सच क्या है ?
"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन
Monday, September 12, 2011
डर के आगे जीत है !
जीवन का आधार तीन बातों पर कायम है
१.भोजन- विकास के लिए
२.सुरक्षा- अधिक समय तक जीवन की सम्भावना के लिए
३.सेक्स- अपना वंस आगे बढ़ाने के लिए
यह तीन बातें जीवन का प्राथमिक सिधांत हैं ,चाहे वह अमीबा हो या मानव उसका पूरा जीवन इन्हीं तीन आवश्यकताओं पर ही केन्द्रित रहता है , सुरक्षा की भावना ही डर को जन्म देती है और यही डर आज संसार के सभी जीवों के आस्तित्व में होने का कारण भी है ,इसलिए डर इन्सान के जीवन का अभिन्न हिस्सा है
इन्सान प्रत्येक उस चीज से डरता है जो उसे नुकसान पहुंचा सकती है जैसे -आग ,पानी, खूंखार जानवर इत्यादि, इन सब के आलावा जो इन्सान को सबसे बड़ा डर है वो है मृत्यु का डर या यूं कहें की स्वयं के आस्तित्व के खोने का डर ,पुरापाषाण काल के मानव के इसी एक डर ने कालान्तर में कई सारी कल्पनाओं को जन्म दिया जैसे -भगवान, आत्मा, परलोक, स्वर्ग-नरक, देविदेवता, ताकि स्वयं को तसल्ली दे सके की उसका आस्तित्व मृत्यु के बाद भी रहेगा , यही कल्पनाएँ जिन्हें मानव की सहज बुद्धि ने मृत्यु के डर को निष्क्रिय करने के लिए किया था आगे चलकर तरह-तरह के कर्मकांडों और अंधविश्वासों में परिवर्तित हुईं जिसके फलस्वरूप इन्ही कर्मकांडों और अंधविश्वासों ने धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप ले लिया , आज सैंकड़ों धर्मों के रूप में अज्ञानता का वही व्यवसाय हमारे सामने है , इसीलिए आज भी धर्म दुनिया के तीन सबसे बड़े व्यवसायों में से एक है बाकि दो हैं दवा और हथियार
आज जब मानव उस अन्धकार युग को बहुत पीछे छोड़ कर उस युग में अपने कदम रख चुका है जहाँ से वह ब्रह्माण्ड के रहस्यों की परतें खोल रहा है , पृथ्वी अब उसके लिए रहस्य नहीं रही , जीवन और मृत्यु की पहेलियाँ अब पहले सी जटिल नहीं रहीं , ऐसे में उसे उस धर्म की आज कोई आवश्यकता ही नहीं जिसे उसने अपनी अज्ञानता वश अविष्कृत किया था या उसके अज्ञान काल में आस्तित्व में आई बल्कि मानवता की प्रगति में आज सबसे बड़ी रूकावट धर्म ही है
धर्म आज दुनिया के लिए अफीम के सामान है लेकिन धर्म के व्यवसाई किसी भी कीमत पर इसे समाप्त नहीं होने देना चाहते बल्कि इस अफीम का व्यापार करने वाले इसको समाप्त करने के बजाये इसका नशा और तेज करने में लगे हुए है
मृत्यु जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है उससे डर कैसा , मृत्यु के बाद क्या होगा वो बताने के लिए तो आज तक कोई लौट कर नहीं आया , जीवन जलती हुई मोमबत्ती के लौ के सामान है जब मोमबत्ती का ऊर्जा क्रम टूट जाता है तब वो लौ समाप्त हो जाती है , इसी तरह जब हमारी खरबों कोशिकायें कमजोर हो जाती हैं तो हम बूढ़े हो जाते हैं और जब सभी कोशिकाएं पूरी तरह काम करना बंद कर देती है तो हम मर जाते हैं, यही जीवन की सच्चाई है , इसे समझते ही धर्म का महल ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगा ,क्यूंकि आत्मा ही तो परमात्मा का आधार है और ये दोनों धर्म का आधार ,जहाँ आत्मा मरी वहीँ परमात्मा भी मर जायेगा और इन दोनों के मरते ही धर्म अपने आप ही समाप्त हो जायेगा जो हमें सदियों से आत्मा और परमात्मा के नाम पर डरा कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है
जरा सोचिये - हम कुत्ते से डरते है, शेर से डरते हैं , भेडिये से डरते हैं , सांप से डरते हैं, बिच्छु से डरते हैं, इन्हीं सब के कारण अँधेरे से डरते हैं लेकिन भगवान से हमको डराया जाता है क्यूँ ? क्यूंकि हमारे इसी डर में तो उनकी जीत छुपी है जो इंसानियत को डरा रहे हैं , तो बंधुओं हमें इस डर को भगाना है क्यूंकि इस डर के आगे इंसानियत की जीत है....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
धर्म दवा और हथियार को मिलाने के बाद भी इनसे कई गुना बड़ा व्यवसाय है। क्योंकि एक सेकेंड में ही अरबों-खरबों खा जाता है।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख. जागरूक करता हुआ. भगवान स्वयं तो डराता नहीं. 'भगवान से हमको डराया जाता है क्यूँ?' यह आधारभूत प्रश्न है.
ReplyDeleteआपका विचार पढ़ने के बाद यही लगता है काश हमारे देश में सभी लोग ऐसे ही होते तो आज हमारे भारत देश की तस्वीर कुछ और होती।
ReplyDeleteशकील प्रेम भाई आपके विचारों को पढ़कर बहुत अच्छा लगता है क्योंकि हम अपने जीवन में जो कुछ भी सोचते हैं आप वही विचार व्यक्त करते हैं लेकिन क्या किया जाए लोगों ने अपने दिमाग को अपनी सोच को इन धर्मों के हवाले कर रखा है। जहां पर नफरत के सिवा कुछ नहीं है।
ReplyDeleteJay manavta shakil sir
ReplyDelete