सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Wednesday, August 31, 2011

महाभारत और राष्ट्रवाद


राष्ट्रवाद की बात करने वालों को पहले अपने उन शास्त्रों को गटर में फैंक देना चाहिए जो देश को जाती और क्षेत्रवाद के नाम पर पृथक करती है, महाभारत राष्ट्रवाद की कितनी बड़ी समर्थक है उसका एक उदाहरण -

मलम पृथ्वियाँ वाहीकाः,
स्त्रीणा मद्रस्त्रियो मलम!!

मनुष्णन मलम म्लेच्छः
वृिषला दक्षीणतयाह स्तेना वाहीकाः
,
संकरा वैइ सुरष्ट्राः
आरात्तजान पंचदान धिगस्तु!
(महाभारत-कर्णपर्व,अध्याय45,श्लोक23से38)

अर्थात---वाहिक(पंजाबी) लोग सारी धरती का गंद हैं,सारी दुनिया की स्त्रियों का गंद मद्र देश की स्त्रियाँ हैं,म्लेच्छ सब मानवों का गंद हैं, दक्षिण वासी लोग मूर्ख-शूद्र हैं,पंजाबी चोर हैं,सुराष्ट्र के लोग दोगले हैं,पंजाबियों पर लानत है/

अनुवाद का संदेह हो तो किसी भी संस्थान से छापे महाभारत के हिन्दी अनुवाद को पढ़ लीजियेगा

2 comments:

  1. ये सारी बातें कर्ण और शल्या के संवाद में कही गई है. कर्ण ने ये सब इसीलिए कहा क्योंकि इन क्षत्रो के राजाओ ने अपनी सेना पांडवो के साथ मिला दी थी.

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