सच क्या है ?




"धर्म या मजहब का असली रूप क्या है ? मनुष्य जाती के
शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उस से उत्पन्न मिथ्या
विश्वाशों का समूह ही धर्म है , यदि उस में और भी कुछ है
तो वह है पुरोहितों, सत्ता-धारियों और शोषक वर्गों के
धोखेफरेब, जिस से वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से
बाहर नहीं जाने देना चाहते" राहुल सांकृत्यायन



















Friday, September 2, 2011

मिराज - मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की हकीकत


मुस्लिम शरीफ और बुखारी शरीफ की हदीसो के अनुसार मुहम्मद द्वारा तथाकथित स्वर्गारोहण की जो तस्वीर सामने आती है वह कुछ इस तरह है -

एक दिन सुबह उठकर मुहम्मद ने अपने लोगों को इकठ्ठा किया और उन्हें बताया की ''कल रात इश्वर ने मुझे बहुत ही सम्मान प्रदान किया मैं सो रहा था की जिब्रील आये और मुझे उठाकर काबा ले गए ,

यहाँ लाकर उन्होंने मेरा सीना खोलकर जम-जम के पानी से उसे धोया और फिर उसे इमान और हिकमत से भरकर बंद कर दिया , इसके बाद जिब्रील मेरे लिए सफ़ेद रंग का बुरक नाम का घोडा जो खच्चर से छोटा था लाये मैं उस पर सवार हुआ ही था की अचानक हम बेतलहम पहुँच गए यहाँ बुरक को मस्जिद के दरवाजे पर बांध दिया गया ,

इसके बाद मैं जिब्रील द्वारा मस्जिद-ए-अक्शा ले जाया गया जहाँ में दो रकात नमाज पढ़ी | इसके बाद जिब्रील मेरे सामने दो प्याले लेकर आये एक दूध से भरा था और दूसरा शराब से लबरेज......मैंने दूध वाला प्याला लिया जिब्रील ने कहा की आपने दूध वाला प्याला स्वीकार कर धर्माचार का परिचय दिया है |

इसके बाद आसमान का सफ़र आरम्भ हुआ , जब हम पहले आसमान पर पहुंचे तो जिब्रील ने वहां तैनात फ़रिश्ता (चौकीदार) से दरवाजा खोलने को कहा , उसने पूछा "तुम्हारे साथ कौन है ? और क्या ये बुलाये गए हैं ?'' जिब्रील ने कहा "हाँ बुलाये गए हैं "यह सुनकर फ़रिश्ते ने दरवाजा खोलते हुए कहा "ऐसी हस्ती का आना मुबारक हो" जब अन्दर दाखिल हुए तो उनकी मुलाकात आदम से हुई , जिब्रील ने मुहम्मद को बताया की ये आपके पीता और पूरी मानव जाती के पूर्वज हैं इनको सलाम करो ,

इसके बाद दुसरे आसमान पर पहुंचे और पहले की तरह यहाँ भी फ़रिश्ते को परिचय देने के बाद अन्दर दाखिल हुए जहाँ याह्या और ईसा से परिचय हुआ

इनको सलाम करने के बाद मुहम्मद इसी तरह तीसरे आसमान पर गए यहाँ उसुफ़ थे चौथे पर इदरीस पांचवे पर हारून, छठे पर मूसा, और अंत में सातवे आसमान पर इब्राहीम से मुलाकात हुई ,

इसके बाद जिब्रील मुहम्मद को लेकर "सिदार-तुल-मुन्तहा" पहुचे जहाँ एक पेड़ है जिस पर असंख्य सितारे जुगनुओं की तरह चमक रहे थे , यहीं अल्लाह से मुलाकात हुई जहाँ अल्लाह ने मुहम्मद को अपने अनुयाइओ के लिए ५० नमाजें भेंट कीं , जब वापस आने लगे तो मूसा ने पूछा की क्या तोहफा मिला उन्होंने पचास नमाजों के विषय में बताया , मूसा ने कहा तुम्हारे अनुयाई इस बोझ को नहीं उठा पाएंगे जाओ कुछ कम करवा आओ इस तारा पचास नमाजें घाट कर पांच समय की हुई

