सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Monday, May 30, 2011

सोचता हूँ किधर जाऊं


इस बेदर्द दुनिया में
सोचता हूँ कहाँ जाऊं
मन कहता है पीछे चल
अक्ल कहती है आगे चल
दिल कहता है यही ठहर जा!

इस कसमकस में
सोचता हूँ किधर जाऊं,

हर तरफ छाई है मायूसी
हर चेहरे पे है बेबसी
कल किधर से आजाये दरिंदगी
कब खामोश हो जाये जिंदगी

इस कसमकस में
सोचता हूँ किधर जाऊं!

आतंक है तो क्यूँ है
दहशत है तो क्यूँ है
जख्म हर चेहरे पर
ये जुल्मो सितम क्यूँ है

क्यूँ लाचार हैं आँखें
क्यूँ बेजार है दिल
क्यूँ सिले हुए हैं होठ
हर चेहरा शर्मशार क्यूँ है

इस कशमकश में
सोचता हूँ किधर जाऊं !

भूख भय और भ्रष्टाचार
सहते है हर अत्याचार
आज की बात नहीं
ये सदियों का है संस्कार

बेड़ियाँ टूटी हुई हैं
उड़ने पर पहरा है
पंख थोड़े हैं बचे
पर जख्म अभी गहरा है

धुआ धुआं है आसमान
सुर्ख लाल जमीन क्यूँ है

इस कशमकश में
सोचता हूँ किधर जाऊं.......



.......शकील 'प्रेम'