हुए अतार्जतिये विवाहों का समर्थन करते,अमेरिका के अनुसार भारत को महाशक्ति घोषित किये जाने पर तो बहुत से लोग खुश होते है परन्तु सरकारी कुछ गैर सरकारी सूत्रों के अध्यन के बाद जो भारत की सच्ची तस्वीर निकल कर सामने आती है वो इन लोगों को हजम नहीं होती,

मेरा सम्बन्ध बिहार से है और मैं लगभग भारत के आधे से भी अधिक राज्यों में घूम चुका हूँ मुझे असली भारत का अनुभव है मैं जहाँ भी जाता हूँ रेल की निम्न श्रेणी में ही यात्रा करता हूँ बिहार झारखण्ड बंगाल जाने वाली ट्रेनों में कभी आपने देखा है इंसानों की हालत को किस तरह जानवरों की भांति ठूसा कर जाते है,बिहार की गालिओं में ही मेरा बचपन बीता है जहाँ आज तक लोगों को गणतंत्र होने का अनुभव ही नहीं हो पाया,क्या इसी तरह देश महाशक्ति बनते हैं

अपने देश के बारे में हमारी गलतफहमियाँ


अपने देश के बारे में हमारी गलतफहमियों का मूल हमारी शिक्षा व्यवस्था में छुपा हुआ है ,जो हमें यह तो बताती है की हम दो हजार वर्षो से गुलाम थे परन्तु इस बात पर मौन हो जाती है की गुलाम क्यूँ थे ,

हमारी गुलामी का कारन विदेशी आक्रमण नहीं थे बल्कि इसका कारण था हमारा धर्म और हमारी धर्मभीरुता ,जब जब हमारे ऊपर संकट आये तब तब हमने उनका सामूहिक हल ढूंढने के बजाये किसी अवतार के आने की प्रतीक्षा में भजन गाते रहे , हमारा धर्म हमारी परम्पराएं और हमारी सोच हमें जाती और सम्प्रदाए के नाम पर टुकडो टुकडो में विभाजित करती रही जिसके परिणामस्वरूप देश का आधे से भी बड़ा जनसमूह शुद्र और अछूत बनकर अपने ही देश में जानवरों की जिंदगी जीने को मजबूर हुआ . हमें इसी भेदभाव से ही कभी फुर्सत नहीं मिली की हम आगे की सोच पाते ,

जब भी किसी ने इस जहालत को दूर करने का प्रयास किया उसे गालिया दी गयी प्रताड़ित किया गया यहाँ तक की उसे मार डाला गया , आर्य भट्ट ने जब कहा की प्राणनेति कला:भुर्वः अर्थात -पृथ्वी घुमती है तो उनका मजाक उड़ाया गया . बुध ने जब कहा की ब्रह्मा विष्णु महेश आत्मा और परमात्मा यह सब काल्पनिक है तब उन्हें गालिया दी गयी . उन्हें रामायण जैसे तथकथित ज्ञान के ग्रंथो में चोर तक कहा गया है इसी तरह दयानंद सरस्वती को पुरानो की निंदा करने के अपराध में जहर देकर मार डाला गया .


तमाम बड़े दावो के बावजूद भी वर्तमान में देश की दयनीय स्थिति के मूल कारणों की खोज में जब हम जाने की कोशिश करते है तब हमें आभास होता है की कमी हमारी स्वयं की मानसिकता में है जो हमारे धर्म द्वारा ही संचालित होती है .हमारे धार्मिक ग्रंथो में अन्धविश्वाश अज्ञान और भेदभाव पैदा करने के आलावा ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमे से हम विज्ञान की एक बूँद भी निकल सकें .


इसीलिए हम मंगल गृह से हाथ जोड़कर अपने अमंगल न होने की प्रार्थना करते रह जाते है और विदेशी मंगल की मिटटी में अपने हाथो से बने यन्त्र दौड़ा रहे होते है हम त्रेतायुग की काल्पनिक बकवासो में पुष्पक विमान को ढून्ढ रहे होते है तभी विदेशी राइट बंधू अपने मेहनत का विमान आकाश में उड़ा देते है .जब हम बैलगाड़ी में तीर्थयात्राओ में व्यस्त थे तब विदेशी भाप द्वारा रेलगाड़ी बनाने की जुगत में लगे हुए थे .हम चक्रवर्ती होने और देवताओ से दिव्यास्त्र पाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करवा रहे होते है तभी विदेशी अपने हाथो से बने अग्नेआस्त्र यानि तोपों द्वारा हमला कर के हम पर ही चक्रवर्ती हो जाते है उनके बन्दूको का मुकाबला हम तीर तलवार लाठी और डंडो से करके हर जाते है .

सही मायने में आज जो कुछ भी थोडा बहुत अगर इस देश में अच्छा है तो वह हमारे संस्कारो के वजह से नहीं बल्कि विदेशी सभ्यता की वजह से है .हमारे संस्कार और धर्म तो हमें औरतो को जिन्दा जलाने की प्रेरणा देते थे जिसे सती प्रथा कहकर हम गौरवान्वित होते थे जिस पर अंग्रेजो ने ही 1828 में रोक लगाई .नारी अस्मिता का ज्ञान हमें पश्चिम से ही सिखने को मिला हम तो उन्हें पढाना पाप समझते रहे और उन्हें कम उम्र में ही विवाहित कर ससुराल भेजने में अपनी परंपरा की दुहाई देते रहे .हम तो अपने ही भाइयो को अछूत कहकर दुत्कारते रहे जिन्हें विदेशियों ने ही सर्वप्रथम अपनाकर उन्हें अपनी नौकरियों में स्थान दिया .
शकील प्रेम