इस यात्रा में मुहम्मद को जन्नत और दोजख लाइव दिखाया गया , वापसी में मुहम्मद फिर धरती पर बैतूल मक्दिस गए वहां सूफी और महात्माओ को नमाज पढाई , इसके बाद मुहम्मद अपने घर वापस लौटे इस तरह मुहम्मद के इस मनगढ़ंत मिराज यात्रा का सफ़र समाप्त हुआ

सुबह जब मुहम्मद ने अपनी इस काल्पनिक स्वर्ग यात्रा का विवरण लोगो को बताया तो मुहम्मद के कुछ चमचों(अनुयाइओ) ने इस झूठ का एक एक शब्द सच मान लिया , परन्तु जो सत्य के पुजारी थे उन्होंने इस झूठ को ये कह कर ख़ारिज कर दिया "तू तो बस हमारे ही जैसा एक आदमी है हम तो तुझे झूठे लोगों में से ही पाते हैं" कुरान -अश-शुअरा, आयत १८६ और जो चमचे थे जिन्हें इस इस्लाम नाम की चीज से आयाशिया करने का अवसर प्रदान होता था उन्होंने इसे मुहम्मद का एक और चमत्कार घोषित कर दिया

जब हम इस यात्रा विवरण की कहानी को तर्क की कसौटी पर कसते हैं तो कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जैसा की हदीसों में कहा गया है की सुबह मुहम्मद ने लोगों को ये बात बताई इसके अलावा इस बात का और कोई प्रमाण नहीं है न किसी ने जिब्रील को देखा न किसी ने बुरक नाम की गधही को देखा बस मान गए क्यूंकि उनका सरदार कह रहा था

इस विवरण से तो यही पता चलता है की इस घटना से पहले मुहम्मद के अन्दर इमान था ही नहीं तभी तो जिब्रील मुहम्मद को काबा ले जाकर उनका सीना फाड़ के इमान घुसेदते है , अगर उनके अन्दर ईमान था तो फिर जिब्रील को ऐसा करने की क्या आवश्यकता पड़ी , और क्या इस से पहले मुहम्मद के सीने में गन्दगी भरी हुई थी जिसे जिब्रील ने जम-जम के पानी से धोया ,

और क्या इस बात का कोई आधार है की इमान सीने में होता है , धर्म या इमान अच्छाई या बुराई तो इन्सान के मस्तिष्क की देन है ये इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति को बचपन में कैसे संस्कार या उसका विकास किस प्रकार हुआ है , इस तरह ईमान दिमाग के अन्दर होता है न की सीने में परन्तु क्या सर्वज्ञान संपन्न अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं था जिसे वह अपने फ़रिश्ते को सिखाते की बेटा इमान सीने में नहीं दिमाग में होता है जाओ और मुहम्मद का दिमाग खोल के उसको साफ़ करना सीने को नहीं वहां दिल होता है जो दिमाग को खून पहुँचाने का काम करता है

इसके बाद हम चलते हैं दूध पीने वाली घटना पर जब जिब्रील मुहम्मद को दूध और शराब से भरा गिलास देते हैं तो मुहम्मद दूध को स्वीकार करते हैं और शराब से इंकार करते हैं इस पर जिब्रील कहतें हैं की शराब को अस्वीकृत कर निश्चय ही आपने धर्माचार का परिचय दिया है

अब इस घटना पर भी कई प्रश्न खड़े हो जाते है जैसे की क्या जब जिब्रील मुहम्मद का सीना खोल कर कैसेट बदल देते हैं यानि धोकर ईमान घुसेड देते हैं तब तो आदमी धर्माचार ही करेगा न , गाने की कैसेट डालोगे तो गाना ही बजेगा न फिल्म थोड़े ही चलेगी ,और क्या जिब्रील दूध और शराब देकर परिक्षण कर रहे थे की जो ईमान घुसेड़ा गया है वो सही काम कर रहा है की नहीं यानी जिब्रील को अपने इस कैसेट बदलने की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं था , मतलब की मुहम्मद ने अगर दूध पिया तो वह सीने में ईमान घुसेड़ने की वजह से अन्यथा वह शराब ही पीते.......

