सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Wednesday, August 31, 2011

धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा


लोकपाल बिल के क़ानून बन जाने से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा यह मानना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, भ्रष्टाचार का दीमक तो पूरे प्रजातंत्र को लग चुका है जिसे कोई लोकपाल ठीक नहीं कर सकता,तंत्र को चलाने वाले विदेश से आयात हो कर नहीं आते हैं बल्कि प्रजा ही तंत्र की पोषक-चालक होती है,

देश में हुए इन प्रदाशनों में शामिल हुए लोगों में कितने प्रतिशत लोग गर्व से आईने के आगे खड़े होकर यह कह सकतें हैं की उन्होने कभी भी अपना काम निकलवाने के लिए किसी को रिश्वत नहीं दी,पूरी ईमानदारी से अपना कर भरते है,कभी भी अपने लाभ के लिए सरकारी आवेदन पत्रों में झूठ नहीं बोला,और कभी भी बिजली,पानी की चोरी नहीं की,

मैं स्वयं भी इस भीड़ का हिस्सा बना था,परंतु में स्वीकार करता हूँ की अपने लाभ के लिए मैने उपरोक्त सभी काम कभी ना कभी किए हैं अगर में स्वयं भ्रष्ट हूँ तो तंत्र से भ्रष्टाचार मिटाने का ढोंग करने से क्या लाभ? तंत्र भ्रष्ट है क्यूंकी प्रजा भ्रष्ट है,प्रजा भरषट है क्यूंकी प्रजा की संस्कृति भ्रष्ट है,संस्कृति भ्रष्ट है क्यूंकी संस्कृति का पोषक हमारा धर्म और धर्मग्रन्थ भ्रष्ट हैं,

तो वास्तव में अगर हम अपने पूरे तंत्र को ठीक करना चाहतें हैं भ्रष्‍ट-आचार को जड़ से समाप्त करने के इच्छुक हैं तो हमारी लड़ाई धर्म और धर्मग्रंथों के विरुध होनी चाहिए,बाबा साहेब द.भीम राव अंबेडकर के शब्दों में ''अगर हम वास्तव में क्रांति चाहतें हैं तो सबसे पहले हमें अपने धर्म एवं धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ाना होगा,इसके बिना परिवर्तन का नाम लेना भी व्यर्थ है'' और ''सामाजिक परिवर्तन के बिना राजनैतिक परिवर्तन संभव नहीं''

तो दोस्तों क़ानून पर कानून बनाने से परिवर्तन नहीं होने वाला,देश में चोरी के लिए क़ानून है क्या उससे चोरी रुकी कत्ल के लिए 302 है फिर भी प्रत्येक वर्ष 65000 लोगों की हत्याएं होती हैं इसी तरह सिर पे मैला ढोने को रकने का क़ानून है फिर भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है,दलितों की सुरक्षा के लिए क़ानून हैं फिर भी मिर्चपुर,झज्जर,गोहाना जैसी घटनायें होती हैं,

मेरे दोस्तों कमी हमारे अंदर है जबतक हम ठीक नहीं होंगे तंत्र ठीक नही होगा,तब-तक इस प्रकार के प्रदर्शन सिर्फ़ और सिर्फ़ हुडदंग बनकर ही रह जाएँगे कुछ बदलेगा नहीं ,

1 comment:

  1. यह विचार कुछ अति का है। दोष बंदूक का नहीं चलाने वाले का है। और संस्कृति भ्रष्ट है या नहीं। यह विवाद का विषय है। विदेशों में भी ऐसी ही क्रूरताएँ होती आई हैं। मानव हर जगह एक सा रहा है।

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