दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव का दौर चल रहा है , इंडोनेशिया के बाद भारत ही वो देश है जहा मुसलमानो की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है भारत , अमेरिका ,ब्रिटिन , ऑस्ट्रेलिया ,चीन ,जापान ,जर्मनी, ये वो देश हैं जहाँ की सत्ता मुसलमानों के हाथों में नहीं है, और यहाँ मुसलमान उन मुस्लिम देशों की तुलना में ज्यादा सुखी हैं जहाँ हुकूमत भी इनकी है और आबादी भी इनकी है पाकिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र, ईरान,सीरिया, फिलिस्तीन,इराक,अफगानिस्तान 60 के करीब मुस्लिम देशों की हालत कमोबेश एक जैसी है अरब दुबई जैसे तेल से धनि हुए अपवाद स्वरुप देशों को छोड़ कर
भारत की बात करें तो मुसलमान यहाँ पडोसी मुस्लिम देश की पूरी आबादी से भी ज्यादा हैं और उसकी तुलना में ज्यादा सुखी और सुरक्षित भी ,, 67 वर्षों में पाकिस्तान में आतंकवाद से मरने वाले मुसलमानों की तादात भारत में 67 वर्षों में विभिन्न दंगों में मरने वाले मुसलमानों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है दंगों का रोना रोने वाले मुसलमान कभी अपनी गिरेबां में झाँक कर नहीं देखते की ऐसा क्यों होता है क्यों सैकड़ों वर्षों से साथ रहने वाले लोग अचानक उनके सबसे बड़े दुश्मन हो जाते हैं साथ में रहने वाले अचानक उनके जान माल इज्जत को पल भर में ख़ाक में मिला देते हैं
किसी विद्वान ने कहा है की "वक्त के साथ नहीं बदलने वालों को वक़्त खुद ब खुद बदल देता है और जो नहीं बदलते उन्हें मिटा भी देता है" पूरी दुनिया के मुसलमानों के साथ भी यही हो रहा है वक़्त उन्हें बदलने को मजबूर कर रहा है परन्तु वे बदलने की बजाए मिटने को तैयार हैं और मिट भी रहे हैं
भारत की बात करें तो मुसलमान यहाँ पडोसी मुस्लिम देश की पूरी आबादी से भी ज्यादा हैं और उसकी तुलना में ज्यादा सुखी और सुरक्षित भी ,, 67 वर्षों में पाकिस्तान में आतंकवाद से मरने वाले मुसलमानों की तादात भारत में 67 वर्षों में विभिन्न दंगों में मरने वाले मुसलमानों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है दंगों का रोना रोने वाले मुसलमान कभी अपनी गिरेबां में झाँक कर नहीं देखते की ऐसा क्यों होता है क्यों सैकड़ों वर्षों से साथ रहने वाले लोग अचानक उनके सबसे बड़े दुश्मन हो जाते हैं साथ में रहने वाले अचानक उनके जान माल इज्जत को पल भर में ख़ाक में मिला देते हैं
किसी विद्वान ने कहा है की "वक्त के साथ नहीं बदलने वालों को वक़्त खुद ब खुद बदल देता है और जो नहीं बदलते उन्हें मिटा भी देता है" पूरी दुनिया के मुसलमानों के साथ भी यही हो रहा है वक़्त उन्हें बदलने को मजबूर कर रहा है परन्तु वे बदलने की बजाए मिटने को तैयार हैं और मिट भी रहे हैं
कुछ मुस्लिम देशों के मुसलमान वहां के सियासती शिया सुन्नी झगड़ों में सताब्दियों से पिस रहे हैं तो कुछ "दीनी तालीम" के नाम पर पढ़ाये जा रहे मदरसाई आतंकवाद से खुद बर्बाद हो रहे हैं और दुनिआ को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं भारत में जहाँ इनके लिए आगे बढ़ने के सारे दरवाजे खुले हुए हैं वहां मुस्लमान अपने तथाकथित सेकुलर रहनुमाओं की गन्दी राजनीती और अपने सरपरस्त आकाओं की संकीर्ण सोच के कारण कुयें के मेंढक बने हुए हैं (या जानबूझ कर बना दिए गए हैं ) ये कभी नहीं चाहेंगे के मुसलमान आज़ाद होकर दुनिया को वर्तमान सन्दर्भ में समझने लगे और अपनी मर्जी से अपना रास्ता बनाये अगर भेंड़े ऐसा सोचने लगे तब तो भेड़िये भूखे मर जायेंगे