8 comments:

  1. इसमें संदेह नहीं कि मोहम्मद साहब हुए हैं. वे इंसान के चोले में हुए हैं. शकील प्रेम जी आप भी इंसान के चोले में हैं. अब देखिए हम नींद में क्या-क्या नहीं देखते हैं. इसी प्रकार साधन करते समय जब हम दिमाग़ में दाखिल होते हैं तो वहाँ की न्यूरल एक्टिविटी के दौरान कितने दृश्य देखते हैं. हम सपनों को सच की भाँति देखते हैं ऐसे ही साधन (जिसे रुहानी अनुभव कहा जाता है) सच की भाँति ही दिखता है या हम उसे सच मान लेते हैं. आखिर हमारे सभी अनुभव शरीर में रह कर ही तो होते हैं न. इतना कह देना काफी है.
    दूसरे हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मोहम्मद साहब ने रूहानियत को आधार बना कर अपने समाज को बदलने का प्रयास किया था और उन्हें सफलता भी मिली. उन्होंने समय के अनुसार स्वयं को तैयार किया होगा, बदला होगा और उन्हें ऐसे आंतरिक अनुभव हुए होंगे. इन आंतरिक अनुभवों में सच-झूठ ढूँढना ठीक नहीं. इसमें केवल देखना चाहिए कि व्यक्ति के ऐसे अनुभव उसे कैसे जीवन की ओर ले जाते प्रतीत होते हैं.

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  2. अफसोस होता है जब मैं अच्छे खासे पढ़े लिखे मुस्लिमों को जन्नत-दोजख, रूह जैसी बे सिर-पैर की काल्पनिक चीजों पर शिद्दत से विश्वास करते देखता हूँ। जब इंसान अपनी कल्पना में किसी ईश्वर की रचना करता है तो उसका ईश्वर भी उन लोगों से नफरत करने लगता है जिनसे उसे नफरत होती है। विधर्मियों के प्रति मुसलमानो के अल्लाह की नफरत इसी बात का उदाहरण है।

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  3. घृणा दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते
    एस. प्रेम जी ! आपके लहजे से इस्लाम और इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. के लिए कितनी घोर घृणा टपक रही है, इसे हरेक पाठक पहली ही नज़र में जान लेता है।
    इस तरह घृणा दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते।
    मैराज हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पेश आई। उसे बेशक आपने नहीं देखा और आप क़ुबूल भी कर सकते हैं और इंकार भी कर सकते हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब समाज में बिना सूद क़र्ज़ के लेन देन की व्यवस्था की जो कि आज भी दुनिया के सबसे विकसित देश अपने नागरिकों के लिए नहीं कर पाए हैं।
    उन्होंने लड़कियों के जीवित गाड़े जाने की प्रथा का पूरी तरह ख़ात्मा कर दिया।
    लोगों को ग़ुलाम आज़ाद करने की प्रेरणा दी।
    ग़रीबों और ज़रूरतमंदों का हक़ मालदारों के माल में मुक़र्रर किया जिसे मुसलमान आज उनके जाने के लगभग 1400 साल बाद भी निभा रहा है।
    इस तरह के बहुत से काम उनके जीवन में देखे जा सकते हैं।
    इन कामों को दुनिया के जिस चिंतक ने भी देखा, उसी ने सराहा।
    लेकिन आपने इन सब कामों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
    जैसे ये काम कुछ भी हैसियत न रखते हों।
    ऐसा काम वही आदमी करता है जिसके दिल में कूट कूट कर नफ़रत भरी हो और जिसे सत्य की तलाश न हो।
    जिन लोगों ने मुहम्मद साहब को उनके शहर में तरह तरह से तकलीफ़ें बिना बात दीं और फिर मक्का से निकाल दिया, उन्हें आपने सत्य का पुजारी घोषित कर दिया ?
    अगर ये सत्य के पुजारी थे तो फिर ये सत्य से क्यों फिर गए और थोड़े दिन बाद ही मुसलमान हो गए। पूरा मक्का ही मुसलमान हो गया और आज तक वहां मुसलमान ही हैं और आज भी वहां बिना सूद के ही लेन देन होता है और ज़कात का सिस्टम आज भी क़ायम है।
    आप ख़ुद को ज़्यादा लायक़ समझते हैं तो इससे बेहतर व्यवस्था इस देश में या कम से कम अपने गांव देहात में ही स्थापित करके दिखाएं।
    मालिक आप पर दया करे,

    आमीन !

    आप शिक्षित और सभ्य हैं। ज्ञान की बात के अवसर पर इस तरह अज्ञान की बातें करना महान आर्य परंपरा पर कलंक लगाना है। अतः आपसे हमारी विनम्र विनती है कि हमारा काम आपसी नफ़रतों को मिटाना है और इसके लिए आपस में एक दूसरे की परंपराओं और मान्यताओं को जानना बहुत ज़रूरी है। हमारे स्वभाव को समझने के लिए आप यह पोस्ट देखिए
    हमारा यह प्रयास कैसा लगा ?
    आप भी बताइयेगा।
    देखिए अलग-अलग लेखकों के कुछ लिंक्स :
    1- अच्छी टिप्पणियाँ ही ला सकती हैं प्यार की बहार Hindi Blogging Guide (22)
    http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-22.html

    2- औरत हया है और हया ही सिखाती है , ‘स्लट वॉक‘ के संदर्भ में
    http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_5673.html

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    Replies
    1. बिल्कुल सभी बात कही आपने घृणा दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते आपने शुरू में हीरो बता दिया कि आप क्या कहना चाहते थे।
      इसी तरह आपको विज्ञान से घृणा है। आप मजहब की आड़ में रहकर कभी यह समझ ही नहीं सकते।

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  4. मान्यवर, एक मात्र प्रकृति ही ईश्वर है और मानवता ही सच्चा धर्म।
    जिन्हें हम धर्म समझते वे मात्र सम्प्रदाय हैं तथा जिसे ईश्वर समझते
    हैं, वह मात्र मानवीय कल्पना है। ईश्वर तो सचमुच अज्ञान एवं डर की
    संतान है। कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रया देकर मेरा मार्ग-
    दर्शन करें।http://dineshkranti.blogspot.com/

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  5. आपका विवेचन एकदम दुरुस्त है ,इसी तरह की चिकित्सा आप से पहले भी हुई है .
    अकबर बादशहा ने इस प्रकार की घटना की निंदा की थी तथा इसे-
    मनगढ़ंत माना है लिहाजा धर्म मन्युष्य के लिये है न की मनुष्य धर्म के लिये..!
    आगे चल कर उन्होंने सर्वसमावेशक 'दिन -ए- इलाही' मजहब स्थापित किया ,उस वक्त
    उनके नए धर्म को मानने वाले मात्र 13 अनुयायी थे.

    धर्म में चिकीत्सा जरूरी है चाहे धर्म अपना हो या पराया हो यदि धर्म मनुष्य पर बोझ बन जाए तो वह धर्म नही हो सकता समय के साथ धर्म की यात्रा तभी सुकर होगी जब धर्म में समयानुसार परिवर्तन करने कि सुविधा हो.

    आपका निरीक्षण एकदम सही है
    तथा निष्कर्ष सटीक!

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  6. आपका विवेचन एकदम दुरुस्त है ,इसी तरह की चिकित्सा आप से पहले भी हुई है .
    अकबर बादशहा ने इस प्रकार की घटना की निंदा की थी तथा इसे-
    मनगढ़ंत माना है लिहाजा धर्म मन्युष्य के लिये है न की मनुष्य धर्म के लिये..!
    आगे चल कर उन्होंने सर्वसमावेशक 'दिन -ए- इलाही' मजहब स्थापित किया ,उस वक्त
    उनके नए धर्म को मानने वाले मात्र 13 अनुयायी थे.

    धर्म में चिकीत्सा जरूरी है चाहे धर्म अपना हो या पराया हो यदि धर्म मनुष्य पर बोझ बन जाए तो वह धर्म नही हो सकता समय के साथ धर्म की यात्रा तभी सुकर होगी जब धर्म में समयानुसार परिवर्तन करने कि सुविधा हो.

    आपका निरीक्षण एकदम सही है
    तथा निष्कर्ष सटीक!

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