मुसलमान पीछे रहे संकीर्ण रहे, बर्बाद रहे जाहिल रहे ,बेवकूफ रहे इनके आकाओं का भला इसी में है ये बेवकूफ ,जाहिल रहतें हैं तो सामाजिक ताने- बाने में फिट नहीं हो पाते और जहाँ फिट नहीं हो पाते वहां इनको जबरदस्ती "फिट" कर दिया जाता है अपनी जाहिलियत भरी शिक्षा, संकीर्ण सोच,और दुनिया की रफ़्तार से पिछड़े अपने जाहिल सरपरस्तों के इशारों पर कभी कभी ये ऐसा काम कर देते हैं जिसका लाभ साम्प्रदायिक कही जाने वाली ताक़तें उठातीें हैं और उनके इस कारनामें को "क्रिया" बताकर इसकी "प्रतिक्रिया" को व्यापक पैमाने पर अंजाम देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं, इसी को दंगा कहा जाता है इन दंगों का सारा दोष केवल एक व्यक्ति, पार्टी,या एक विरोधी कौम ,को बता कर रोते रहना और खुद में कोई कमी न ढूंढ़ना ,खुद की कमियों को नजरअंदाज करना ये सब अब इनकी गन्दी आदत बन चुकी है
भारत के लाखों मदरसो से लाखों नौजवान प्रत्येक वर्ष अपनी शिक्षा ? पूरी कर बाहर निकलते है इतने नौजवानों की यह भीड़ देश और दुनिया को बदल सकती है परन्तु हर साल निकलने वाली लाखों नौजवानों की यह भीड़ देश और समाज के विकास में क्या भूमिका निभा रही है ? कौम देश या समाज को ये नवमुल्ला क्या लाभ दे रहे हैं ? अगर कोई लाभ नहीं है तो फिर मुसलमानों की पीढ़ियों को उसके भविष्य को इस तरह बर्बाद क्यों किया जा रहा है ? इस बर्बादी का असली कसूरवार कौन है ? मोदी या बीजेपी ?
हर साल हजारों नई मस्जिदें और मदरसे खड़े हो रहे हैं इनका कौम या देश की तरक्की में क्या योगदान है ? जब इनकी जहालत का भरपूर लाभ इनके अपने ही आका और रहनुमा उठा रहे तो दूसरे का क्या दोष है
मुसलमानो के असली दुश्मन अकबरुद्दीन ओबैसी ,आजम खान ,फारूक अब्दुल्ला, जाकिर नाइक ,सलमान खुर्शीद, इमाम बुखारी ,मौलाना मदनी ,और वे सभी उलेमा, मुल्ला मौलवी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े सेकुलर कहे जाने वाले लोग हैं जो इनको कुएं में ही रखना चाहते हैं यही वो जमात है जो मोदी का हौआ खड़ा करके अपनी रोटियां सेंक रहीं हैं धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये जमात अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से बाहर नहीं जाने देना चाहती बस इसका यही काम है
मुसलमानो के असली दुश्मन अकबरुद्दीन ओबैसी ,आजम खान ,फारूक अब्दुल्ला, जाकिर नाइक ,सलमान खुर्शीद, इमाम बुखारी ,मौलाना मदनी ,और वे सभी उलेमा, मुल्ला मौलवी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े सेकुलर कहे जाने वाले लोग हैं जो इनको कुएं में ही रखना चाहते हैं यही वो जमात है जो मोदी का हौआ खड़ा करके अपनी रोटियां सेंक रहीं हैं धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये जमात अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से बाहर नहीं जाने देना चाहती बस इसका यही काम है
धर्मनिरपेक्षता की खाल में छुपे बैठे वोट की खातिर किसी भी हद तक गिर सकने का मादा रखने वाले भेड़ियों की पोल तब खुलती है जब इनके अपने खेमें से ही इन पर लात पड़ती है, साबिर अली ,राम कृपाल यादव , रामविलास जैसे ताजा उदहारण हमारे सामने हैं मोदी को मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन साबित करने वाले ये लोग आज मोदी समर्थक कैसे हो गए क्या अब मोदी बदल गया है नहीं मोदी तो आज भी वही है जो पहले था वो पहले भी स्पष्ट कहता था की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती नहीं करता वो आज भी यही बात कहता है